‘द हिट गर्ल’ आशा पारिख को मिला दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

बॉलीवुड की रिटायर्ड अभिनेत्री आशा पारिख को वर्ष 2020 के दादा साहेब फाल्के अवार्ड के लिए चुना गया था। भारतीय सिनेमा के क्षेत्र में यह सबसे बड़ा सम्मान है। 79-वर्षीय आशा पारिख को यह पुरस्कार 30 सितम्बर 2022 68वें राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भेंट किया। 95 फिल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय प्रतिभा व नृत्य कौशल से पांच दशकों तक सिने प्रेमियों को अपना दीवाना बनाने वाली आशा पारिख को यह सम्मान शायद देर से मिल रहा है, लेकिन इस बात से किसी को इंकार नहीं है कि वह इस सम्मान के योग्य हैं।
गौरतलब है कि 1992 में उन्हें पदमश्री से सम्मानित किया गया था और 1998 से 2001 तक वह सेंट्रल बोर्ड ऑफ सर्टिफिकेशन की प्रमुख रहीं। इस बोर्ड की वह पहली महिला प्रमुख थीं। दादा साहेब फाल्के अवार्ड समिति की एक सदस्य पूनम ढिल्लों का कहना है कि जब टैलेंट की भरमार हो तो किसी एक नाम का चयन करना कठिन होता है, लेकिन आशा पारिख के नाम पर जूरी के सभी सदस्य एकमत थे, विशेषकर इसलिए कि वह चयन की सभी शर्तों पर खरी उतरती हैं। वह आइकॉन हैं, उनका बॉडी ऑफवर्क ज़बरदस्त है, उनकी प्रभावी शख्सियत व समाज सेवा के कार्यों के कारण फिल्मों में उन्हें विशिष्ट स्थान प्राप्त है। पांच सदस्यों की इस जूरी के अन्य सदस्य थे आशा भोंसले, हेमा मालिनी, उदित नारायण व टीएस नागाभरना।
दादा साहेब फाल्के अवार्ड सबसे पहले वर्ष 1969 में देविका रानी को दिया गया था। आशा पारिख इसकी 52वीं विजेता हैं। इस सम्मान को प्राप्त करने वाले कुछ प्रमुख नाम हैं पृथ्वीराज कपूर (1971), सोहराब मोदी (1979), नौशाद (1981), सत्यजीत रे (1984), वी शांताराम (1985), राज कपूर (1987), अशोक कुमार (1988), लता मंगेशकर (1989), भूपेन हजारिका (1992), मजरूह सुल्तानपुरी (1993), दिलीप कुमार (1994), राजकुमार (1995), बी.आर. चोपड़ा (1998), आशा भोंसले (2000), देवानंद (2002), मृणाल सेन (2003), अदूर गोपाल कृष्णन  (2004), मन्ना डे (2007), अमिताभ बच्चन (2018) व रजनीकांत (2019)।
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि आशा पारिख चर्चित फिल्म अदाकारा, निर्देशक, निर्माता व कुशल भारतीय क्लासिकल डांसर हैं। उन्होंने बाल कलाकार के रूप में अपना करियर 1952 में फिल्म ‘आसमान’ से आरंभ किया था व इसके दो साल बाद उन्होंने बिमल राय की फिल्म ‘बाप बेटी’ में काम किया और बतौर लीड अभिनेत्री के उनकी पहली फिल्म शम्मी कपूर के साथ 1959 में ‘दिल देके देखो’ थी। उनकी 95 से अधिक फिल्मों में ‘कटी पतंग’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘लव इन टोक्यो’, ‘आया सावन झूम के’, ‘आन मिलो सजना’ व ‘मेरा गांव मेरा देश’ कुछ यादगार फिल्में हैं जो आज भी दर्शकों को बेहद पसंद आती हैं। अभिनेत्री, निर्माता व निर्देशक आशा पारिख का जन्म एक मध्यम वर्ग के गुजराती परिवार में 2 अक्तूबर 1942 को हुआ था। उनके पिता प्राणलाल पारिख हिन्दू थे और मां सुधा पारिख बोहरा मुस्लिम संप्रदाय से सम्बन्धित थीं।
चूंकि वह इकलौती सन्तान थीं, इसलिए पूरे परिवार का प्यार उन्हीं पर बरसता था। कम आयु में ही उनकी मां ने उन्हें क्लासिकल नृत्य कक्षा में भर्ती करा दिया और वह इसमें जल्द ही इतनी पारंगत हो गईं कि स्टेज शो करने लगीं। नामवर फिल्म निर्देशक बिमल रॉय ने उन्हें एक शो में देखा और उन्हें मात्र 12 वर्ष की आयु में बाल कलाकार की भूमिका ऑफर की। उनकी शुरुआती फिल्में असफल रहीं, जिससे वह काफी दु:खी हुईं, लेकिन कुछ और फिल्मों में बाल भूमिकाएं करने के बाद उन्होंने अपनी पढाई पूरी करने के लिए फिल्मी दुनिया छोड़ दी। 16 वर्ष की आयु में उन्होंने फिर फिल्मों में किस्मत आजमाने का निर्णय लिया। क्योंकि फिल्मों में छोटे-छोटे रोल कर चुकी थीं लेकिन उनका हीरोइन बनने का सपना अभी शेष था। ऐसे में आई.एस. जौहर ने उन्हें ‘बेवकूफ’ में काम करने का ऑफर दिया, जिसे निर्देशक विजय भट्ट के कहने पर उन्होंने ठुकरा दिया क्योंकि वह उन्हें अपनी फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में लेना चाहते थे और लिया भी।
लेकिन जल्द ही आशा पारिख को इस फिल्म से निकाल दिया गया। आशा पारिख के पास कुछ समय तक कोई काम नहीं था। तभी नासिर हुसैन उनके लिए फरिश्ता बनकर आए और ‘दिल देके देखो’ (1959) उन्हें ऑफर की। लेकिन इसमें भी एक समस्या थी। फिल्म के हीरो शम्मी कपूर चाहते थे कि वहीदा रहमान उनकी हीरोइन बनें। बहरहाल नासिर हुसैन ने हस्तक्षेप करते हुए शम्मी कपूर से कहा कि वह एक बार कम से कम आशा पारिख से मिल तो लें। वह तैयार हो गए। जब दोनों की मुलाकात हुई तो उस समय 16-17 साल की आशा पारिख हेरोल्ड रॉबिन्स का उपन्यास ‘कारपेट बेगर्स’ पढ़ रही थीं। चूंकि इस उपन्यास में काफी ‘अश्लीलता’ है तो शम्मी कपूर ने कहा, ‘यह कम उम्र की बच्चियों के पढ़ने की किताब नहीं है।’ आशा पारिख ने तुरंत जवाब दिया, ‘जी, चाचा जी।’ और दोनों की उसी समय से अच्छी जोड़ी बन गई।
आशा पारिख ने हमेशा शम्मी कपूर को चाचा कहकर संबोधित किया और शम्मी कपूर उन्हें मरते दम तक ‘भतीजी’ कहते रहे। ‘दिल देके देखो’ फिल्म उनके 17वें जन्मदिन पर रिलीज़ हुई। फिल्म हिट हुई और आशा पारिख ‘हिट गर्ल’ बन गईं। समय के साथ आशा पारिख बॉलीवुड इतिहास की सबसे सफल व प्रभावी अभिनेत्री बन गईं, जिसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी मां को अनेक फिल्मों में ड्रेस डिज़ाइनर का काम दिलाया। गौरतलब है कि आशा पारिख ने अपनी आत्मकथा का शीर्षक भी ‘द हिट गर्ल’ ही रखा है। यह पुस्तक 2017 में रिलीज़ हुई। इसे उन्होंने खालिद मुहम्मद के साथ मिलकर लिखा है। आशा पारिख अविवाहित हैं। क्या परिवार के न होने पर उन्हें अफसोस होता है? आशा पारिख बताती हैं, ‘मेरे जीवन में एक विशेष व्यक्ति था। मैं सामान्य महिला हूं...एक समय था जब मुझे अपना परिवार न होने पर अफसोस होता था। लेकिन अब जब मैं इतने विवाहों को टूटता हुआ देखती हूं तो सोचती हूं कि अविवाहित रहना ही बेहतर रहा। आज इतने जोड़े केवल इसलिए साथ हैं कि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है।’
बहरहाल, इस ‘विशेष व्यक्ति’ का नाम आशा पारिख ने स्वयं अपनी आत्मकथा में खोल दिया। ‘दिल देके देखो’ में भले ही आशा पारिख ने पर्दे पर शम्मी कपूर को दिल दिया हो लेकिन असल जीवन में वह फिल्म के निर्देशक नासिर हुसैन को दिल दे बैठीं, जोकि आमिर खान के पिता ताहिर हुसैन के भाई थे। वह नासिर हुसैन से शादी करना चाहती थीं, लेकिन वह पहले से ही शादीशुदा थे और आशा पारिख उनका घर बिगड़ना नहीं चाहती थीं, इसलिए उन्होंने कभी शादी ही नहीं की। उनके अनुसार अंत तक यह रिलेशनशिप बहुत अच्छी रही। लेकिन जब नासिर हुसैन ने अपनी पत्नी के निधन के बाद घर से निकलना बंद कर दिया था तभी उनका आपस में मिलना बंद हुआ। नासिर हुसैन के निधन (2002) के एक दिन पहले आशा पारिख ने उनसे फोन पर बात की थी।
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