प्राकृतिक सौन्दर्य में लिपटी कांगड़ा घाटी

 

प्राकृतिक सौंदर्य में लिपटी खूबसूरत कांगड़ा घाटी हिमाचल प्रदेश की मनमोहिनी घाटी है। पर्यटकों के लिए कांगड़ा ज़िला सर्वोत्तम क्षेत्र है। यहां अनेकानेक ही धार्मिक स्थान तथा मर्मस्पर्शी स्थान देखने को बनते हैं। कांगड़ा घाटी लगभग 95 मील लम्बी तथा 35 मील चौड़ी है। समुद्र तल से लगभग 585 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। कांगड़ा की चित्रकारी, भितिचित्र मशहूर है। राजा संसार चंद के समय से (1775-1823) ही चित्रकला चलती आ रही है।
जब हिमाचल तथा पंजाब इक्ट्ठे थे, तब कांगड़ा बड़े स्तर पर मशहूर व्यपारिक केन्द्र था। कांगड़ा ज़िले की चायपत्ती विदेशों तक मशहूर है। इस ज़िले के शाल, जैक्ट, टोपियां आदि ख्याति प्राप्त हैं। यहां की धरती उपजाऊ, हरीभरी तथा सेहत के लिए अच्छी मानी जाती है। हिमाचल का तीन हिस्सा आनाज यहां ही पैदा होता है। कांगड़ा ज़िले का बहुत सा पहाड़ी क्षेत्र समतल भी है। नूरपुर, अंदौरा, अध रेटा, नगरोटा भगवा आदि समतल भूमि कृषि योग्य है। इस क्षेत्र में खीरा, करेला, कद्दू, टमाटर आदि बहुत स्वादीष्ट किस्म के और मशहूर हैं।
इस क्षेत्र के ज्यादातर लोग फौज में सेवा करते हैं। इस क्षेत्र के राजपूत अनखीले (आन-शान वाले) तथा दलेर स्वभाव के हैं। कांगड़ा के नगर गगल में हवाई अड्डा भी है, यहां रोजाना (प्रतिदिन) हवाई उड़ान होती है। पंजाब के पठानकोट से प्रतिदिन छोटी रेलगाड़ियां कांगड़ा, जोगिन्दर नगर तक जाती हैं। पठानकोट से छोटी 2.5 फुट चौड़ी रेलवे लाईन ऊपर छोटे इंजन सहित छोटे-छोटे डिब्बों (बोगियां) वाली ट्रेन मध्य गति से चलती है।
पठानकोट से बुधवार 9.50 सुबह ट्रेन चलती है और रास्ते में रूकती हुई 2.55 पर कांगड़ा पहुंची। इस छोटी ट्रेन में सफर करने का अपना ही मज़ा है। हिलडुल करते यह डिब्ब झूले की भांति नज़ारा देते हैं।
पठानकोट से 20 मिनट के बाद अल्प पहाड़ियां शुरू हो जाती हैं। छोटे-छोटे खेतों की हरियाली का सुखद वातावरण, बागों में शाखाओं के साथ झूमते आम तथा लीची के गुच्छे कितने मन को भाते, कितने अच्छे लगते हैं। इसके बाद ऐयर फोर्स, डलहौजी रोड़ तथा चक्की पुल के बाद हिमाचल प्रदेश शुरू हो जाता है। यह पुल आधा पंजाब में तथा आधा हिमाचल प्रदेश में आता है। 
सुरंग से जब ट्रेन गुजराती है तो अंधेरे में ट्रेन की आवाज़ बदल जाती है। बल-छल खाती ट्रेन जब सुरंग से गुजरती है, तो ट्रेन का अगला तथा पीछे वाला हिस्सा (डिब्बे) नज़र आते हैं। ट्रेन कमर से दोहरी हो जाती है। यात्री ट्रेन में बैठे-बैठे खिड़कियों से झाक कर ट्रेन के डिब्बे देख सकते हैं। यह दोहरी होती ट्रेन का दृश्य भी कमाल का होता है।
कांगड़ा से ठंडी हवाएं शुरू हो जाती हैं, दूर शिखर छूते बर्फीले दुधिया पहाड़ों के दृश्य कुदरत का दिव्य प्रत्यक्ष करिश्मा, जैसे जन्नत के द्वार खुल गए हों। ऊंचे पहाड़, दूसरी तरफ गहरी खड्डें, दूर छोटे-छोटे खेतों का समूह सुन्दर दृश्य। पहाड़ों पर चढ़ती भेड़, बकरियां तथा गाय के झुंड। समलोटी तथा नगरोटा का क्षेत्र भी कई मील समतल है। कई-कई मील लम्बी पहाड़ियों की समतल भूमि यहां फसलें ही फसलें। हरियाली जैसे एक कहानी कह रही हो। 
कांगड़ा प्रवेश करते ही बड़े-बड़े होटल, कॉलोनी नज़र आने लगती है। दूर इस तरह इमारतें नज़र आती हैं। कांगड़ा के नगरोटा के क्षेत्र में ही नारदा-शारदा मन्दिर, हनूमान मन्दिर तथा थोड़ी दूर मशहूर चामुण्डा देवी मन्दिर है। पालमपुर के चाय के खेतों की सीढ़ियों का नज़ारा बहुत सुंदर है। 
कांगड़ा का बस स्टैंड बढ़िया है। यहां एक त्रिकोना चौक बनता है जो अलग-अलग रास्ते दिखाता है। कांगड़ा के मन्दिर तथा कांगड़ा का प्रसिद्ध किला देखने के लिए इस चौक से ही थ्री व्हीलर आदि लिए जाते हैं। यहां का प्रसिद्ध ब्रजेश्वरी मन्दिर, जिसके ऊपर हिन्दु-सिख तथा मुस्लमानों के धार्मिक चिन्ह हैं। यह मन्दिर भुकम्प आने से बर्बाद हो गया था, जिसको 1920 में दोबारा बनाया गया।
कांगड़ा की मशहूर जगह है कांगड़े का ऐतिहासिक किला, जिसको कांगड़े का किला कहा जाता है। भारतीय सांस्कृति में यह किला एक ऐतिहासिक मिसाल है। हिमाचल प्रदेश में बेशक अनेक ही किले हैं परन्तु कांगड़े का किला शिल्पशैली तथा निर्माण कला का अद्भुत नमूना है, जो कि एक विलक्षण स्थान रखता है।
कांगड़े किला का ऐतिहासिक जिक्र आता है कि महमूद गजनी 1009 ए.डी. में इस ऊपर विजय प्राप्त की थी। इसके बाद 1034 ए.डी. में दिल्ली के राजे ने इस किले पर कब्जा कर लिया और 1337 ए.डी. लगभग तीन सदियों तक यह किला हिन्दूओं के हाथों में रहा। इसके बाद इस किले ऊपर मुहम्मद तुगलक तथा 1365 ए.डी. में उसके पुत्र फिरोजशाह तुगलक ने इस पर कब्जा कर लिया तथा 1556 ए.डी. में अकबर ने इस पर कब्जा किया।
औरगंजेब के शासन काल दौरान कांगड़ा, सय्यद हसन खान, हसन अवदुवला खां तथा नवाब सरयद अली अल्लाह खान के हाथों में रहा। औरंगजेब की मृत्यु के बाद कांगड़ा किला कई लोगों के हाथों में रहा।
1783 ए.डी. में कांगड़ा किला तथा एक सिख लीडर जय सिंह गनी का राज्य रहा। उसके बाद अमर सिंह थापा ने चार वर्ष तक इस पर कब्जा रखा। फिर 1809 में यह किला महाराजा रणजीत सिंह के हाथों में रहा। उसके बाद ब्रिटिश सरकार ने 1905 के भूकम्प आने से पहले यह किला खाली करवा लिया तथा 1909 में इसको राष्ट्रीय यादगार का दर्जा दे दिया गया। यह किला देखने योग है। इसके कई गेट तथा दरवाज़ें हैं। प्राचीन वृक्ष भी मौजूद हैं। एक ऊंची पहाड़ी की सता में बना हुआ यह विशाल किला अपने आप में एक प्राचीन संस्कृति की मुंह बोलती तस्वीर है। इस किले के शिखर पर खड़े होकर मीलों दूर के सुन्दर दृश्य देखे जा सकते हैं। किला इतना लम्बा चौड़ा था कि यात्री थकावट के साथा नीचे आते हैं। इसके दाई ओर विशाल बहता दरिया सुन्दर पहाड़ियों से मिलकर कमाल के अद्भुत दृश्य बनाता है, जैसे किसी चित्रकार ने धरती पर चित्रकारी की हो। इस किले को देखने के लिए देश-विदेश के कलाकार, यात्री, फिल्मकार, फोटोग्राफर आदि आते रहते हैं।  कांगड़ा घाटी देखने के लायक है।

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