जनरल मुनीर की नियुक्ति का महत्व 


पाकिस्तान की आंतरिक स्थितियों को देखते हुए वहां के नये सेनाध्यक्ष की नियुक्ति अतीव महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इससे पूर्व जनरल कमर जावेद बाजवा 6 वर्ष तक सेना के प्रमुख रहे। चाहे इस काल के दौरान भारत एवं पाकिस्तान दोनों देशों के बीच कटुता बनी रही जो आज भी कायम है, परन्तु बाजवा को एक सुलझा हुआ एवं दूरदर्शी जनरल माना जाता रहा है। उनका करतारपुर गलियारे को खोलने में भी बड़ा योगदान था। 
अपनी सभी सीमाओं के बावजूद उनका प्रभाव यही बना रहा कि वह भारत के साथ अच्छे संबंध चाहते थे। इस संबंध में अक्सर उनके बयान भी आते रहे थे। जिस प्रकार पाकिस्तान की असैम्बली ने इमरान खान को उनके पद से हटाया, उसमें हम अधिक दोष इमरान का ही मानते हैं, जो अपने साथियों को अपने साथ नहीं रख सके। इमरान ने प्रधानमंत्री का पद सम्भालने से पूर्व भी पाकिस्तान में ज़बरदस्त लहर चला कर तथा  बड़ी संख्या में लोगों को साथ लेकर प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ का तख्ता पलट दिया था। बाद में सम्पन्न हुए चुनावों में उन पर यह आरोप लगता रहा कि उन्होंने सेना की सहायता से ही सरकार बनाई है परन्तु उनका कार्यकाल भारी उलट-फेर वाला रहा। जिन आतंकवादी संगठनों के लिए वह दम भरते रहे थे, उनके साथ उनका भारी तनाव बन गया। सेना के साथ भी वह एक-स्वर नहीं रह सके। विपक्षी पार्टियों के बड़े नेताओं को जेलों में डाल कर उन्होंने राजनीतिक विरोध को शत्रुता में बदल दिया। उनकी अपनी पार्टी तथा अन्य भागीदार पार्टियों के अधिकतर मित्र उनसे नाराज़ एवं निराश हो गये जिसके कारण उन्हें समय से पूर्व ही त्याग-पत्र देने के लिए विवश कर दिया गया। 
विगत पूरे समय में वह इस बात के लिए सेना को तथा अमरीका को दोषी ठहराते रहे हैं। बड़ी संख्या में अपने साथियों को साथ लेकर लम्बा मार्च निकालने का उनका मतलब समय से पूर्व चुनाव कराना तथा नई सरकार बनने पर ही नये सेना प्रमुख की नियुक्ति करना था परन्तु शाहबाज़ शऱीफ की सरकार ने उनकी ये दोनों असंवैधानिक मांगें रद्द कर दीं तथा घोषणा की कि आगामी आम चुनाव निश्चित समय पर ही होंगे। इसके साथ ही उन्होंने कमर जावेद बाजवा के सेवामुक्त होने से पूर्व लैफ्टिनैंट जनरल सैयद आसिम मुनीर को नया सेनाध्यक्ष घोषित कर दिया। चाहे पाकिस्तान में आज भी राष्ट्रपति आरिफ अल्वी इमरान खान की पार्टी के हैं, परन्तु उन्हें भी इस घोषित नियुक्ति को स्वीकार करना पड़ा। 
जनरल आसिम मुनीर पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी ‘आई.एस.आई.’ के प्रमुख भी रहे हैं। उन पर वर्ष 2019 में भारत में हुए पुलवामा हमले के सम्मन्ध में अंगुली भी उठती रही है, परन्तु इमरान खान के प्रधानमंत्री रहते हुए दोनों के आपसी संबंध सुखद नहीं थे। आसिम मुनीर के अतीत को देखते हुए भारत को और भी सचेत होने की आवश्यकता होगी। यह भी प्रभाव मिलता है कि चाहे प्रधानमंत्री शाहबाज़ शऱीफ पहले भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने के इच्छुक रहे हैं परन्तु अब सेना प्रमुख के साथ इस संबंध में उनकी किस सीमा तक सहमति बन सकेगी, यह समय ही बताएगा। राजनीतिक तौर पर यह नियुक्ति इमरान खान के लिए एक बड़ा झटका अवश्य मानी जा सकती है। पहले सेना प्रमुख जनरल बाजवा की सेवामुक्त होने से पूर्व यह घोषणा कि सेना देश की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती, भी महत्वपूर्ण है। इस समूचे घटनाक्रम को देखते हुए भारत में जनरल मुनीर की नियुक्ति को अहम अवश्य माना जा रहा है। 


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द