सिख भाईचारे की धार्मिक आज़ादी में हस्तक्षेप पाकिस्तान उचित कार्रवाई करे

पाकिस्तान में अल्प-संख्यकों की सुरक्षा तथा उनकी धार्मिक आज़ादी हमेशा ़खतरे में रही है। इसी कारण गत वर्ष दिसम्बर में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी पाकिस्तान में अल्प-संख्यकों की सुरक्षा तथा भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में उनके साथ हो रहे भेदभाव का गम्भीर नोटिस लिया था, परन्तु वहां स्थितियों में अभी भी कोई ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। अब वहां से ताज़ा समाचार यह आया है कि पाकिस्तान के सूबा सिंध के शहर सक्खर में कुछ लोगों ने गुरुद्वारा सिंह सभा साहिब में दाखिल हो कर जब्री कीर्तन बंद करवा दिया तथा गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी भी की। इस कारण पाकिस्तान, खास तौर पर सिंध के हिन्दू तथा सिख भाईचारे में तीव्र रोष व्याप्त है परन्तु इसके बावजूद स्थानीय पुलिस ने आरोपियों के विरुद्ध उचित कार्रवाई किये बगैर ही उन्हें छोड़ दिया।  परन्तु ताज़ा जानकारी के अनुसार पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ लोगों के दबाव के मद्देनज़र मामला दर्ज कर लिया है। इस घटना पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी तथा कई अन्य सिख नेताओं ने भी गहन चिन्ता व्यक्त की है। भारत सरकार को भी यह अपील की गई है कि वह पाकिस्तान सरकार के समक्ष यह मामला उठाये। इस घटना की जितनी भी निंदा की जाये, कम है।
चाहे देश के विभाजन के दौरान हुये साम्प्रदायिक दंगों में 10 लाख लोग मारे गये थे तथा एक करोड़ लोगों को पलायन का सामना करना पड़ा था परन्तु इसके बावजूद 1950 में दिल्ली में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली के मध्य यह समझौता हुआ था कि दोनों देशों में अल्प-संख्यकों की जान-माल की रक्षा की जाएगी तथा ज़िन्दगी के किसी भी क्षेत्र में उनके साथ भेदभाव नहीं होगा। इससे पहले 11 अगस्त, 1947 को मोहम्मद अली जिन्ना ने लोगों को सम्बोधन करते हुये अल्प-संख्यकों को पाकिस्तान में पूरी तरह धार्मिक आज़ादी मुहैया कराने का विश्वास दिया था। उन्होंने अपनी इस ऐतिहासिक तकरीर में कहा था कि पाकिस्तान में रहने वाले लोग आज़ादी से अपनी मस्जिदों, मंदिरों, गुरुद्वारों तथा गिरिजाघर जाकर अपनी आस्था के अनुसार पाठ-पूजा कर सकते हैं। सरकार का इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। सरकार अपने सभी नागरिकों की रक्षा करेगी।
परन्तु इन विश्वासों के बावजूद पाकिस्तान की स्थापना के बाद वहां लगातार अल्प-संख्यकों पर अत्याचार हुआ है। बड़ी संख्या में अल्प-संख्यकों से संबंधित लोगों को धर्म-परिवर्तन के लिए विवश किया गया है। खास तौर पर हिन्दू समुदाय की नाबालिग लड़कियों का अपहरण करके उनका जब्री धर्म-परिवर्तन किया गया तथा फिर उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका मुसलमान लड़कों के साथ विवाह करवा दिया जाता है। यह सिलसिला आज भी जारी है। गुरुद्वारों के साथ-साथ हिन्दुओं के मंदिरों पर भी हमले होते रहे तथा देवी-देवताओं की मूर्तियों की भी तोड़-फोड़ की जाती रही। पिछले कई दशकों से चल रहा यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। पाकिस्तान की तत्कालीन केन्द्र एवं प्रांतीय सरकारें इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठा सकीं तथा न ही कोई प्रभावी कानून ही बनाये गये हैं। सिख भाईचारे की पाकिस्तान में जनसंख्या चाहे बहुत कम है, फिर भी कुछ लोग पेशावर, पश्चिम पंजाब तथा सिंध आदि प्रदेशों में रहते हैं। विगत कुछ समय में पेशावर में सिख भाईचारे के लोगों पर अनेक हमले हुए हैं। इसी वर्ष पाकिस्तान में दो सिख व्यक्तियों को बंदूकधारियों द्वारा मार दिया गया था। इनमें सरदारा सिंह का लाहौर में मारा गया था जबकि मनमोहन सिंह को पेशावर में गोलियां मारी गई थीं। तीसरे सिख व्यक्ति तरलोक सिंह पर भी पेशावर में जानलेवा हमला हुआ परन्तु उसकी जान बच गई। वैसे पाकिस्तान में शिया, हज़ारा तथा अहमदिया  समुदाय के मुसलमान भी सुरक्षित नहीं हैं। अहमदिया को तो पाकिस्तान की सरकार ने ़गैर-मुस्लिम भी घोषित किया हुआ है। इन समुदायों के लोगों पर भी निरन्तर हमले होते रहते हैं।
पाकिस्तान के इस समूचे घटनाक्रम की विश्व भर के अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, धार्मिक तथा शहरी आज़ादी के लिए काम करने वाले लोगों को न केवल कड़ी आलोचना करनी चाहिए, अपितु पाकिस्तान की सरकार पर प्रभावी ढंग से दबाव भी डालना चाहिए कि वह अपने देश के अल्प-संख्यकों की जान-माल तथा धार्मिक आज़ादी की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हो जो भी कट्टरपंथी संगठन या व्यक्ति पाकिस्तान में अल्प-संख्यकों को निशाना बनाते हैं, उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। भारत क्योंकि पाकिस्तान का बड़ा पड़ोसी देश है, इसकी सरकार को भी इस संबंध में आवाज़ उठानी चाहिए तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा पाकिस्तान पर दबाव डालना चाहिए कि वह अल्प-संख्यकों की रक्षा करे तथा किसी भी क्षेत्र में उनके साथ भेदभाव न हो।