ऐसे थे ‘सिक्सर किंग’ सलीम 

टो नी लुईस की कप्तानी में इंग्लैंड की क्रिकेट टीम 1972-73 में भारत के दौरे पर आयी थी, एक टेस्ट बॉम्बे (अब मुंबई) के ब्रेबोन स्टेडियम में खेला जाना था। इस टेस्ट के लिए भारत ने अपने 14 खिलाड़ियों के नाम घोषित कर दिए थे, लेकिन उनमें सलीम दुर्रानी का नाम नहीं था। इसके खुलासा होते ही क्रिकेट प्रेमी भड़क उठे। बॉम्बे में हर जगह विरोध प्रदर्शन होने लगे, दीवारों पर धमकी भरे पोस्टर लग गये कि अगर सलीम दुर्रानी को टीम में शामिल नहीं किया, तो स्टेडियम व बीसीसीआई कार्यालय को फूंक देंगे। उस समय सभी प्रमुख अंग्रेजी दैनिकों की सुर्खी थी- ‘नो सलीम दुर्रानी, नो टेस्ट मैच इन बॉम्बे’। पब्लिक और मीडिया के दबाव में बीसीसीआई ने भारतीय दल में 15वें सदस्य के रूप में सलीम दुर्रानी को शामिल कर लिया। 15 में होने का अर्थ था कि उन्हें प्लेइंग इलेविन में भी शामिल किया जाना ही था। 
सलीम दुर्रानी ने भी अपने प्रशंसकों को निराश नहीं किया। उन्होंने न सिर्फ 73 रन की शानदार पारी खेली बल्कि स्टैंड्स में से जिस तरफ  से भी छक्के की मांग उठी उसको उन्होंने पूरा किया, जिसका खमियाजा डेरेक अंडरवुड व पैट पोकोक जैसे महान गेंदबाजों को उठाना पड़ा। इससे पहले 1971 में रणजी सेंटेनरी मैच जामनगर में आयोजित किया गया था, जिसमें ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज क्रिकेटरों रोस एडवर्ड्स व बॉब मेस्सी को भी बुलाया गया था। टीम में भारतीय लीजेंड मंसूर अली खान पटौदी, आबिद अली, एमएल जयसिम्हा, एकनाथ सोलकर व सुनील गावस्कर भी थे। लेकिन दर्शक तो लेफ्ट-हैंड बैटर सलीम दुर्रानी को देखने के लिए आये थे, उनसे अपनी डिमांड पर छक्का लगवाने की ख्वाहिश लेकर। अपने प्रशंसकों को निराश करना सलीम दुर्रानी की आदत में शुमार न था, उन्होंने इस मैच में 75 रन की शानदार पारी खेली और ‘ऑन डिमांड’ छह गेंदे स्टेडियम के बाहर पहुंचायीं। 
बॉल को लिफ्ट करके मैदान से बाहर फेंकने की कला सलीम दुर्रानी ने वीनू मांकड़ से सीखी थी। जून 1952 में लॉर्ड्स टेस्ट के पहले दिन लंच से जरा पहले वीनू मांकड़ ने रॉय जेनकिंस की गेंद को छक्के के लिए लिफ्ट किया था। सलीम दुर्रानी उस शॉट से अति प्रेरित थे। वह बिल्कुल उसी तरह गेंद को लिफ्ट करके छक्का मारना चाहते थे। फिर जनवरी 1973 मद्रास (अब चेन्नई) टेस्ट की अंतिम सुबह उन्होंने नार्मन गिफ्फोर्ड की गेंद को वीनू मांकड़ की तरह स्टेडियम से बाहर भेजा। उस पल के बारे में उन्होंने बताया था, ‘जैसे ही गिफ्फोर्ड गेंदबाज़ी के लिए आया तो मैंने उसकी गेंद को पुल करते हुए मिड-विकेट पर खड़े माइक डेनिस के सिर के ऊपर से सीमा रेखा को पार करा दिया। वह टेस्ट तो सही मायनों में वहीं खत्म हो गया था, लेकिन मैंने याद ध्यानी के लिए गिफ्फोर्ड पर एक और छक्का मारा कि शायद...।’
दरअसल ‘ऑन डिमांड’ छक्का मारने की धारणा कुछ इस वजह से बनी कि 1972-73 की सीरीज़ में सलीम दुर्रानी के छक्के संयोग से ठीक उसी समय लगे, जब स्टैंड्स में दर्शक छक्के की मांग कर रहे थे। मसलन, फरवरी 1973 बॉम्बे टेस्ट की पहली शाम को डेरेक अंडरवुड ने ऐसी गेंद फेंकी जो पिटाई करने योग्य थी, उसी वक्त दर्शक छक्के की मांग कर रहे थे और सलीम दुर्रानी ने गेंद को स्टैंड्स में पहुंचा दिया। उन्होंने एक बार कहा था, ‘मैंने अपने सारे छक्के नियंत्रण, योजना व टाइमिंग के साथ मारे। आपने मुझे टेस्ट में कितनी बार देखा है कि मैंने कैच लिफ्ट किया हो और वह छक्का चला गया हो? मैं जानता हूं कि मैं गेंद को स्टैंड्स में पहुंचा सकता हूं और मैं बहुत आत्मविश्वास के साथ गेंद को लिफ्ट करता हूं।’
सुनील गावस्कर ने अपनी आत्मकथा ‘सनी डेज़’ में लिखा है- ‘लोग सलीम दुर्रानी को ‘मनमौजी जीनियस’ कहते हैं। मैं उनके मनमौजी होने के बारे में तो नहीं जानता, लेकिन निश्चित रूप से वह जीनियस हैं। वेस्टइंडीज को उनके जीनियस होने का स्वाद 1971 के पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट में चखने को मिला। छह फीट से अधिक कद के सलीम दुर्रानी गेंद को टर्न व बाउंस करने की क्षमता रखते थे और अगर पिच से जरा सी भी मदद मिल रही हो तो वह ऐसी गेंद फेंकने की सलाहियत रखते थे, जिसे खेलना असंभव होता था, जैसी कि उन्होंने गैरी सोबर्स को फेंकी थी जो उनके बैट व पैड के बीच में से होती हुई लेग बेल को उड़ा ले गई थी। वह ड्रीम डिलीवरी थी। टेलिविज़न के दौर में उस गेंद को बार-बार दिखाया जाता और उसे शेन वार्न की उस डिलीवरी से अधिक याद रखा जाता, जिसने माइक गेटिंग को राउंड द लेग्स बोल्ड किया था।’ 
सलीम दुर्रानी दोनों बल्ले व गेंद से मैच जिताने की सलाहियत रखते थे। 1961-62 के मद्रास टेस्ट में उन्होंने टेड डेक्सटर के नेतृत्व वाली इंग्लैंड की टीम के दस खिलाड़ियों को अपनी लेफ्ट आर्म स्पिन से आउट किया था, जिससे भारत ने वह सीरीज़ 2-0 से जीती। इसके कुछ माह बाद जब वेज़ हॉल की तूफानी गेंदबाज़ी के सामने कोई भारतीय बैटर टिक नहीं पा रहा था, तो सलीम दुर्रानी ने 104 रन की पारी खेली। दर्शकों में उनके लिए जो दीवानगी थी, वैसी तो उनसे पहले व उनके बाद किसी क्रिकेटर के लिए देखी ही नहीं गई। सिक्सर किंग सलीम दुर्रानी वास्तव में क्रिकेट के सुपरस्टार थे। वह हीरो व स्टार दोनों थे। इसलिए गावस्कर की राय है, ‘अगर सलीम दुर्रानी आज के दौर में होते तो आईपीएल नीलामी में सबसे महंगे दामों में बिकते।’

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर