विदेशी चीते बनाम स्वदेशी जानवर

इधर जब से विदेशी चीते आए हैं, स्वदेशी जंगली जानवरों में खलबली मच गयी है। अब तक छुए-मुए से डोलते जानवर बतियाने लगे हैं कि कहीं ये चीते उनका ही शिकार न कर लें। वैसे जंगल में आए दिन किसी न किसी का शिकार होता ही रहता है। रोज बकरे की माँ खैर मनाती है पर फिर भी किसी न किसी को तो बलि का बकरा बनना ही पड़ता है। मगर अब हालात बदले हुए हैं क्योंकि जंगल और शहर सिकुड़ते-सिकुड़ते एक-दूसरे के करीब जो आ गए हैं।  लिहाजा इंसानी राजनीति की व्यापकता से अब जानवर भी अछूते न रहे। सुना है, विपक्षी एकता की तर्ज पर जंगल के तमाम जानवर भी अब लामबंद होने लगे हैं। बूढ़े सियार बता रहे हैं कि आपरेशन एकता के नाम से वे बहुत जल्द उन चीतों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले हैं।  
बताया जा रहा है कि जानवरों ने कुछ मुद्दे तय किए हैं जिनके आधार पर आंदोलन छेड़ा जा सकता है। पहला, चीते विदेशी हैं। इन्हें पालने से लोकल बाघ-बघेरों में गलत संदेश जाएगा कि ये कुछ न कर पा रहे थे सो विदेशी बुला लिए गए। बड़ी मुश्किल से तो इस देश से विदेशी खदेड़े गए थे.....।
दूसरा, ये चपल, चुस्त चीते हमारे ही जानवरों को खाकर हमारे ही बीच रहेंगे। अब जो इंसानों के बीच बाहर वाले चले आए थे, उनसे जुड़ी समस्याएं तो अब तक न निपट पाईं, हम ठहरे जानवर। भला हम कैसे निपटा पाएंगे। तीसरे, ये हमारी बाघिनों, तेंदुनियों और सिंहनियों से छेड़छाड़ कर सकते हैं या ऐसा भी हो सकता है कि इंसानों की तरह यहाँ भी लव-जिहाद टाइप कुछ शुरु हो जाए, ऐसे में क्या होगा। चौथा, कल को इन चीतों को भी अल्पसंख्यक मानकर और सुविधाएं दे दी गईं तो हमारा क्या होगा। इसके अलावा और भी कई छोटी-बड़ी बातें हैं जिन पर वरिष्ठ जानवरों का मंथन जारी है।  हमें खबर मिली है कि चीते भी खाली-पीली नहीं बैठे। उन्होंने भी अपने जुगाड़ बिठा लिए हैं। चारे का इंतजाम सरकार ने कर ही दिया है, कुछ पुराने जानवरों से सेटिंग बैठ ही जाएगी। हर काल में बिकाऊ मौजूद होते हैं सो चीतों को भरोसा है कुछ बंदर, कुछ भालू, कुछ लकड़बग्घे इनके भी पाले में आ ही जाएंगे। चीतों का मानना है कि इधर सेटिंग बनी, उधर जानवरों की एकता गई भाड़ में। सो कुछ दिनों से बाहरी चीते अनावश्यक शिकार छोड़ राम-राम भजने में लगे हैं। जितना विनम्र ये दिखेंगे, उतना ही इनका दायरा बढ़ेगा। पैठ बढ़ाने के लिए बाहर से ही सही, पर अहिंसक दिखना जरूरी है। डर है कहीं हमारी उठा-पटक का असर जंगल पर न पड़ जाए क्योंकि इंसानों और जानवरों की विभाजन-रेखा धूमिल जो पड़ती जा रही है। (अदिति)