सब कुछ ठीक-ठाक है !

 

आजकल लगता है कि उल्टे बांस बरेली को जाने लगे हैं। समझते हैं, इस मुहाविरे का अर्थ! बांस तो बरेली से आते होंगे, और आजकल वापिस बरेली को जाने लगे हैं, क्या? लोग अपने जान-माल की सुरक्षा के लिए प्रशासन की ओर देखते हैं, और लो आजकल प्रशासक ही जनता के दरबार में गुहार लगाने लगे, कि हुज़ूर ध्यान कीजिए, धाकड़ ने हमारे नाम की सुपारी दे दी है। अब आप ही बताइए कि अगर उन्होंने हमें मार गिराया तो आपकी अनन्य सेवा, इस देश का कायाकल्प और अन्तर्राष्ट्रीय सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बाज़ार में आपके देश का नाम कौन करेगा?
बेशक उनकी सेवा पर देश मुग्ध है। देखते ही देखते देश दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी महाबलि शक्ति बन गया, और जल्द ही तीसरी बड़ी महाशक्ति बन जाएगा। हम गद्गद हैं इस आंकड़े से कि विपदा के महाकाल में जहां ़गरीब गुरबा भूख, बीमारी और संक्रमण भय से थरथर कांपते रहे, वहां दुनिया में अगर अरबपतियों की संख्या हर जगह घटी तो अपने यहां बढ़ गई। यह मामूली बात है कि अगर बेकारों की संख्या बढ़ी है, तो उनके लिए विदेश पलायन के रास्ते भी तो खोल दिए हैं। महंगाई बेकाबू हो रही है, तो चोर बाज़ारी के नये क्षेत्र भी तो खुल गए हैं। क्रिप्टोकरंसी का नाम सुना है न। पुराने ज़माने में जिसे सट्टा कहते थे, उसी का नया डिजिटल रूप है यह।
वैसे डिजिटल हो जाने ने नित्य नई ठगी के कितने आयाम पैदा कर दिए। बाकायदा ठगी दफ्तर खुल गए हैं। नित्य नये आपके बैंक खाता विवरण और ओ.टी.पी. नम्बर जानने के नए-नए तरीके ईजाद किये जाते हैं। नम्बर बताया नहीं कि आपका खाता स़ाफ। ठगों की दुनिया संवर रही है, मासूमों का पाटिया गुल हो रहा है। दिन रात कहते हैं इनके लोकपाल को शिकायत लिखाओ। शिकायत करते हैं तो कोई फोन नहीं उठाता। झांसादारों के द्वार से पैसे वापिस आने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। बन्धु, अपने यहां ठग खुश हैं, और मासूम उदास। अब इसे उल्टे बांस बरेली को भी नहीं कह सकते। क्योंकि हमने तो शुरू से ही यही होते देखा है। वैसे अब यह काम ज़रा संगठित तरीके से होने लगा। पंजाब के बैंक खातों से ठगी त्रावनकोर के ठग कर रहे हैं। तुम कहते हो देश में अलगाववाद के बीज बोये जा रहे हैं। लो देख लो,  ठगों ने इस पूरे देश में अखण्ड ठगी भारत की भावना पैदा कर दी। पंजाब के बैंक खाते दक्षिण भारत के गुमनाम लूट रहे हैं। इधर हम भाषायी, सामाजिक और आर्थिक एकता की चिन्ता करते रह गये। उधर ठगों के बढ़ते प्रहार ने शिकार और शिकारी को एक घाट पर खड़ा कर दिया। बन्धु, इन्टरनैट तरक्की पर है। तीन जी से ताकत चार जी हुई। चार से पांच, पांच से छ:। लोगों की मासूमियत का आखेट अब और भी त्वरित गति से होगा। ठगी की शिकायतें अब पूरे देश से अधिक गति से होंगी, और अनसुनी रह जाएंगी। बेशक तरक्की के ये नये आयाम हैं, लेकिन यहां बांस कहां और बरेली कहां है आओ खुद ही तलाश कर लें।
बहुत तरक्की कर गया है अपना देश। आर्थिक महामंदी के काल में भी अपनी विकास दर दुनिया में सबसे तेज़ भाग रही है। लेकिन इस भागती विकास दर को इस बहुसंख्यक जनता में न तलाशना जिसने अंधेरी जर्जर बस्तियों से जीवन यापन शुरू किया था, और अब फुटपाथ पर आ गए हैं। वैसे स्मार्ट शहरों के नामकरण के बाद फुटपाथ तो गायब हो गए। अतिक्रमण ने उन्हें फड़ी बाज़ारों में बदल दिया, और स्वच्छता अभियान के नाम लोगों को अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए कूड़ा घरों का उपहार मिल गया है। लगता है इस उपहार का वजूद भी स्थायी हो रहा है, और इनके निस्तारण की मशीनें या तो चलती नहीं, या फिर इन्हें चलाने वाले प्रशिक्षकों का अभाव है। इसलिए लगता है स्वच्छता के नाम पर अब कूड़ा घरों में जीने की आदत डालनी पड़ेगी, क्योंकि आपके स्मार्ट शहरों का रैंक खो कर पचास दर्जे नीचे भी चला जाये, तो किसी की सेहत पर कोई असर नहीं होता। बस कागज़ों में, बहीखातों में तरक्की का माहौल बना रहना चाहिए।
यहां शांति और व्यवस्था के नाम पर डर और दहशत का माहौल बना रहे तो भले लोग जितना डरेंगे, उतना ही असमय घरों से कम निकलेंगे। राहज़नी और छीनाझपट की घटनाएं कम होंगी। अपराधों का ग्राफ अपने आप कम हो जाएगा। हां फिरौती, अपहरण और दिन-दहाड़े हत्याओं से लेकर राहज़नी की घटनाएं होती रहेंगी, लेकिन यह बड़े-बड़े अपराध हैं बन्धु, कौन से युग और किस काल में नहीं हुए। लेकिन इस युग में भी इनसे जूझने की पूरी-पूरी तैयारी हो रही है। रणनीति बन रही है, वैसे यह बीच का समय है। बड़ी समस्याओं से निपटने में समय तो लगता ही है। इसलिए फिलहाल अगर पुस्तक संस्कृति दम तोड़ती है, और बन्दूक संस्कृति की धांय-धांय होती है, तो न कहना कि उल्टे बांस बरेली को जा रहे हैं। उम्मीद रखो, वह दिन दूर नहीं जब उल्टे नहीं सीधे बांस बरेली को जाएंगे नही वहां से आने लगेंगे, और देश के सांस्कृतिक हृस नहीं, व्यवसायिक प्रगति में योगदान देंगे।
फिलहाल अपराधियों के दण्डित न हो सकने के कारण उन्हें अभियुक्त नहीं आरोपित मानो, धाकड़ लोग हैं। तुम्हारे जनप्रतिनिधि हो जाने का, चुनाव लड़ने का मन्सूबा बना रहे हैं, तो विनयशील हो उन्हें वोट दे दो। सरकार की पालकी के कहारों में इन आरोपित चेहरों से अभी छुटकारा नहीं है, क्योंकि इनके अपराधों की परख तारीख दर तारीख हो रही है, और इनका न्याय अभी विचाराधीन है।

#सब कुछ ठीक-ठाक है !