बजट अधिवेशन की कारगुज़ारी

एक बार फिर संसद का बजट अधिवेशन सरकार तथा विपक्षी दलों के आपसी टकराव की भेंट चढ़ गया। यह अधिवेशन 31 जनवरी को शुरू हुआ था तथा 6 अप्रैल को समाप्त हो गया परन्तु इस पूरे समय में राज्यसभा में 24 प्रतिशत तथा लोकसभा में 34 प्रतिशत के लगभग ही काम हो सका है। दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी बातों पर अडिग रहे तथा ज्यादातर समय शोर-शराबे में ही गुज़र गया। कांग्रेस सहित विपक्षी दल एक विदेशी कम्पनी द्वारा अडानी के व्यापार संबंधी जो रहस्योद्घाटन किए गए, उसे लेकर इस समूचे घटनाक्रम की जांच के लिए संयुक्त संसदीय कमेटी (जे.पी.सी.) बनाए जाने की मांग पर अडिग रहे जबकि भाजपा के सांसद राहुल गांधी द्वारा विदेश में जाकर सरकार तथा देश की स्थिति  के संबंध में दिए गए भाषणों को लेकर उनसे संसद में माफी की मांग करते रहे।
अडानी मामले का सरकार के साथ तो सीधा संबंध नहीं है परन्तु उन पर ये आरोप लगाए जाते रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गहरा मित्र होने के कारण उसे आसानी से ही सरकारी तथा अर्द्ध-सरकारी विभागों द्वारा ऋण दिए गए। इसके अलावा अडानी ने अपनी कम्पनियों के शेयरों की कीमत बढ़ाने के लिए फज़र्ी कम्पनियां बना कर उनके माध्यम से अपनी कम्पनियों में निवेश किया तथा इसके अलावा कई तरह के हथकंडे भी अपनाए। छिड़े ऐसे विवाद के कारण उसकी कम्पनियों के शेयरों की कीमत गिर गई तथा उसे एकाएक अरबों रुपये का घाटा पड़ गया। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने भी हस्तक्षेप करते हुए जांच समिति की घोषणा की थी परन्तु कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी दल संयुक्त संसदीय कमेटी बनाने की मांग पर ही अडिग रहे जिस कारण दोनों सदनों में कोई भी काम न हो सका। लगातार हुए इस शोर-शराबे में ही सरकार द्वारा 5 बिल पास करवा लिए गए जिनमें अलग-अलग विभागों को दी जाने वाली ग्रांटें, वित्तीय बिल, जम्मू-कश्मीर का बजट आदि शामिल थे। राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने इसे विपक्षी राजनीतिक पार्टियों द्वारा संसद की कार्रवाई को पूरी तरह रोकने का आरोप लगाते  हुए इसके गम्भीर परिणाम निकलने की बात की है। लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला ने यह कहा है कि सांसदों द्वारा किया गया ऐसा व्यवहार संसद तथा देश के लिए बड़ा नुकसानदायक होगा। राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह भी कहा कि यदि विपक्षी पार्टियां संयुक्त संसदीय कमेटी बनाने की मांग छोड़ देती हैं तो भाजपा भी राहुल से माफी मांगने की ज़िद्द छोड़ देगी।
इसी दौरान सूरत की एक अदालत द्वारा राहुल गांधी को मानहानि के एक मामले में 2 वर्ष की सज़ा सुना दिए जाने के बाद शीघ्र कार्रवाई करते इस सज़ा को आधार बना कर उनकी लोकसभा की सदस्यता भंग करने की घोषणा ने पहले ही भड़की आग पर तेल डालने का काम किया। जिससे देश के राजनीतिक माहौल में एक तीव्र बहस छिड़ गई है परन्तु इस पूरी स्थिति ने देश की ज्यादातर बड़ी विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाकर खड़ा किया है। दूसरी तरफ भाजपा उनके मुकाबले में अकेली पड़ गई प्रतीत होती है। आगामी लोकसभा चुनावों के लिए वर्ष भर का समय रह गया है। यदि इस अवधि में ये सभी पार्टियां समझदारी एवं परिपक्व सोच से एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरती हैं तो इसका उन्हें बड़ा लाभ मिल सकता है परन्तु ऐसा इन पार्टियों की अपनी-अपनी सीमाएं होने के कारण सम्भव होता दिखाई नहीं देता।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द