कैलाश मानसरोवर यात्रा आस्थाओं की कीमत वसूलता चीन

चीन के कब्जे वाले तिब्बत में भगवान शिव और माता पार्वती का निवासस्थल ‘कैलाश मानसरोवर’ वह जगह है, जहां जीवन में एक बार हिंदुस्तान का सिर्फ हर आस्थावान हिंदू ही नहीं बल्कि बौद्ध, जैन और बॉन धर्मानुयाई तिब्बत की प्राचीन और पारम्परिक धार्मिक प्रथाओं को मानने वाले भी जाना चाहते है। क्योंकि इन सबके लिए कैलाश मानसरोवर बहुत ही पवित्र स्थल है। यह बात चीन भी भलीभांति जानता है, यही कारण है कि वह जब तब हम भारतीयों की इस कमजोरी को भुनाता रहता है। अब इसे ही लें, पहले कोरोना महामारी और फिर भारत तथा चीन के बीच लगातार जारी तनाव के कारण तीन सालों तक बंद रही कैलाश मानसरोवर यात्रा इस साल फिर से शुरू हुई है, तो चीन ने इसके लिए वसूलने वाले खर्च को लगभग दोगुना कर दिया है। तिब्बत पर्यटन ब्यूरो के मुताब़िक कैलाश टूर पैकेज की लागत अब प्रति व्यक्ति 1,50,000 रुपये (लगभग1,800 अमरीकी डॉलर) की जगह कम से कम 2,50,000 रुपये (लगभग 3,000 अमरीकी डॉलर) होगी। यात्रा खर्च में की गयी यह बढ़ोत्तरी एक तरह से चीन की ब्लैकमेलिंग है। क्योंकि चीन जानता है कि दोगुना क्या, वह दस गुना भी यात्रा खर्च बढ़ा दे, तब भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा की चाह रखने वाले भारतीयों की संख्या में कोई कमी नहीं आयेगी। तब भी इतनी बड़ी तादाद में भारतीय कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए अप्लाई करेंगे कि चीन उन्हें वीजा नहीं दे पायेगा।
कैलाश मानसरोवर एक वार्षिक तीर्थयात्रा है, जो भारत और चीन की सरकारों द्वारा आयोजित की जाती है। इस यात्रा का मार्ग भारत में करीब 1433 किलोमीटर है। यह परंपरागत मार्ग ब्रह्मदेव (टनकपुर) से शुरू होकर सेनापति, चंपावत, रामेश्वर, गंगोलीहाट और पिथौराघाट से लिपुलेख दर्रे तक जाता है। इस मार्ग में भी कई हिंदू व बौद्ध तीर्थस्थल मौजूद हैं, जो इसे और सरस धर्मपथ बनाते हैं। इस यात्रा के दौरान 19,500 फुट की चढ़ाई भी चढ़नी पड़ती है। इस यात्रा का आयोजन विदेश मंत्रालय हर साल जून से सितम्बर के दौरान दो अलग-अलग मार्गों- लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) और नाथू ला दर्रा (सिक्किम) से करता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा का एक तीसरा रूट भी है जो कि काठमांडू से होकर जाता है। इन तीनों रास्तों पर कम से कम 14 और अधिकतम 21 दिन का समय लगता है। वैसे कैलाश भू-क्षेत्र भारत, चीन एवं नेपाल की संयुक्त धरोहर है। लेकिन इस क्षेत्र में कब्जा चीन का रहता है। वैसे इस पवित्र इलाके के दायरे में भारत का 6,836 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आता है। इस क्षेत्र में चार नदियां पनार सरयू, सरयू रामगंगा, गोरी काली और धौली काली बहती हैं। क्षेत्र की बोली मुख्यत: कुमाउंनी, बेयांसे, भोंटिया, हुनिया, हिन्दी और नेपाली हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी के पास कुबेर की नगरी है। यहीं से भगवान विष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। 
इस जगह का महत्व सिर्फ धार्मिक या पौराणिक ही नहीं है, वैज्ञानिक महत्व भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह स्थान धरती का केन्द्र है। धरती के एक ओर उत्तरी ध्रुव है, तो दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव। दोनों के बीचोबीच स्थित है हिमालय और हिमालय का केन्द्र है, कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील। वैज्ञानिकों के मुताब़िक भारतीय उपमहाद्वीप के चारों ओर पहले समुद्र होता था। इसके रशिया से टकराने से हिमालय का निर्माण हुआ। यह घटना अनुमानत: 10 करोड़ वर्ष पूर्व घटी थी। यह एक ऐसा केन्द्र है जिसे एक्सिस मुंडी यानी दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव भी कहा जाता है। यह आकाश और पृथ्वी के बीच का वह बिंदु माना जाता है, जहां दसों दिशाएं मिल जाती हैं। कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर चुके वैज्ञानिकों का कहना है कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है, जो सकारात्मकता का संचार करता है।
साल 2023 की कैलाश मानसरोवर यात्रा के नियमों को पहले से काफी सख्त कर दिया गया है। अब वीज़ा लेने के लिए तीर्थयात्रियों को शारीरिक रूप से उपस्थित होना होगा। ऑनलाइन आवेदन स्वीकार नहीं किया जाएगा। साथ ही भारतीय तीर्थयात्रियों को वीज़ा पाने के लिए उन्हें कम से कम पांच के समूह में होना चाहिए और उनमें से 4 को शारीरिक रूप से इसके लिए उपस्थित होना होगा। अब भारतीय तीर्थयात्री यदि अपनी मदद के लिए नेपाल से किसी वर्कर या हेल्पर को साथ ले जायेगें, तो उन्हें 300 डॉलर यानी 24 हजार रुपये अतिरिक्त चुकाने होंगे। इस शुल्क को ‘ग्रास डैमेजिंग फी’ कहा गया है। चीन का तर्क है कि यात्रा के दौरान कैलाश पर्वत के आसपास की घास को नुकसान पहुंचता है, जिसकी भरपाई यात्री से ही की जाएगी। एक और बाधा खड़ी की जा रही है कि अब सभी तीर्थयात्रियों को काठमांडू बेस पर यूनीक आइडेंटिफेशन कराना होगा। इसमें फिंगर मार्क्स और आंखों की पुतलियों आदि की स्कैनिंग होगी। 
नेपाली टूर ऑपरेटरों का कहना है कि चीन कठिन नियम विदेशी तीर्थयात्रियों विशेषकर भारतीयों के प्रवेश को सीमित करने के लिए बना रहा है। कैलाश मानसरोवर यात्रा नेपाली टूर ऑपरेटरों के लिए सबसे बड़ा बिजनेस है। नए नियमों और बढ़े हुए शुल्क के साथ टूर ऑपरेटर अब रोड ट्रिप के कम से कम 2.85 लाख भारतीय रुपए प्रति यात्री वसूल रहे हैं, जबकि 2019 में सड़क यात्रा पैकेज 90 हजार से 1,00,000 रुपए था। यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन 1 मई से शुरू हो चुकी है। यात्रा अक्तूबर तक चलेगी। यात्रा के लिए चीन द्वारा खड़ी की गयी बाधाओं को देखते हुए नेपाली टूर ऑपरेटरों ने चीनी राजदूत चेन सांग को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें नए नियमों को वापस लेने की मांग की गई है। अब किसी वर्कर को साथ रखने के लिए 15 दिनों की 13,000 रुपये प्रवास फीस अदा करनी होगी जो पहले सिर्फ 4,200 रुपये थी। यात्रा संचालित करने वाली नेपाली फर्मों को 60,000 डॉलर चीनी सरकार के पास जमा कराने होंगे। इसमें समस्या यह है कि नेपाली ट्रैवेल एजेंसियों को विदेशी बैंकों में धन जमा करने की अनुमति नहीं है। ऐसे में यह फीस कैसे ट्रांसफर होगी, इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है। 


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