प्यार में बर्बाद हुई कल्पना लाजमी

अपनी मौत से पहले कल्पना लाजमी फिल्मकार चेतन आनंद और एक्टर प्रिया राजवंश के ‘अमर प्रेम’ पर एक फिल्म बनाने की योजना बना रही थीं, जिसकी सारी तैयारी पूरी भी हो चुकी थी। शायद प्रिया की कहानी में कल्पना को अपना ही अक्स नज़र आ रहा था। प्रिया की तरह कल्पना भी प्यार में बर्बाद हो गईं थीं, लेकिन दोनों को ही इस बात का कोई अफसोस नहीं रहा। 
कल्पना लाजमी निश्चितरूप से अति प्रतिभाशाली निर्देशक थीं। कल्पना को क्लासिकल गायक भूपेन हज़ारिका से प्रेम हो गया, जोकि न केवल उनसे 30 साल उम्र में बड़े थे बल्कि विवाहित व कई बच्चों के पिता थे। सच, दिल भी अजीब शय है, जिधर आता है, आ ही जाता है और फिर किसी तर्क या बंधन को नहीं देखता है। इसलिए जिस पल कल्पना की भूपेन से मुल़ाकात हुई, तब प्यार समझ, तर्क व आयु के बंधनों से बहुत ऊपर था, जिसके बारे में कल्पना ने एक बार कहा था, ‘मुझे नहीं मालूम हम दोनों के बीच में क्या है? जिस पल मैं भूपेन से मिली, मेरा जीवन पूरी तरह से बदल गया। मैं उनके बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकती। मैं जानती हूं कि संबंध में किसी को भी इतना अधिक समर्पित नहीं होना चाहिए, लेकिन आपको समझना चाहिए कि यह कोई साधारण लव अफेयर नहीं है। मेरा और भूपेन का एक जन्म का साथ नहीं है बल्कि जन्मों का है।’
इसलिए जब भूपेन गम्भीर रूप से बीमार हो गये तो कल्पना लाजमी ने अपनी बचत का एक-एक पैसा उनके अस्पताल के बिल अदा करने में खर्च कर दिया। इसके सात वर्ष बाद जब वह स्वयं बीमार पड़ीं तो उनके पास अपनी मैडीकल केयर के लिए पैसा ही नहीं बचा था। कुछ दोस्त मदद के लिए आगे बढ़े, लेकिन समय के साथ उन्होंने भी अपनी राह बदल ली। सब लोग उन्हें मरने के लिए अकेला छोड़ गये। कल्पना लाजमी का निधन 23 सितम्बर 2018 को गुर्दे के कैंसर के कारण हुआ।
क्या कल्पना लाजमी को अपने इस अंधे प्यार पर कोई अफसोस था? नहीं। उनका प्रेम बिना किसी शर्त के था। उनकी बस एक ही इच्छा थी कि काश वह भूपेन के साथ अधिक समय गुज़ार पातीं। जब कल्पना ने भूपेन को समझना शुरू किया था, तभी वह उन्हें छोड़कर चले गये। ‘तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि मेरे पास अपनी हेल्थकेयर के लिए पैसा नहीं है। मैं खुशी से मर जाऊंगी और भूपेन से जाकर मिल जाऊंगी’। गौरतलब है कि कल्पना लाजमी मात्र 17 वर्ष की आयु में भूपेन से मिली थीं, अपने मामा आत्मा राम के घर डिनर पर और इसके सिर्फ 2 साल बाद यानी जब वह 19 की थीं, तो उनके लिए सब कुछ छोड़कर कोलकाता जाने और उनके साथ रहने के लिए तैयार थीं। लेकिन कल्पना की मां पेंटर ललिता लाजमी (जो एक्टर-निर्देशक गुरुदत्त की बहन थीं) इस विचार के पक्ष में नहीं थीं। उन्हें कल्पना के लिव-इन संबंधों पर तो कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन कल्पना व भूपेन के बीच जो आयु का अंतर था, उसके कारण वह इस संबंध के विरोध में थीं और उन्हें यह भी पसंद नहीं था कि कल्पना भूपेन के जूतों के फीते बांधे। कल्पना का बचपन अपने शराबी पिता कैप्टेन गोपी लाजमी के साथ गुज़रा था, इसलिए यह संभव है कि इस अनुभव से कल्पना के दिमाग में यह ख्याल आया हो कि ‘पिता-पुत्री का आदर्श संबंध’ कैसा होना चाहिए और इस वजह से ही वह पिता-तुल्य भूपेन को दिल दे बैठी हों। कैप्टेन लाजमी की तरह भूपेन भी बहुत शराब पीते थे। 
1954 में जन्मीं कल्पना लाजमी फिल्म निर्देशक, निर्माता व पटकथा लेखक थीं। एक स्वतंत्र फिल्मकार के रूप में वह वास्तविकता पर आधारित कम-बजट की फिल्में बनाती थीं, जिन्हें भारत में समानांतर सिनेमा कहा जाता है। कल्पना लाजमी ने अपना फिल्मी सफर श्याम बेनेगल की सहायक निर्देशक के रूप में आरंभ किया। फिर कुछ डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्देशन करने के बाद उन्होंने 1986 में अपनी पहली फीचर फिल्म ‘एक पल’ का निर्देशन किया, जिसमें शबाना आज़मी, नसीरुद्दीन शाह और फारूक शेख की मुख्य भूमिकाएं थीं। 1988 में अपने पहले टीवी धारावाहिक ‘लोहित किनारे’ का निर्देशन करने के बाद उन्होंने 1993 में फिल्म ‘रुदाली’ का निर्देशन किया, जिसके लिए डिंपल कपाड़िया को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। इनके अतिरिक्त कल्पना लाजमी की चर्चित फ़िल्में हैं ‘दरमियान’ (1997), ‘दमन’ (2001), जिसके लिए रवीना टंडन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, ‘क्यों?’ (2003) और ‘चिंगारी’ (2006)।
कल्पना लाजमी ने अपने प्रेम जीवन पर ‘हज़ारिका: एज़ आई न्यू हिम’ भी लिखी, जिसमें उन्होंने बताया है कि 2011 में भूपेन की मौत के बाद ही उन्हें उनकी ‘पत्नी’ का दर्जा क्यों मिला, जिसके लिए वह उम्रभर इच्छा करती रही थीं। कल्पना लाजमी के साथ लिव-इन में रहते हुए भी भूपेन की अनेक गर्ल फ्रेंड्स थीं, लेकिन कल्पना ने भूपेन को जैसे वह थे, वैसे ही स्वीकार किया और यह सफल कोशिश की कि भूपेन को असम के बाहर भी लोग जानें और उन्हें हमेशा याद रखें।


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