पंजाबी भाषा की नींव कैसे पक्की की जाये ?

मुट्ठां मीट के नुकरे हां बैठी
टुट्टी होई सितार रबाबीयां दी।
पुच्छी बात ना जिन्नां ने ‘शऱफ’ मेरी,
वे मैं बोली हां उनां पंजाबीयां दी।।
(बाबू फिरोज़द्दीन ‘शऱफ)’
हालांकि विगत एक सप्ताह से कनाडा में होने के कारण मैं सोचता था कि इस बार
भारत तथा कनाडा के अन्तरों, कनाडा में रहते पंजाबियों की सोच, सिखों की
शान-ओ-शौकत तथा यहां इनमें फैल रही बुराइयों की बात करूंगा, परन्तु इस समय
यहां के पंजाबियों द्वारा, भारतीय पंजाबियों और यहां तक कि कई पाकिस्तानी
पंजाबियों द्वारा भी पंजाबी भाषा के समाप्त होने की सम्भावनाओं संबंधी पूछे जा
रहे प्रश्नों के दृष्टिगत मुझे विश्व की 5 बड़ी भाषाओं के पतन या समाप्त होने के
कारणों की रौशनी में पंजाबी के भविष्य के संबंध में लिखने पर विवश होना पड़ा
है।
17 वर्ष पुरानी एक रिपोर्ट है कि विश्व की कई हज़ार भाषाओं में से 400 मृत्यु के
कगार पर हैं तथा वैश्वीकरण के कारण हर माह लगभग 2 भाषाएं अलोप हो रही
हैं। ज्यादा पंजाबी, पंजाबी के पतन के ़खतरे को हकीकी नहीं समझते क्योंकि
पंजाबी भाषा इस समय विश्व में सबसे अधिक बोली जाती भाषाओं में 11वें स्थान
पर आ चुकी है। अंग्रेज़ी बोलने वालों की कुल संख्या 113 करोड़, 20 लाख है तथा
यह प्रथम स्थान पर है। दूसरे  स्थान पर चीनी भाषा मैंडरिन है जो 111 करोड़ 70
लाख लोगों की भाषा है। तीसरा स्थान हिन्दी का है जिसे विश्व में 61 करोड़ 50
लाख लोग बोलते हैं। 153 करोड़ 40 लाख लोगों की भाषा स्पैनिश है। फ्रांसीसी 28
करोड़, अरैबिक 27 करोड़ 40 लाख, बंगाली 26 करोड़ 50 लाख, रशियन 25 करोड़
80 लाख, पुर्तगाली 23 करोड़ 40 लाख तथा इंडोनेशियन जो 10वें स्थान पर है,
19 करोड़ 80 लाख लोगों की भाषा है। वर्ल्ड डाटा इनफो के आंकड़ों के अनुसार
पंजाबी इस समय 14 करोड़ 81 लाख लोगों की भाषा है, जिसमें 10 करोड़ 85
लाख पाकिस्तानी तथा 3 करोड़ 90 लाख हिन्दुस्तानी शामिल हैं। अन्य देशों में भी
पंजाबी बोलने वाले बड़ी संख्या में रहते हैं, जिनमें कनाडा, ब्रिटेन तथा अमरीका में
भी पंजाबी बोलने वाले लाखों पंजाबी हैं। इसी तरह पंजाबी इस समय 11वें स्थान
की विश्व की भाषा है चाहे इसे पाकिस्तानी शाहमुखी में लिखते हैं एवं भारतीय
पंजाबी गुरुमुखी में।
फिर प्रश्न पूछा जा सकता है कि इतने बड़े क्षेत्र तथा इतनी बड़ी संख्या में बोली जा
रही पंजाबी को कैसा खतरा? फिर श्री गुरु ग्रंथ साहिब ‘पंजाबी में होने के कारण
जब तक सिख हैं, पंजाबी कैसे खत्म हो सकती है?’
वास्तव में इस खतरे को समझने के लिए विश्व की 5 बहुत बड़ी तथा महत्त्वपूर्ण
रही भाषाओं की मृत्यु या उन्हें बोलने-लिखने वालों की संख्या कुछ हज़ारों तक
सीमित होने के कारणों को भी समझना पड़ेगा।
इस क्रम में पहले स्थान पर लातीनी (लैटिन) भाषा की बात करनी पड़ेगी, जो किसी
समय रोमन साम्राज्य के अधीन पूरे यूरोप, भू-मध्य सागर के सभी तटीय क्षेत्रों
तथा अफ्रीकी देशों की भाषा थी तथा यह साहित्यिक तौर पर भी ज्यादा अमीर भाषा
ही नहीं थी, अपितु इसमें महान ग्रंथों की रचना भी हुई थी तथा इसमें मैडीकल
तथा टैक्नालोजी की किताबें भी लिखी गई थीं। आधुनिक अंग्रेज़ी के लगभग 60
प्रतिशत शब्द प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में लातीनी वैटीकन से ही आये हैं। हालांकि
यह आज भी लैटिन वैटकल शहर की सरकारी भाषा है परन्तु इसके पतन के
कारणों में सबसे प्रमुख कारण रोमन साम्राज्य का गिरना या खत्म होना माना
जाता है। दूसरा कारण इसके व्याकरण का जटिल होना तथा शाब्दिक अर्थों का
नाज़ुकपन माना जाता है।
चाहे संस्कृत को हिन्दू धर्म के साथ जुड़ी होने के कारण मरी हुई भाषा तो नहीं कहा
जा सकता परन्तु इसका भारत में सम्मान होने के बावजूद इसे बोलने एवं लिखने
वाले कुछ हज़ार ही होंगे। वेदों, पुराणों तथा उपनिषदों की भाषा, चाणक्य नीति की
भाषा तथा अन्य दर्जनों महान ग्रंथों की भाषा, संस्कृत का इतना नुक्सान इसलिए
हुआ क्योंकि पहले तो भारत पर मुस्लिम शासक भारी पड़ गये तथा बाद में अंग्रेज़ों
ने पूरे भारत में अंग्रेज़ी को सरकारी भाषा बना दिया। ऊपर से संस्कृत सीखना भी
कोई आसान बात नहीं।
तीसरे स्थान पर मिस्र की भाषा कोपटिक को रखा जा सकता है, जो ईसाइयत की
पहली भाषा थी तथा ग्रीक (यूनानी) लिपी में लिखी जाती थी। इसमें कविता,
कहानियां तथा उच्च दर्जे का साहित्य भी रचा गया परन्तु यह भाषा भी मृत्यु  
शैया पर इसलिए पहुंच गई क्योंकि अरबों ने मिस्र पर जीत प्राप्त कर ली थी।
इसकी जटिलता भी इसके पतन का एक अन्य कारण बनी। इस सूची में चौथे
स्थान पर ‘बाइबलीकल हिब्रू’ भाषा को रखा जा सकता है। चाहे अब पुन: इज़रायल
में इस भाषा को पढ़ाया जाना ज़रूरी हो गया है परन्तु इस भाषा का स्थान माडर्न
हिब्रू भाषा ले चुकी है। इस भाषा में सीमित लगभग 8 हज़ार शब्द हैं जबकि माडर्न
हिब्रू भाषा के एक लाख से अधिक शब्द हैं। बाइबलीकल हिब्रू भाषा का नुकसान
‘येरुशलम के मंदिर’ गिरने तथा इज़रायली यहूदियों के बिखर जाने के कारण हुआ।
5वें स्थान पर मैसोपटामिया तथा बेबीलोन के लोगों द्वारा बोली जाती अकाडीयन
भाषा है। इसे सीखना कठिन था तथा लोगों ने धीरे-धीरे इसका स्थान आसानी से
सीखी जाने वाली भाषा अगमैक को दे दिया। 
यदि उपरोक्त सूची में भाषाओं के पतन के कारणों पर ध्यानपूर्वक दृष्टिपात किया
जाए तो सबसे बड़ा कारण तो किसी भाषा का राज भाषा न रहना ही प्रतीत होता
है। दूसरा कारण भाषाओं का कठिन होना तथा तीसरा सीमित शब्द होना भी है।
 अब पंजाबी की बात करें। पंजाबी तो सदियों से राज भाषा नहीं रही। इसका
दुर्भाग्य तो यह है कि महाराजा रणजीत सिंह जैसे पंजाबी महाराजा ने भी इसे
अपने राज की भाषा नहीं बनाया। यह सिर्फ स़ूफी काव्य, आधुनिक रूप में गुरुवाणी
तथा किस्सा काव्य, कहानियों आदि के कारण ही जीवित रही।
अब चाहे कहने को यह भारतीय पंजाब की राज भाषा है परन्तु इसके सिंहासन पर
कभी फारसी और कभी अंग्रेज़ी विराजमान रही तथा इसे कभी भी महारानी वाले
अधिकार नहीं मिले। ऊपर से देश की सरकार किसी भी तरह हिन्दी को देश की
भाषा बनाने के मनसूबे तैयार कर रही है जो इसके लिए, हां सबसे अधिक इसके
लिए ही घातक सिद्ध होंगे। फिर हमने इसे समयानुकूल बनाने के यत्न केवल
नाम-मात्र ही किये हैं। हम न तो इसे कम्प्यूटरी भाषा के समकक्ष बना सके हैं और
न ही टैक्नालोजी, मैडीकल तथा इंजीनियरिंग की शिक्षा के समर्थ। यदि हम अभी
भी न समझे तो जैसे संस्कृत इस समय पंडितों की भाषा बन कर रह गई है,
पंजाबी भी ग्रंथियों तथा पाठियों की भाषा ही बन कर रह जाएगी, क्योंकि हमारे
लिए तो अंग्रेज़ी तथा हिन्दी लिखना ही आवश्यक हो जाएगा।
क्या करें पंजाबी?
इस प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व एक सच्ची घटना का ज़िक्र करना ज़रूरी है। एक
बार की बात है कि 1995 से 2007 तक फ्रांस के प्रमुख रहे जैकुएस शिराक यूरोप
की संसद में उपस्थित थे कि एक फ्रांसीसी कलाकार ने इस संसद को अंग्रेज़ी में
इसलिए सम्बोधित किया कि सभी उनकी बात समझ सकें। परन्तु राष्ट्रपति शिराक
रोष स्वरूप यूरोपियन संसद से उठ कर बाहर चले गये क्योंकि एक फ्रांसीसी
कलाकार फ्रांसीसी की बजाय अंग्रेज़ी में क्यों सम्बोधन कर रहा है? हिन्दुस्तान में
भी बंगाली, तेलगू, तमिल आदि बोलने वाले यथा सम्भव किसी अन्य भाषा में नहीं
बोलते। परन्तु पंजाबी तो पता नहीं क्यों पंजाबी के लिए कभी भी राष्ट्रपति शिराक
की भांति अपनापन नहीं रखते। ़खैर, हमारा पहला पग भारतीय पंजाब में इसका
राजकीय रुतबा इसे दिलाने का होना चाहिए तथा यह सरकारी एवं अदालती भाषा
होनी चाहिए। सिर्फ कागज़ों में ही नहीं, अपितु क्रियात्मक रूप में पाकिस्तानी पंजाब
में, बेशक शाहमुखी प्रयुक्त करें, परन्तु उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर जब भी मिलें तो
यही कहना चाहिए कि वे भी पंजाबी को पाकिस्तानी पंजाब में सरकारी भाषा बनाने
के लिए प्रयासरत हों तथा इस संबंध में जनमत बनायें कि इसके साथ ही गुरुमुखी
एवं शाहमुखी का लिपियांतरण करने वाले एप तथा साफ्टवेयर बड़ी संख्या में बनाये
जाएं और नि:शुल्क उपलब्ध भी करवाये जाएं। पंजाबी भाषा को अमीर तथा
कम्प्यूट्रीकृत बनाने हेतु जितना भी खर्च ज़रूरी हो, वह पूर्वी पंजाब में सरकार करे।
शिरोमणि कमेटी तथा अन्य पंजाबियों तथा सिखों की समर्थ संस्थाएं भी अपनी
बनती भूमिका निभाएं। आश्चर्यजनक बात यह है कि हमारे कुछ कथित
पंजाबी-प्रस्त अन्य भाषाओं के शब्द पंजाबी में उपयोग करने के खिल़ाफ हैं जबकि
इस समय भी पहले स्थान की भाषा अंग्रेज़ी ने लगभग 80 प्रतिशत शब्द अन्य
भाषाओं से लिए हैं। चाहे उनमें ध्वनि-सूचक बदलाव करके लिये अथवा हू-ब-हू
स्वीकार कर लिये। हमने भी टैक्नालोजी को तकनालोजी में बदला, अस्पताल तथा
स्कूल को हू-ब-हू स्वीकार किया। फिर नई तकनीकों के अनुकूल होने हेतु अन्य
भाषाओं के हमारी ध्वनि पर पूरा उतरते वैज्ञानिक शब्द अपना लिये जाएं तथा शेष
का स्वरूप कुछ बदल कर पंजाबी के अनुकूल बना लिये जाने के अलावा हमारे पास
अन्य विकल्प नहीं है? स्मरण रहे कि जिस भाषा को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त
नहीं होता और जो सामयिक तक्नालोजी के समकक्ष नहीं बनती, अंतत: वह मिटे
या न मिटे, परन्तु वह लातीनी तथा संस्कृत जैसी स्थिति में ज़रूर पहुंच जाती है। 
सम्भल के होश ज़रा कल की फिक्र कर साकी,
छलक न जायें कहीं भर चुके हैं पैमाने।।
मो. 92168-60000