पुस्तकालय की कहानी 

आप अपनी पसंद की पुस्तकें या पत्रिकाएं पढ़ने नित्य ही पुस्तकालयों में जाते हैं। ये पुस्तकालय निश्चित रुप से आपके घर के आसपास ही होते हैं। आप पुस्तकालय से इतना प्यार करते हैं कि अचानक किसी दिन वह बंद रहे तो आपको अच्छा नहीं लगता। मगर आपने कभी यह सोचा है कि यह पुस्तकालय कब संसार में आया था? उस समय इसका रुप क्या था? अब कैसे पुस्तकालय हैं?
सुनिए सबसे प्राचीन पुस्तकालय असीरिया में वहां का सम्राट का था। उसमें रखी पुस्तकें मिट्टी और चौकोर पट्टियां थी। इन पुस्तकों पर लिखी गई लिपि को कीलक लिपि कहते थे। इस पुस्तकालय में, इसी तरक की लगभग बीस हजार पट्टियां थी।
प्राचीन काल का दूसरा पुस्तकालय मिस्त्र के सिकन्दरियां नगर में था। ये पुस्तकें पैपाइरस पर हाथ से लिखी जाती थी, फिर इन्हें लपेट कर खोल में बंद कर दिया जाता। मध्य युग में भी पुस्तकें हाथ से लिखी जाती रही। इन्हें चर्मपत्र पर लिखकर जिल्द में बांध दिया जाता था। एक पुस्तक की नकल करने में महीनों का समय लग जाता था। पुस्तकें तब बहुत महंगी थी। इसलिए पुस्तकालयों में अक्सर पुस्तकों को जंजीरों में बांध कर रखा जाता था। दुनिया में कुछ बहुत प्रसिद्ध पुस्तकालय हैं। इनमें सबसे बड़ा पुस्तकालय संभवत: लंदन का ‘ब्रिटिश म्यूजियम पुस्तकालय’ है, जहां करोड़ों ग्रंथ और पांडुलिपियां सुरक्षित हैं।
भारत का राष्ट्रीय पुस्तकालय कोलकाता में है। इसके अतिरिक्त मुम्बई में केन्द्रीय पुस्तकाल और चेन्नई में कोनेमारा सार्वजनिक पुस्तकालय भी हैं, जिनकी व्यवस्था राष्ट्रीय स्तर पर की जाती है और भारत में प्रकाशित हर पुस्तक की एक प्रति अनिवार्य रुप से भेजी जाती है।