देश में डॉक्टरों की कमी

देश को आज चिकित्सकों की बेहद कमी का सामना करना पड़ रहा है। देश के करीब 75 हज़ार डॉक्टर ओईसीडी यानी आर्थिक सहयोग व विकास संगठन से जुड़े देशों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ताज़ातरीन उदाहरण देश के सबसे बड़े दिल्ली स्थित एम्स का ही देखा जा सकता है, जहां पिछले दस माह में 7 विशेषज्ञ डाक्टरों ने किसी न किसी कारण से सेवाएं देनी बंद कर दी हैं। आज दस हज़ार से अधिक लोगों को प्रतिदिन सेवाएं देने वाले एम्स में ही 200 डाक्टरों की कमी है। यह तो एक मिसाल मात्र है। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे चिकित्सक काबिलियत और विशेषज्ञता के कारण ही विदेशों में अपनी पहचान बनाए हुए हैं और एक मोटे अनुमान के अनुसार ओईसीडी देशों में रह रहे 75 हज़ार डॉक्टरों में से करीब दो तिहाई डॉक्टर तो अमरीका में ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यह तो मानना पड़ेगा कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, परन्तु अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। 
भारत में कोरोना काल में स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत किया गया और सरकारी व गैर-सरकारी प्रयासों से अस्पतालों में वेंटिलेटर, ऑक्सिजन आदि की ज़रुरतों को पूरा करने के समग्र और सार्थक प्रयास किए गए, परन्तु आज भी प्रशिक्षित मैनपावर की कमी के कारण इन उपकरणों का सही उपयोग नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा। यदि हम ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण करें तो देश में शहरी क्षेत्र में तो इनकी कमी है ही, ग्रामीण क्षेत्र के हालात अधिक दयनीय हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2021-22 की माने तो देश में ग्रामीण इलाकों की डिस्पेंसरियों में 81.6 प्रतिशत बाल रोग विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं हैं। और तो और सामान्य फिजिशियनों की ही बात करें तो ग्रामीण क्षेत्र की डिस्पेंसरियों में 79 प्रतिशत फिजिशियनों की कमी है। लगभग 72 प्रतिशत कमी प्रसूति रोग विशेषज्ञाें की है। यह तो सरकारी आंकड़ों में दर्शाई स्थिति है। हालांकि नवीनतम रिपोर्ट में हालात में कुछ सुधार देखने को मिल सकते हैं, परन्तु अधिक सुधार की आशा करना बेमानी होगा। दरअसल हमारे यहां दस हज़ार की आबादी पर केवल 7 डॉक्टर उपलब्ध है जबकि क्यूबा जैसा देश दुनिया में मेडिकल चिकित्सकीय सेवा में आगे है और वहां दस हज़ार की आबादी पर 84 डॉक्टर उपलब्ध है, अमरीका में यह संख्या 35, तो चीन में 23 है।  दरअसल विदेशों जैसी सुविधाएं हमारे डॉक्टरों को यहीं मिलने लगें तो उनके विदेश जाने के रूझान को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। लाख सरकारी दावों के बावजूद अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का 3 प्रतिशत से कुछ अधिक ही खर्च किया जा रहा है जबकि अमरीका में जीडीपी का स्वास्थ्य पर खर्च 18 प्रतिशत से भी अधिक है, तो क्यूबा में 11 प्रतिशत, जापान में 10 से अधिक ही व्यय किया जा रहा है। 
सवाल अभी भी कायम है कि चिकित्सकों के ब्रेन ड्रेन को रोकने के लिए भी सरकार को ठोस प्रयास करने होंगे। डॉक्टरों की सेवा शर्तों में सुधार के साथ निजी और सरकारी दोनों ही क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा देना होगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत बनाना होगा।  हमारे लिए एक अच्छी बात यह है कि देश में मेडिकल टूरिज़्म को बढ़ावा मिलने लगा है। देश के प्रसिद्ध अस्पतालों की अच्छी छवि व उनकी पहचान ही है कि विदेशी यहां इलाज के लिए आने लगे हैं। इससे मेडिकल टूरिज़्म के क्षेत्र में हमारी पहचान बनने लगी है। अब यदि विदेशों में बेहतर सुविधाओं और नाम कमाने के लिए युवा डॉक्टर्स पलायन का रास्ता अपनाते हैं तो इसे रोकने के भी प्रयास करने होंगे। विदेशों की ओर रुख करने वाले डॉक्टरों को देश में ही आवश्यक सुविधाएं मिल जाएं तो उन्हें यहीं रह कर ही अपनी प्रतिष्ठा और पहचान बनाने का अवसर मिल जाएगा।
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