सोने का सिक्का


एक बार एक राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। लोग भूखे मरने लगे। वहीं एक छोटे से कस्बे में एक धनी व्यक्ति रहता था जो बहुत दयालु था। उसने घोषणा की कि वह कस्बे के सभी छोटे बच्चों को रोज़ सुबह एक-एक रोटी देगा। अगले दिन सुबह ही उसके घर के सामने रोटी लेने वाले बच्चों की भीड़ जमा हो गई। तभी रोटियां लाई गई लेकिन सभी रोटियां एक जैसी नहीं थीं। कुछ रोटियां बड़ी थीं तो कुछ छोटी। सभी बच्चे बड़ी रोटी पाना चाहते थे इसलिए धक्का-मुक्की करने लगे सिवाय एक छोटी लड़की के। वह चुपचाप एक तरफ़  खड़ी हुई भीड़ के समाप्त होने का इंतज़ार कर रही थी। जब सब बच्चे रोटियां उठा चुके तब वह छोटी लड़की आगे आई। टोकरी में सिर्फ  एक रोटी बची थी और वो भी सबसे छोटी। लड़की ने प्रसन्नतापूर्वक वह रोटी उठाई और रोटियां बांटने वालों का धन्यवाद करके अपने घर चली गई।
दूसरे दिन फिर रोटियां बंटी। दूसरे दिन भी रोटियां एक जैसी न होकर छोटी-बड़ी ही थीं। बड़ी रोटी पाने के लिए फिर धक्का-मुक्की होने लगी लेकिन छोटी लड़की आज भी शांत खड़ी थी। उसने सबसे अंत में बची हुई सबसे छोटी रोटी उठाई और रोटी बांटने वालों का धन्यवाद करके अपने घर चली गई। यह क्रम लगातार चलता रहा। हर सुबह रोटियां बंटतीं और सब बड़ी से बड़ी रोटी पाने के लिए धक्का-मुक्की करते लेकिन ये छोटी लड़की धक्का-मुक्की करना तो दूर कभी भीड़ में घुसी तक नहीं। उसका नियम बन गया था सबसे बाद में बची हुई रोटी को चुपचाप उठाना और रोटियां बांटने वालों का धन्यवाद करके चुपचाप अपने घर चले जाना। रोटियां बांटने वाले रोज़ लड़की का व्यवहार देखते और उसके जाने के बाद उसकी ख़ूब प्रशंसा करते। यह बात रोटियां बंटवाने वाले धनवान व्यक्ति के कानों तक भी पहुंची।
एक दिन छोटी लड़की को जो रोटी मिली वह और दिनों के मुक़ाबले में भी बहुत ही छोटी थी लेकिन लड़की ने रोज की तरह ही उस बहुत छोटी सी रोटी को उठाया और सबका धन्यवाद करके अपने घर चली गई। उसके चेहरे से लगता ही नहीं था कि बहुत छोटी रोटी मिलने पर उसे कोई दुख हो रहा है। वह हर रोज़ की तरह प्रसन्न दिख रही थी। घर जाकर जैसे ही लड़की ने रोटी का टुकड़ा तोड़ा उसमें से एक सोने का सिक्का निकलकर वहां ज़मीन पर जा गिरा। लड़की ने सिक्का अपनी मां को दिखलाया और पूछा कि मां इस सिक्के का क्या करूं? मां ने कहा कि करना क्या है तुम फौरन वापस जाओ और रोटियां बंटवाने वाले व्यक्ति को ये सिक्का वापस करके आओ। शायद गलती से ये सिक्का आटे में गिर गया होगा। लड़की सोने का सिक्का लेकर भागी-भागी वापस रोटियां बंटने वाले स्थान पर जा पहुंची।
लड़की जब रोटियां बंटवाने वाले व्यक्ति को सिक्का देने लगी तो उस व्यक्ति ने कहा कि जब सब बच्चे धक्का-मुक्की कर रहे थे तो तुम बिना परेशान हुए शांत खड़ी रहती थीं और अंत में बची हुई सबसे छोटी रोटी लेकर भी हमारा धन्यवाद करके खुशी-खुशी अपने घर ले जाती थीं। अत: ये तुम्हारे संतोष व शिष्टाचार का पुरस्कार है। इस पर छोटी बच्ची ने कहा कि संतोष का पुरस्कार तो उसे तभी मिल जाता था जब चुपचाप अलग खड़े होने पर वो धक्का-मुक्की से बच जाती थी। आपकी मदद और आपका प्रेमपूर्वक व्यवहार भी मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं है। यह बात सुनकर वह व्यक्ति बहुत ही प्रसन्न हुआ। उसने लड़की के माता-पिता को बुलवाया और संकट के उस विकट समय में उनकी काफी मदद की। वास्तव में जो लोग हर हाल में संतुष्ट व शिष्ट बने रहते हैं वो कभी घाटे में नहीं रहते। (सुमन सागर)