शब्दों की मर्यादा को लांघती देश की राजनीति

गुजरात विधानसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे गुजरात में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। भाजपा, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस समेत सभी दल गुजरात में सक्रिय हो चुके हैं। ऐसे में चुनावी भाषण और बयानबाजी में भी तल्खी बढ़ती जा रही है। पिछले दिनों गुजरात में आम आदमी पार्टी के प्रमुख गोपाल इटालिया का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। जिसमें गोपाल इटालिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अभद्र भाषा में कई आपत्तिजनक टिप्पणियां करते दिखाई पड़ रहे हैं। इस वीडियो के सामने आने के बाद भाजपा ने आम आदमी पार्टी को निशाने पर ले लिया। भाजपा नेताओं ने गोपाल इटालिया की इस अभद्रता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही गुजरात का अपमान बताया।
वहीं, गोपाल इटालिया ने इसे फर्जी वीडियो बताते हुए अपनी सफाई में कहा कि ‘उन्हें पाटीदार होने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है।’ आखिर यह बार-बार क्यों होता है कि चुनावों के दौरान देश के प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया जाता है या राजनीतिक, सामाजिक मर्यादाएं तार-तार की जाती हैं? इसे एक संयोग ही कहा जाएगा कि 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसे ही अपशब्द कहा गया था। उस दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने ये अपशब्द इस्तेमाल किए थे। भाजपा ने इसे प्रधानमंत्री की जाति का मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस को बैकफुट पर डाल दिया था।
क्या लोकतंत्र में ऐसा भी होता है कि जनादेश अपशब्दों या अहंकारों पर तय किए जा सकते हैं? क्या अपशब्द भी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ की परिधि में आते हैं? क्या जनता में प्रधानमंत्री के प्रति वितृष्णा, विक्षोभ, गुस्सा और नफरत के भाव पैदा करने हेतु भी गालियां दी जाती हैं और असंसदीय व्यवहार वाले चुनावी कामयाबी भी हासिल कर लेते हैं? हमारे जेहन में ऐसे कई सवाल उमड़-घुमड़ करते रहे हैं, क्योंकि खासकर गुजरात चुनाव प्रचार विषाक्त हो गया है। हालांकि चुनाव आयोग ने मतदान और मतगणना का कार्यक्त्रम अभी घोषित नहीं किया है, लेकिन चुनावी और संवैधानिक मर्यादाओं को लगातार लांघा जा रहा है।
बीते दिनों गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपने गृहराज्य पहुंचे नरेंद्र मोदी ने एक रैली में पलटवार करते हुए कहा कि ‘पिछले 20 साल से जो लोग गुजरात के खिलाफ  थे, उन्होंने राज्य को बदनाम करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी। उन्होंने मुझे मनचाही गालियां दीं, मुझे मौत का सौदागर भी कहा. लेकिन, अचानक वे चुप हो गए हैं। उन्होंने मुझे गाली देने, हंगामा करने और शोर मचाने का काम दूसरों को दे दिया है।’ यहां गौर करने वाली बात यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने जवाबी हमले में कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी को भी लपेट लिया। दरअसल, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री कभी भी इस तरह के अपशब्दों पर सीधी प्रतिक्रिया नहीं देते  बल्कि, उसे अपने चुनावी बयानों में ढाल कर अपना सियासी हथियार बना लेते हैं। 2018 के एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि ‘इस तरह की आलोचनाओं को मैं अपना सौभाग्य मानता हूं।’
सोचने की बात यह है कि यदि उच्च शिक्षित, कथित संस्कारी और ईमानदार तथा दिल्ली अर्र्धराज्य के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इस विषाक्त दौड़ में शामिल हैं, तो बहुत संताप होता है। कांग्रेस में मणिशंकर अय्यर, जयराम रमेश, शशि थरूर, प्रमोद तिवारी और सबसे बढ़कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और आलाकमान नेता राहुल गांधी आदि ने, प्रत्यक्ष तौर पर, प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपशब्दों और भद्दे विशेषणों का प्रयोग किया है, तो वे भी निंदनीय हैं, क्योंकि वे सभी खूब पढ़े-लिखे हैं और संवैधानिक पदों पर रहे हैं। अब भी कमोबेश सांसद तो हैं। 
इतिहास सोनिया गांधी के ‘मौत का सौदागर’ सरीखे अपशब्दों को भूल नहीं सकता जिन्होंने प्रधानमंत्री को तानाशाह, हिटलर, सांप, बिच्छू, कातिल, हत्यारा, भस्मासुर, कुएं का मेंढक, वायरस आदि करार दिया और प्रधानमंत्री के लिए ही ‘खून की दलाली’ जैसे गंभीर आरोप चस्पा किए। क्या जनता का आम आदमी उन्हें नजरअंदाज कर देगा? हालांकि चुनाव के मौजूदा परिदृश्य में कांग्रेस अपेक्षाकृत खामोश है और अपनी परम्परागत सीटों पर ही जोर लगा रही है, लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) गालियों के संदर्भ में बेहद आक्रामक और बेलगाम है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ‘चौकीदार चोर है’ का सियासी नारा दिया था। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राफेल डील में घोटाला करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है कि चौकीदार चोर है। दरअसल, कांग्रेस के पास मोदी सरकार के खिलाफ  कोई चुनावी मुद्दा नहीं था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के इस नारे को ही अपना सियासी हथियार बना लिया। उन्होंने लोकसभा चुनाव में इस नारे को ‘मैं भी चौकीदार’ के सोशल मीडिया कैंपेन में बदल दिया जिसके बाद बड़ी संख्या में सोशल मीडिया यूजर्स ने अपने नाम के साथ चौकीदार जोड़ना शुरू कर दिया। देखते ही देखते राहुल गांधी अपने इस नारे पर घिर गए। वहीं, कुछ समय बाद इस नारे की वजह से राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बिना शर्त माफी तक मांगनी पड़ गई।
केजरीवाल ने अब ‘कृष्ण अवतार’ का अहंकार पाल लिया लगता है। वह बार-बार मंचों से जनसभा को संबोधित करते हुए ताल ठोंक रहे हैं कि भगवान ने उन्हें ‘कंस की औलादों’ का वध करने पृथ्वी पर भेजा है। वाह! क्या अहंकार और खुशफहमी है कि केजरीवाल सरीखे नेता जनादेश को पुख्ता करने के लिए गालियां दे रहे हैं? उन्होंने तो शुचिता, ईमानदारी, नैतिकता और जनवादी मुद्दों वाली राजनीति करने का दावा करते हुए सियासत की शुरुआत की थी। आखिर गुजरात में ‘कंस’ कौन है, क्योंकि केजरीवाल मुगालते में हैं कि कांग्रेस तो ‘मृतप्राय’ पार्टी है। जाहिर है कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और भाजपा के शीर्ष नेता ही ‘कंस’ हो सकते हैं! क्या चुनाव प्रचार के दौरान ऐसे अपशब्दों को सार्वजनिक मंच से बोलना कानूनन दंडनीय अपराध नहीं है? दरअसल सवाल यह भी है कि ‘नीच’ या ‘कंस’ सरीखे अपशब्दों से आम जनता का क्या लेना-देना है? जनादेश तो जनता ने ही देना है, लिहाजा वे मुद्दे और समस्याएं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, जो सीधा जनता से जुड़े हैं।