भारत-अमरीका में अहम समझौते : प्रत्येक क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ेगा देश

गत दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमरीका की चार दिवसीय राजकीय यात्रा की। इस यात्रा का जलवा यह रहा कि पिछले 23 सालों में अब तक अमरीका ने दुनिया के किसी भी राजनेता को इतना महत्व नहीं दिया, जितना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिला है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में जब दो देश एक-दूसरे को उम्मीद से ज्यादा महत्व देते हैं तो निश्चित रूप से इसके पीछे उनके अपने अपने फायदे, नुकसान का गणित होता है, लेकिन इस समय प्रधानमंत्री मोदी को अमरीका में जो महत्व मिला है, उसके पीछे दुनिया के नये सिरे से ध्रुवीकरण की मंशा है।
ऐसा स्वाभाविक भी है। 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 21वीं सदी के पहले दो दशकों में दुनिया में कई स्तरों पर उलट-पलट हुई है। कई बने बनाए मुहावरे टूटे या अर्थहीन हुए हैं जबकि कई नये मुहावरे बने हैं। लब्बोलुआब यह कि पिछले तीन दशकों में दो देशों ने पूरी दुनिया पर जबरदस्त असर डाला है—एक है चीन और दूसरा भारत। चीन ने जहां पिछले तीन दशकों में अपनी आर्थिक प्रगति और तकनीकी बादशाहत से दुनिया को हैरान किया है, वहीं भारत ने पिछले तीन दशकों में बहुत धीरे-धीरे मगर निरन्तर दुनिया के राजनीतिक और कूटनीतिक नक्शे में अपनी जो ताकत बढ़ायी है, उसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है और हां, इस ताकत की तह में भी भारत का आर्थिक विकास ही है। हालांकि चीन के सामने यह विकास बहुत फीका है, फिर भी यह न सिर्फ  वैश्विक अर्थव्यवस्था के उलट-पलट के लिए एक बुनियादी आधार मुहैय्या कराता है बल्कि, भविष्य की जबरदस्त संभावनाओं से भी लैस है।  अब तक अमरीका ने किसी भी देश के साथ लड़ाकू जहाज़ों की जेट इंजन तकनीक साझा नहीं की है, लेकिन भारत के साथ तकनीक साझा करने का समझौत हो गया है। अब अमरीकी कम्पनी के सहयोग से युद्धक विमानों के इंजन भारत में ही बनेंगे। जिस तरह से कदम दर कदम भारत और अमरीका एक दूसरे के नज़दीक आ रहे हैं, उससे साफ  है कि भारत ने अमरीका से यह तकनीक हासिल करके एक इतिहास रच दिया है। भारत का अर्टेमिस संधि में शामिल होना अंतरिक्ष क्षेत्र में बड़ा कदम है। प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदा अमरीका यात्रा में एक ऐसा रूझान दिखा है, जैसा हाल के दशकों में न सिर्फ  अमरीका बल्कि किसी भी देश में नहीं देखा गया। प्रधानमंत्री मोदी की राजकीय यात्रा अपने आप में एक साहित्यिक आख्यान जैसी रही है। कदम कदम पर कालीन बिछाकर उनका स्वागत किया गया। 
एलन मस्क जैसे उद्योगपति प्रधानमंत्री मोदी से बड़ी गर्मजोशी से मिले। शायद ही अब तक की कोई ऐसी यात्रा रही हो, जो किसी देश के राष्ट्र प्रमुख या शासन प्रमुख से उसके अमरीका पहुंचने के अगले चार पांच घंटों में ही दुनिया की इस अकेली महाशक्ति के एक दर्जन से ज्यादा बहुत महत्वपूर्ण लोग लाइन लगाकर मिले हों। प्रधानमंत्री मोदी को यही ठाठ हासिल हुआ है। अमरीका की धरती पर कदम रखने के अगले छह घंटों के भीतर वह अमरीका की एक दर्जन चिन्हित की जा सकने वाली महत्वपूर्ण हस्तियों से मुलाकात कर चुके थे, जिनमें उद्योगपति एलन मस्क और पाल रोमर जैसे अर्थशास्त्री और नीति उद्यमी तो थे ही साथ में रोबर्ट थुर्मन जैसे पोस्ट मॉर्डन मनुष्यता की वकालत करने वाले लेखक भी शामिल थे। 
दुनिया में कुछ नया होने जा रहा है और उसका केंद्र भारत  है, इसकी बहुत कुछ झलक प्रधानमंत्री मोदी की इस अमरीकी यात्रा के दौरान देखी गई है। दुनिया की अकेली महाशक्ति कहे जाने वाले अमरीका के साथ भारत का सबसे संवेदनशील युद्धक तकनीक साझा करने संबंधी समझौता हुआ है। अगले सौ सालों के लिए दुनिया के जिस आर्थिक विकास की कल्पना की जा रही है, उसकी महत्वपूर्ण प्रयोगस्थली भारत है और इसकी रूपरेखा बनेगी है। इसका हम प्रधानमंत्री मोदी से मिलने वाले महत्वपूर्ण शख्सियतों की प्रतिक्रियाओं से भी अंदाज़ा लगा सकते हैं। टेस्ला जैसी फ्यूचररिस्टक कार कम्पनी के मालिक, ट्विटर जैसी आधुनिक मीडिया के मुखिया और अंतरिक्ष में भविष्य की औद्योगिक तथा कारोबारी गतिविधियों की संभावनाओं को तलाश करने में सबसे आगे एलन मस्क ने प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के बाद एक गैर-अनुमानित प्रतिक्रिया में कहा है कि वह तो प्रधानमंत्री मोदी के प्रशंसक हो गये हैं। मतलब साफ  है कोई अनहोनी ही हो जाए तो अलग बात है वरना एलन मस्क अपने बड़े निवेश के लिए भारत आने की तैयारी में है।
पाल रोमर जैसे नीति अर्थशास्त्री और शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर की आधुनिक अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी भूमिका की वकालत करने वाले ने प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के बाद कहा कि  उनका व्यक्तित्व चुंबकीय है। प्रधानमंत्री मोदी से इस दौरे में मिलने वाली हर बड़ी शख्सियत ने उनके बारे में जो प्रतिक्रियाएं की हैं, उनमें उनके सपने, उनके लक्ष्य और उनकी उम्मीदों की झलक मिलती है। अमरीका ही नहीं पूरी दुनिया भले न कहे, लेकिन इस बात को जान चुकी है कि चीन सिर्फ  अमरीका का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी ही नहीं है बल्कि वह अमरीका को कई मोर्चों पर पछाड़ चुका है। 
लेकिन यह भी सच है कि आधुनिक तकनीक, इनोवेशन और भविष्य में ‘सम्पदा’ को बदल देने की क्षमता भी सिर्फ और सिर्फ  अमरीकी अर्थव्यवस्था में ही है। पर सवाल है उसे इसका लाभ कैसे मिले? यह लाभ तभी संभव है, जब उसे बड़े पैमाने पर निवेश का अवसर मिले। लेकिन दुनिया में कभी भी आर्थिक निवेश बिना इस संभावना के नहीं होता कि जहां हम यह निवेश कर रहे हैं, वहां से इसके लौटकर आने की संभावनाएं हैं या नहीं। भारत इन तमाम अनुमानों का सबसे ‘आदर्श प्लेनेट’ बनकर उभरा है। भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा मध्यवर्गीय उपभोक्ता बाज़ार है, अगले 30 सालों तक हर क्षेत्र में जबरदस्त मांग का माहौल है और निश्चित रूप से वह बौद्धिक और शैक्षिक आधारभूत ढांचा भी है, जो किसी भी विकास को अमलीजामा पहनाने के लिए बहुत ज़रूरी है, तो जो स्थितियां बन रही हैं, अगर उन्हें हम सही से संभाल ले गये तो आने वाले एक-दो दशकों में यह सदी एशिया की नहीं बल्कि सबसे पहले भारत की बन सकती है। प्रधानमंत्री मोदी की चारों तरफ  अगुवानी के पीछे यही राज़ है और इस राज़ को मोदी भी जानते हैं।

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