दिल्ली की राजनीति में कम हो रहा है सिखों का प्रभाव

़िफरते हैं मीर ़ख्वार कोई पूछता नहीं,
इस ‘ब़ेखुदी’ में इज्ज़त-ए-सादात भी गई।
हालांकि उस्ताद मीर तकी मीर के असल शे’अर में ‘ब़ेखुदी’ के स्थान पर असल शब्द ‘आशकी’ है परन्तु वास्तव में जिस विषय पर लिख रहा हूं, वहां शब्द ब़ेखुदी भी पूरी तरह से उपयुक्त नहीं दिखता। यहां लालच, अहंकार, डरपोक, बेसमझी या राजनीति से अनजान जैसे शब्द उपयोग किये जाने बनते हैं परन्तु शायद मुझमें इतना हौसला नहीं और दूसरे, इन शब्दों के समानार्थक शब्द इस शे’अर का वज़न तथा लय भी बिगाड़ सकते हैं। चलो, ़खैर मेरा आज का विषय है कि दिल्ली की राजनीति में ‘सिख प्रभाव’ लगभग खत्म हो गया है। कभी दिल्ली में चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, यह सोच भी नहीं सकते थे कि सिखों को साथ लिये बिना या सम्मान दिये बगैर दिल्ली में राजनीति की जा सकती है। अंग्रेज़ों के समय भी दिल्ली में सिख मेयर बने। दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री एक सिख गुरमुख निहाल सिंह था। बावा बचित्तर सिंह लगभग 10 वर्ष दिल्ली के मेयर रहे। न्यू दिल्ली कार्पोरेशन कमेटी में भाई मोहन सिंह भी उच्च पद पर रहे। 1984 में महिन्द्र सिंह साथी दिल्ली के मेयर थे। अब भी भाजपा की ओर से उत्तरी दिल्ली नगर कार्पोरेशन के अवतार सिंह तथा राजा इकबाल सिंह मेयर रहे हैं। दिल्ली में चाहे कांग्रेस का शासन रहा, चाहे भाजपा का, एक सिख मंत्री ज़रूर लिया जाता था। किसी समय दिल्ली में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन तरलोचन सिंह की तूती बोलती थी। हरकिशन सिंह सुरजीत चाहे वामपंथी थे परन्तु एक सिख चेहरा तो थे ही। वह भी दिल्ली में राष्ट्रीय राजनीति के जोड़-तोड़ के भीष्म पितामह के रूप में विचरण करते रहे। नई दिल्ली के निर्माण के ठेकेदारों में सर सोभा सिंह, स. बहादुर वसाखा सिंह, स. बहादुर रणजीत सिंह तथा कोका कोला वाले मोहन सिंह के नाम वर्णननीय हैं तथा ये सिख राजनीति को गोपनीय तरीके से चलाने में बड़ी भूमिका निभाते रहे। यह नहीं कि अब दिल्ली के सिख अमीर नहीं रहे, परन्तु अब स्थिति यह है कि अच्छा खाते-पीते सिख घराने राजनीति से दूर रहने को प्राथमिकता देने लगे हैं। भाजपा के पंजाबी नेताओं विजय कुमार मल्होत्रा, केदारनाथ साहनी तथा मदन लाल खुराना उनका चाहे आपस में टकराव भी था परन्तु उस दौर में भी भाजपा सिखों को साथ लेकर ही चलती थी। सिखों को दिल्ली की राजनीति में मऩफी कभी नहीं किया गया था परन्तु इस बार 4 दिसम्बर को होने वाले नगर कार्पोरेशन के चुनाव जो दिल्ली की 3 नगर कार्पोरेशनों को भंग करके दिल्ली की एक सांझी कार्पोरेशन बनाए जाने के बाद पहली बार हो रहे हैं, में किसी भी पार्टी ने सिखों को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया। वैसे सबसे अधिक सिख उम्मीदवार भाजपा ने उतारे हैं। इनकी संख्या 8 है जबकि कुल सीटें 250 हैं। अब स्वयं सोच लें कि 8 में से कितने  जीत प्राप्त करेंगे तथा उनका 250 में क्या प्रभाव होगा? कांग्रेस ने सिर्फ 5 सिख उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं तथा दिल्ली में शासन कर रही आम आदमी पार्टी द्वारा सिर्फ 4 सिख उम्मीदवार बनाये गये हैं। यह संख्या सिखों की दिल्ली में जनसंख्या के अनुपात के अनुसार भी नहीं है जबकि कुछ दशक पूर्व सिखों को अनुपात से अधिक सम्मान मिलता था।  वास्तव में सिख नेताओं की आपसी फूट तथा दिल्ली में सिखों की जनसंख्या का लगातार कम होते जाना तथा दिल्ली में उत्तर प्रदेश तथा बिहार के प्रवासियों की बढ़ती संख्या तथा प्रभाव भी इसके मुख्य कारण हैं। वैसे सिख नेताओं के साथ-साथ सिख स्वयं भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं क्योंकि सिखों का सरबत के भले वाला तथा ज़रूरतमंदों की सहायता करने और अलग दिखने वाला प्रभाव कम होने कारण भी सिखों की स्थिति कमज़ोर हुई है। सिख नेताओं तथा अन्य नेताओं  के किरदार में अब कोई अन्तर भी दिखाई नहीं देता कि ़गैर-सिख लोग सिखों को विशेष महत्त्व दें। फिर 1984 के सिख कत्लेआम के बाद भी सिखों का प्रभाव कम हुआ है।
आम आदमी पार्टी की दिल्ली में सिखों को राजनीतिक शक्ति देने से दूर रखने की रणनीति ने जलती पर तेल डालने का कार्य किया है। पहली बार मंत्रिमंडल में किसी सिख को शामिल नहीं किया गया। आश्चर्यजनक बात है कि पंजाब में ‘आप’ के प्रभारी तो जरनैल सिंह थे परन्तु पूरा श्रेय तथा ईनाम सहायक प्रभारी राघव चड्ढा को दिया जा रहा है जो प्रकट करता है कि जरनैल सिंह तो पंजाब में सिखों की बहुसंख्या को मूर्ख समझने या बनाने के लिए नाममात्र के ही प्रभारी बनाए गए थे। जो चर्चाएं ‘आप’ के दूसरे पूर्व विधायक स्व. जरनैल सिंह की हालत के संबंध में सुनी गई हैं, वे भी यही प्रकट करती हैं कि दिल्ली की ‘आप’ राजनीति में सिखों को शायद सिख होने के कारण ही दृष्टिविगत किया जाता है।
वास्तव में किसी भी ग्रुप या धार्मिक अल्पसंख्यक का एक भ्रम तथा प्रभाव बना होता है कि वे चुनावों में हार-जीत के फैसले में प्रभावी हो सकते हैं। हालांकि अभी भी दिल्ली में सिख 10 से 20 सीटों पर जीत-हार का फैसला करने में समर्थ हैं, परन्तु सिख नेताओं की आपसी फूट इस प्रभाव को खत्म कर रही है।
यह ज़रूरी है कि आंखों का भ्रम कायम रहे,
नींद रखो न रखो, ख़्वाब मेआरी रखो।
(राहत इन्दौरी)
जत्थेदार अकाल त़ख्त साहिब के ध्यानार्थ
श्री अकाल त़ख्त साहिब के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह चाहे अपने द्वारा की गई बहुत-सी घोषणाओं पर क्रियान्वयन न करवा पाने के कारण अपना प्रभाव गंवा रहे हैं, परन्तु फिर भी वह जिस पद पर हैं, उसकी सामर्थ्य तो कायम है। इसलिए जब भी सिखों के लिए कुछ नुकसानदायक हो रहा प्रतीत होता है, तो स्वाभाविक रूप से सिख जत्थेदार अकाल तख्त साहिब की ओर ही देखते हैं। 
भारत की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने आज 24 नवम्बर को साहिब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के शहीदी दिवस का संदेश देश के लोगों को दिया है। आज ही हरियाणा सरकार ने श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की शहादत को श्रद्धांजलि भेंट करते हुए बड़े-बड़े विज्ञापन समाचार पत्रों में प्रकाशित किये हैं, जो यह प्रभाव दे रहे हैं जैसे श्री गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस आज हो। यह सम्मान प्रकट करने के लिए हम राष्ट्रपति तथा हरियाणा सरकार का धन्यवाद करते हैं, परन्तु शिरोमणि कमेटी यह दिवस 28 नवम्बर को मना रही है। चंडीगढ़ प्रशासन ने भी 28 नवम्बर को गुरु साहिब के शहीदी दिवस पर छुट्टी करने की घोषणा की है। इसी प्रकार श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश पर्व 29 दिसम्बर अर्थात् 14 पौष को आ रहा है और फतेहगढ़ साहिब का शहीदी जोड़ मेला 28 दिसम्बर को सम्पन्न होता है, जिस कारण गुरु साहिब के प्रकाश पर्व के नगर कीर्तन कैसे सजाए जाएं, यह विचारणीय है। वर्ष 2025 में तो यह प्रकाश पर्व 13 पौष को उसी दिन आएगा, जिस दिन शहीदी जोड़ मेला होगा। 
इस संबंध में कुछ सिख विद्वानों ने जत्थेदार साहिब को पत्र भी लिखे हैं और बताया जा रहा है कि स्वयं जत्थेदार साहिब भी इसके संबंध में चिन्तित हैं। इसलिए, जत्थेदार साहिब को अपील है कि वह शिरोमणि कमेटी द्वारा लागू, मौजूदा नानकशाही कैलेंडर तथा पहले लागू करके कुछ संगठनों के दबाव में आकर हटाये गए कैलेंडर में तालमेल स्थापित कर एक सर्वप्रमाणित नानकशाही कैलेंडर लागू करवाने के लिए समयबद्ध पग उठाने का हौसला करें। हमारा यह निवेदन है कि यदि सर्वसम्मति नहीं भी होती तो इस संबंध में जानकार विद्वानों की कमेटी की राय तथा बहुसम्मति से एक ऐसा कैलेंडर लागू किया जाए जो सिख इतिहास की तिथियों के टकराने का समाधान भी करता हो। 
या तो दीवाने हैं जो बोलते हैं इन दिनों
या जिन्हें ़खामोश रहने की सज़ा मालूम है। 
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना
मो. 92168-60000