बढ़ता टकराव

पहले ही अनेक समस्याओं में घिरा पंजाब एक बड़े टकराव की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। पंजाब में पहले भी खालिस्तान की मांग को कोई बड़ा समर्थन हासिल नहीं था तथा न ही अब कोई ज्यादा लोग ऐसी मांग कर रहे हैं। सरकार द्वारा तथा तथाकथित  राष्ट्रीय मीडिया के एक भाग द्वारा अमृतपाल सिंह के मुद्दे को लेकर जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है, उससे हालात के और खराब होने की सम्भावनाएं ज़रूर बन गई हैं। पिछले समय में उसकी कुछ कार्रवाइयों तथा दिए गए बयानों को लेकर विवाद ज़रूर पैदा हुए थे परन्तु प्रशासन उस समय उत्पन्न हुई स्थितियों से समय रहते नहीं निपट सका।
अजनाला पुलिस थाना की घटना तथा उससे पूर्व इसी तज़र् पर घटित कुछ अन्य घटनाओं से अमन-कानून के पहलू से निपटा जाना बनता था, जिसके लिए सरकार कोई पुख्ता योजनाबंदी नहीं कर सकी परन्तु इसके स्थान पर चाहते या न चाहते हुए ऐसा माहौल बना दिया गया, जिसे संदिग्ध भी कहा जा सकता है। 18 मार्च के बाद अमृतपाल सिंह तथा उनके साथियों के विरुद्ध जिस तरह कार्रवाई की गई, उस घटनाक्रम से लोगों के दिलों में एक डर तथा दहशत का माहौल पैदा हुआ। अमृतपाल सिंह को पकड़ने में सरकार पूरी तरह असफल रही। उसकी जगह सैकड़ों ही युवाओं की धड़ाधड़ गिरफ्तारियां तथा उन पर भिन्न-भिन्न प्रकार की लगाई गई कठोर धाराओं तथा कुछ एक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत पंजाब से बाहर दूर-दराज स्थान पर नज़रबंद करके भेजने से न सिर्फ माहौल ही बिगड़ा है, अपितु जन-मानस में सन्देहों को लेकर और वृद्धि हुई है। विदेशों में भी इस संबंध में हुई प्रतिक्रिया को इस सीमा तक बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है, जैसे पंजाब में ़खालिस्तान के लिए युद्ध शुरू हो गया हो। इस संबंध में जत्थेदार अकाल तख्त के नेतृत्व में भिन्न-भिन्न सिख संगठनों की हुई बैठक के बाद पकड़े गए निर्दोष युवाओं को रिहा करने की मांग करना, इसलिए जायज़ प्रतीत होता है क्योंकि पुलिस द्वारा उन पर धाराएं तो चाहे जितनी भी संगीन लगा दी गई हैं परन्तु उनके विरुद्ध ठोस तथा स्पष्ट सबूतों का सही विस्तार अभी तक सामने नहीं आया। यदि सरकार के इशारों पर ़खालसा राज या सिख रियासतों के समय के ध्वजों तथा निशानों को पुलिस द्वारा ज़ोर-शोर से ़खालिस्तानी ध्वजों के नाम पर प्रचारित किया जाये तो इससे सन्देह और भी बड़े हो जाते हैं।
यदि इस सामूहिकता में इन पकड़े गए युवाओं को सीमित समय में छोड़ने की आवाज़ उठाई गई है तो सरकार का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह लोगों को यह विश्वास दिलाये कि एक सीमित समय में ही सभी मामलों की जांच-पड़ताल करके निर्दोष या मामूली दोषों वाले युवाओं को रिहा कर दिया जाएगा परन्तु इसकी बजाय यदि मुख्यमंत्री तथा उसका बॉस प्रत्यक्ष रूप में धमकियों तथा चुनौतियों पर उतर आयें तो ऐसी बयानबाज़ी हालात को और बिगाड़ने में ही सहायक होगी तथा स्थिति टकराव वाली बन जाएगी। आज बिखर चुके इस मामले को निपटाने के स्थान पर इसे और बिखराने की नीति को किसी तरह भी प्रदेश के हित में नहीं कहा जा सकता। इससे पहले कि यह मामला और उलझ जाये, हम सरकार को यह सलाह देंगे कि वह इसे प्राथमिकता के आधार पर सभी पक्षों को साथ लेकर इस मामले को अपना कर्त्तव्य तथा ज़िम्मेदारी समझते हुए शीघ्र-अतिशीघ्र सुलझाने का यत्न करे।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द