एकजुट होकर देनी होगी आतंक के खौफ को मात

 

आज राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस पर विशेष

भारत पिछले कई वर्षों से आतंकवाद का खामियाजा भुगत रहा है, जिसके चलते अब तक हजारों लोग बेमौत मारे जा चुके हैं, अनेक परिवार तबाह हो चुके हैं, बच्चे अनाथ हुए हैं, बहुत सी माएं-बहनें विधवा हो गई तो कहीं बुजुर्गों के बुढ़ापे की लाठी इसी आतंकवाद ने छीन ली। ऐसी वहशी घटनाओं को अंजाम देने वालों को इससे कोई सरोकार नहीं होता कि उनके ऐसे कृत्यों से कितने हंसते-खेलते परिवार एक ही झटके में बर्बाद हो जाते हैं। उन्मादी सोच और जेहादी मंसूबों वाले विवेकशून्य आतंकी अपने आकाओं के जहरीले इशारों पर न जाने हर साल कितने बेकसूर लोगों को मौत की नींद सुला देते हैं। जम्मू-कश्मीर तो दशकों से आतंक के खौफनाक साये में जी रहा है, देश के अन्य हिस्सों में भी कभी किसी भरे बाज़ार में तो कभी किसी वाहन में आतंकी निर्दोषों के लहू से होली खेलकर आनंदित होते रहे हैं। दरअसल आतंकियों का एकमात्र लक्ष्य किसी भी प्रकार का खूनखराबा करके आम लोगों के मन में भय पैदा करना ही होता है। उनका इससे सरोकार कोई नहीं होता कि मरने वालों में कोई दुधमुंहा बच्चा है या फिर वे किसी अबोध बच्चे को अनाथ बना रहे हैं। आतंकवाद जैसी इसी भयानक समस्या से निपटने के लिए भारत द्वारा 21 मई का दिन ‘राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा।
आतंकवाद विरोधी दिवस वास्तव में उन लोगों को श्रद्धांजलि देने का दिन है, जिन्होंने आतंकवादी हमलों में अपनी जान गंवाई और यह दिवस उन हजारों सैनिकों के बलिदान का सम्मान भी करता है, जिन्होंने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। इसकी आधिकारिक घोषणा 21 मई 1991 को भारत के 7वें प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद की गई थी, जो लिट्टे के एक आतंकवादी अभियान के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में मारे गए थे। राजीव गांधी श्रीपेरंबदूर में एक रैली को संबोधित करने गए थे, जहां लिट्टे से संबंधित एक महिला आतंकी अपने कपड़ों में विस्फोटक छिपाकर उनके पैर छूने के बहाने नीचे झुकी तो जबरदस्त बम धमाके में राजीव गांधी सहित करीब 25 लोगों की मौत हो गई थी। राजीव गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन वी.पी. सिंह सरकार द्वारा 21 मई को आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। इस दिवस को मनाने का अहम उद्देश्य यही है कि देश में आतंकवाद, हिंसा के खतरे और उनके समाज, लोगों तथा देश पर पड़ने वाले खतरनाक असर के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाए। शांति और मानवता का संदेश फैलाना, लोगों के बीच आपसी सद्भाव का बीजारोपण कर उनमें एकता को बढ़ावा देना, युवाओं को आतंकवाद और हिंसा के पथ से दूर रखना, किसी भी प्रकार के प्रलोभन में आकर आतंकी गुटों में शामिल होने से युवाओं को बचाने के लिए उन्हें आतंकवाद के बारे में सही ढ़ंग से शिक्षित-प्रशिक्षित करना, उनमें देशभक्ति जगाना, आम आदमी की पीड़ा और जीवन पर आतंकवाद के घातक प्रभाव के बारे में लोगों को जागरूक करना, यही आतंकवाद विरोधी दिवस मनाने का प्रमुख उद्देश्य है।
भारत में आतंकी घटनाओं के संबंध में दशकों से जगजाहिर है कि पाकिस्तानी सेना आईएसआई भारत को असंतुलित करने के घृणित प्रयासों के तहत आतंकी संगठनों की हरसंभव मदद करती रही है और उसके इन नापाक इरादों का खामियाजा भारत की निर्दोष जनता बरसों से भुगत रही है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से देश में आतंकवादियों की कमर तोड़ने के लिए जिस तरह के सख्त कदम उठाए गए हैं, उनके चलते देशभर में आतंकी घटनाओं में कमी दर्ज की जा रही है लेकिन विशेषकर जम्मू-कश्मीर में अभी भी पाकिस्तान के पाले-पोसे भाढ़े के टट्टू मासूम लोगों के खून से होली खेलने को लालायित रहते हैं किन्तु हमारे जांबाज सुरक्षा बल आए दिन जम्मू-कश्मीर में कहीं न कहीं मुठभेड़ों में दुर्दान्त आतंकियों को ढेर कर रहे हैं। पिछले तीन-चार वर्षों में ही सुरक्षा बलों द्वारा सैंकड़ों कुख्यात आतंकियों को दर्दनाक मौत दी जा चुकी है। आतंकियों के खिलाफ चल रहे सुरक्षा बलों के अभियान के चलते पिछले साल भी 180 से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया गया। दूसरी ओर इन आतंकियों के सरपरस्त भुखमरी के कगार पर खड़े पाकिस्तान को भी पूरी दुनिया के सामने बेनकाब करने और उसकी आर्थिक रीढ़ तोड़ने के प्रयास लम्बे समय से जारी हैं, जिनमें सफलता भी मिल रही है।
विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से घाटी में सुरक्षा बलों के एनकाउंटर में सर्वाधिक आतंकवादी मारे गए हैं। जम्मू-कश्मीर में युवाओं के आतंकी संगठनों में भर्ती का मुद्दा सुरक्षा बलों के लिए चिंता का विषय है लेकिन राहत की बात यह है कि युवाओं को आतंकवाद के खिलाफ जागरूक करने के चलते आतंकी संगठनों में स्थानीय स्तर पर अब भर्तियां काफी कम हो रही हैं। आतंकवादी संगठनों में 2022 में 100 नई भर्तियों के साथ पिछले वर्ष की तुलना में इस आंकड़े में 37 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जिनमें से 65 आतंकवादी मुठभेड़ में मार दिए गए, 17 गिरफ्तार हुए जबकि 18 अभी भी सक्रिय हैं। मारे गए कुल 65 नए भर्ती आतंकवादियों में से 58 को तो आतंकी संगठनों में शामिल होने के पहले ही महीने के भीतर मार गिराया गया। यदि घाटी में आतंकी हमलों की बात की जाए तो केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय द्वारा पिछले साल मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा गया था कि 2019 के बाद आतंकी हमलों और गतिविधियों में कमी आई है।
गृह राज्यमंत्री द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 2018 में 417 आतंकी हमले हुए थे, जो 2021 तक घटकर 229 हो गए। 2019 में जम्मू-कश्मीर में 154 आतंकी मारे गए और 80 जवान शहीद हुए, 2020 में 244 आतंकी हमले हुए। 221 आतंकी मारे गए जबकि 62 जवान शहीद हुए थे और 106 जवान जख्मी हुए थे, 37 आम नागरिक भी मारे गए थे और 112 घायल हुए थे। 2021 में 229 आतंकी घटनाएं हुई, जिनमें 182 आतंकी मारे गए। 42 जवान शहीद हुएए 117 जख्मी हुए जबकि 41 आम नागरिक मारे गए और 75 घायल हुए। इसी साल गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया है कि जम्मू-कश्मीर में 2022 में 117 बार आतंकियों और सेना के बीच मुठभेड़ हुई। 2022 में जम्मू-कश्मीर में कुल 187 आतंकवादी मारे गए और 111 आतंकवाद विरोधी अभियान चलाए गए। इन आतंकी हमलों में 30 से ज्यादा जवान और करीब इतने ही आम नागरिक मारे गए। एडीजीपी कश्मीर के मुताबिक वर्ष 2022 के दौरान जम्मू-कश्मीर में 2022 में 242 आतंकी घटनाएं हुई और सुरक्षाबलों तथा आतंकियों के बीच कुल 93 सफल मुठभेड़ों में 42 विदेशी आतंकवादियों सहित 172 आतंकवादी मारे गए।
कश्मीर घाटी में आतंकी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार लगातार सख्त कदम उठा रही है, इंटेलीजेंस ग्रिड को बढ़ाया और मजबूत किया गया है, आतंकियों के खिलाफ प्रोएक्टिव ऑपरेशंस चलाए जा रहे हैं और रात में पैट्रोलिंग को बढ़ाया गया है लेकिन चिंता की बात यह है कि आतंकवादी संगठन अपने अस्त्तिव का मजबूती से अहसास कराने के लिए हमलों से बाज नहीं आ रहे। 14 फरवरी 2019 को हुए पुलवामा हमले के बाद 20 अप्रैल 2023 को जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों ने एक बार फिर बड़ी घटना को अंजाम देने की कोशिश की, जिसमें उन्होंने राजौरी सेक्टर के भीमबेर गली और पुंछ के बीच राजमार्ग पर गुजर रहे सेना के ट्रक पर गोलीबारी की और हैंड ग्रेनेड फैंके। इस आतंकी हमले में पांच जवान शहीद हो गए। हालांकि सैन्य अधिकारियों के मुताबिक दुश्मन की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन, घुसपैठ की कोशिश या किसी अन्य दुस्साहसिक प्रयास का कड़ाई से जवाब दिया जा रहा है। वैसे घाटी में धारा 370 हटने और सेना की सख्ती के चलते पत्थरबाजी की घटनाओं में बड़ी कमी अवश्य दर्ज की जा रही है। बहरहाल, तमाम अंतर्विरोधों को दरकिनार कर आतंकवाद के फन को कुचलने के लिए हरसंभव कठोर कदम उठाए जाने और एकजुट होकर आतंक के खौफ को मात देने की अब सख्त जरूरत है।

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