क्लोरोफार्म खोज की कहानी

 

क्लोरोफार्म की खोज की कहानी भी बड़ी मजेदार है। एक बार एक दुर्घटना में घायल व्यक्ति की टांग काटनी थी नहीं तो कुछ देर में पूरे शरीर में ज़हर फैल जाता। चिकित्कों ने मरीज के हाथ-पैर रस्सी से बांध दिए, दो-तीन आदमी भी उसे पकड़े हुए थे मगर रोगी बुरी तरह छटपटा रहा था। बहुत बुरा दृश्य था। ऐसा दृश्य देखकर चिकित्सा विज्ञान के एक छात्र को बेहोशी- सी आ गई। बाद में यह छात्र किसी प्रकार ठीक हुआ तो उसने निश्चय किया वह एक ऐसी दवाई खोज निकालेगा जिससे रोगी को ऑपरेशन से पहले बेहोश किया जा सके। इस छात्र के साथियों ने पहले तो उसका खूब मजाक उड़ाया।
इस छात्र का नाम-लेम्स नेग सेम्पसन’ था। सैम्पसन का परिवार बड़ा ही साधारण था। इनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी लेकिन अपने बचपन से ही सेम्पसन काफी बुद्धिमान थे। केवल 18 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने डॉक्टरी परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। बाद में वे काफी दिनों तक एडिनबरा में अपना निजी अस्पताल चलाते रहे।
एक बार एक प्रयोग करते समय सेम्पसन ने देखा कि उनके सहयोगी डा. कैंथ एक शीशी को सूंघते ही बेहोश हो गए। डा सेम्पसन ने स्वयं भी उस शीशी को सूंध तो उन्हें भी बेहोशी आ गई। कुछ लोगों ने ज्यों ही दो लोगों को इस प्रकार पड़े हुए देखा तो आसपास भीड़ लग गई। 
एक चिकित्सक ने देखा तो डा. सेम्पसन और डा. कैंथ की नाड़ियां सही चल रही हैं। थोड़ी देर बाद जब डा. सेम्पसन ने आंखें खोलीं तो वे जोरों से चिल्ला पड़े-मिल गया, मिल गया, आखिर मिल ही गया।4 नवम्बर, 1847 को डा. सेम्पसन ने अपने दृढ़-निश्चय को पूर्ण कर दिखाया। उन्होंने क्लोरोफार्म का अविष्कार कर चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अपना नाम सदा के लिए अमर कर दिया। आज क्लोरोफार्म सुंघाकर ही तमाम बड़े आप्रेशन किए जाते हैं। 

(उर्वशी)