कोई लौटा दे, मेरे बीते हुए दिन

नाही सप्ताह के सारे दिन ना ही साल के सारे महीने एक जैसे होते हैं और ना ही सभी राशियों वाले लोगों का भाग्य एक जैसा होता है। जो दिन अच्छी बुरी यादों के साथ बीत गया, वापिस कभी नहीं आता, चाहे कोई आदमी कितना ज्ञानी, ध्यानी, विद्वान, ताकतवर या यशस्वी क्यों ना हों, बीते हुए दिन को फिर वापिस नहीं बुला सकता। यही ही सत्य है।
जब बच्चा पैदा होता है, उसे हर प्रकार का लाड़-प्यार मिलता है, उसकी हर संभव तरीके से देखभाल की जाती है। उसके हंसने पर सब हंसते हैं, उसके रोने पर सबको चिंता होती है, उसकी हर अच्छी बुरी बात की तारीफ  होती है। लेकिन जब वह बड़ा होता है। वक्त के गुजरने पर पढ़-लिखकर काम ध्ांधा या नौकरी करता है, उसे यह जानकर हैरानी होती है कि अब उसे कोई भी उसी तरह लाड़-प्यार नहीं करता, जैसे कि बचपन में उसके मां-बाप या अन्य रिश्तेदार किया करते थे। वह अपने आपको स्वार्थी, चालाक, मक्कार, झूठे तथा ईर्ष्या करने वाले लोगों से घिरा हुआ देखकर बहुत दु:खी होता है और तो और वह जिस परिवार का मुखिया होता है वहां भी उसकी पत्नी तथा बच्चे उसका ऐसा हाल करते हैं जैसे कि धोबी कपड़ों का हाल करता है। तब वह अपने बचपन को याद करके यही ही कहता है, ‘कोई लौटा दे, मेरे बीते हुए दिन।’
जैसे ही वह बचपन से जवानी की दहलीज पर पहुंचता है वह तंदुरुस्त, ताकतवर, प्रभावशाली होता है। वह बार-बार शीशे में मुंह देखकर कभी अपनी तुलना शाहरूख खान से कभी सलमान खान से करता है। उसे प्रेम प्रसंगों में पड़ना, रोज-रोज नये-नये साथियों के साथ घूमना-फिरना, मौज-मस्ती करना बहुत अच्छा लगता है। लेकिन जैसे ही वह जवानी से बुढ़ापे में प्रवेश करता है उसे ना दिखाई देता है, ना सुनाई देता है, ना वह चल सकता है, ना वह खा सकता है ना ही खाया हुआ पचा सकता है, वह अपने कपड़ों के पहनने के बारे में भी लापरवाह हो जाता है, कोई उसकी परवाह नहीं करता, बीमारियां उसे घेर लेती हैं। वह अपनी जवानी को याद करके यही कहता है, ‘कोई लौटा दे, मेरे बीते हुए दिन।’ लेकिन क्या कभी बीते हुए दिन लौट कर वापिस आते हैं। कभी नहीं।
कुछ लोगों को सियासत का चस्का पड़ जाता है। वे चुनाव लड़कर पंच, सरपंच, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री आदि बनते हैं। सब तरफ  उनकी जय-जयकार होती है। चापलूसी करने वाले लोगों से वे सदा घिरे रहते हैं। उनका सारा समय व्यस्तता में बीतता है। कभी किसी उद्घाटन समारोह, कभी किसी सरकारी कार्यक्रम, किसी कॉलेज/यूनिवर्सिटी में पुरस्कार/डिग्रियां वितरण समारोह आदि में जाना पड़ता है। स्वागत द्वार लगाये जाते हैं, उपहार दिये जाते हैं। कभी-कभी रिश्वत के पैसे भी मिल जाते हैं। लेकिन यह सब हमेशा नहीं चलता। समय बीतने के साथ जब उनकी उपयोगिता खत्म हो जाती है तो अगले चुनाव में उसे टिकट नहीं दी जाती। वह निर्दलीय चुनाव लड़ने पर भी हार जाता है। वह ना घर का रहता है और ना ही घाट का। क्योंकि वह किसी काम का नहीं रहता, उसे कोई नहीं पूछता। लोग उससे बात करना, नमस्ते करना बंद कर देते हैं। कोई जमाना था जब कि वह लोगों के काम कराया करता था। अब तो किसी सरकारी दफ्तर में उसका अपना कोई काम भी नहीं होता। अगर वह किसी दफ्तर में अपने किसी काम को कराने के लिए जाता है तो चपरासी उसे अफसर से नहीं मिलने देता, बदतमीजी से बात करता है।  क्योंकि अब विरोधी पार्टी की सरकार है। उसके पिछले कारनामों की पड़ताल के लिए जांच आयोग बिठाया जाता है, उस पर मुकदमे चलते हैं। कभी-कभी जेल भी हो जाती है। ऐसे में वह मन ही मन काफी परेशान होकर यही कहता है-‘कोई लौटा दो, मेरे बीते हुए दिन।’ (         सुमन सागर)