वह मायावी है, छलिया है!

वह छलिया है, छलना उसका काम है। यह मायावी है। वह आंकड़ों का ऐसा इन्द्रजाल रचता है कि आप दांतों तले ऊँगली दबाने का मज़बूर हो सकते हैं। वह देश के वित्त को संभालता है और वित्तमंत्री कहलाता है। अच्छा वित्तमंत्री आंकड़ों से खिलवाड़ करने की विद्या में माहिर होता है। आँकड़ों की भूल-भुलैय्या को आम आदमी समझ नहीं पाता, इसकी पेचदार गलियों में खो जाता है। हाथी के दांतों की तरह दिखता कुछ है, जबकि होता कुछ  है। अपने आप को गरीबों का मसीहा मानते हुए उन्हें राहत देने की लोक-लुभावनी घोषणाएँ वह करता है, जो बाद में उनकी रीढ़ की हड्डी का चूरमा बनाने में सक्षम होती हैं। आटे-दाल का भाव तो गरीब आदमी को पहले से पता होता है। फिर रोना किस बात का! वैसे भी भ्रष्टाचार का दैत्य बड़े-बड़े तीसमार-खां वित्तमंत्रियों के काबू में नहीं आ पाया है। सरकारी खज़ाने से पिल्फरिंग का रोग किसी भी चिकित्सा से परे है। सरकारी योजनाएं सफेद हाथी की तरह अपना रौब झाड़ती रहती हैं। स्कैमों के हमाम में नंगे नहाने वाले एक दूसरे को बेपरदा नहीं करते बल्कि मिल-जुलकर एक दूसरे की पीठ पर साबुन लगाते हैं, ताकि बाहर वालों को उनके तन उजले लगें।
हर वित्तमंत्री का कथन होता है कि नया बजट निश्चय ही अधिक प्रगतिशील होगा, जो देश की समृद्धि को और भी बढ़ाने में अपना योगदान देगा। देश की आर्थिक समृद्धि में चार-चाँद लगायेगा। बाहर वालों से स्पर्द्धा करने में सक्षम होगा। इसके लिए लोगों को कुछ न कुछ बलिदान तो देना ही पड़ेगा। उससा चतुर सुजान मिलना शायद कठिन है। वह शूगर-कोटिड् पिल्स खिलाने में माहिर होता है। तमाचा एक आदमी के गाल पर लगाया जाता है और उसके निशान किसी दूसरे के गाल पर पड़ते हैं। अमीर आदमी और अधिक सम्पन्न हो जाता है और आम आदमी अपने आप को लुटा-पिटा पाता है। सरकार का संकल्प होता है कि महंगाई पर लगाम लगा दी जायेगी, लेकिन महंगाई है जो किसी बिगड़ैल सांड की तरह काबू में नहीं आती। सरकार टैक्स-चोरों पर लगाम कसने की बात करती है, लेकिन ‘तू  डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तज़र् पर टैक्स-चोर रास्ते ढूँढ़ ही निकालते हैं । 
हर वित्त मंत्री का मानना होता है कि उसके पिछले बजट के परिणामों के कारण ही देश आज उन्नति की राह पर है। सेंसेक्स छलांगे मार रहा है, सोने का भाव आसमान को छू रहा है। गोया कि पूरा देश बुल्ंिदयों को छूने की तैयारी में है। इसके बावजूद बेरोज़गार शिक्षित युवाओं की लम्बी कतार है, जिनकी जूतियां घिसने में ऐक्सपर्ट हो चुकी है। उन नन्हें-मुन्नों का भविष्य है जो पेट की अग्नि शांत करने के लिए ढाबों और कारखानों की कैद में बंद है।
फिर भी वित्तमंत्री बजट पेश करते समय अपने शालीन भाषण एवं हुनर के लिए पुरस्कृत किए जा सकते हैं ।