आखिर कलम की जगह फंदा क्यों थाम रहे हैं बच्चे ?

देश के सबसे बड़े कोचिंग हब बने राजस्थान के कोटा में छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का सिलसिला थम नहीं रहा है। इंजीनियरिंग और मैडीकल कॉलेजों में दाखिले के लिए जेईई और नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए प्रतिवर्ष दो लाख से भी ज्यादा छात्र देशभर से कोटा आते हैं लेकिन बीते कुछ वर्षों से यहां छात्रों द्वारा आत्महत्या किए जाने के बढ़ते मामले चिंता का बड़ा कारण बन रहे हैं। 27 अगस्त को केवल 4 घंटे के अंतराल में ही दो छात्रों द्वारा अपनी जान दिए जाने के मामले ने तो पूरे देश को झकझोर दिया, जिसके बाद राजस्थान सरकार द्वारा कोटा के कोचिंग सेंटरों में रूटीन टेस्ट कराने पर दो महीने के लिए रोक लगाई गई है। 2022 में जहां कोटा में छात्रों की आत्महत्या का आंकड़ा 15 था, वहीं इस वर्ष अगस्त महीने तक ही 24 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। इन 24 छात्रों में से सात बच्चे तो ऐसे थे, जिन्हें कोटा के कोचिंग संस्थानों में दाखिला लिए 6 महीने भी पूरे नहीं हुए थे। इस साल के आंकड़ों पर नज़र दौड़ाएं तो कोटा में औसतन हर महीने तीन छात्र आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन केवल अगस्त महीने में ही 7 छात्रों ने अपनी जान दी। मई में 5, जून में 7 और जुलाई में 2 छात्रों ने मौत को गले लगाया। 2015 से 2019 के बीच कोटा में कोचिंग ले रहे कुल 80 छात्रों ने आत्महत्या जैसा हृदयविदारक कदम उठाया। 2020 और 2021 में कोरोना महामारी के कारण अधिकांश कोचिंग संस्थान बंद थे लेकिन 2022 से अब तक 39 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। वर्षवार आंकड़े देखें, तो 2015 में 18, 2016 में 17, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 18, 2022 में 15 और 2023 में अगस्त तक 24 छात्र मौत को गले लगा चुके हैं।
एक समय कोटा बड़े-बड़े कारखानों और धुआं उगलती फैक्टरियों की चिमनियों के लिए जाना जाता था लेकिन जब इन कारखानों में मंदी आई और मशीनें बेजान हो गई तो यहां कोचिंग इंडस्ट्री का कारोबार बड़ा। कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री करीब ढाई दशक पुरानी है और अब तो कोटा में कोचिंग संस्थानों की बहार है। यहां देश के आधा दर्जन से ज्यादा नामी गिरामी संस्थानों से लेकर छोटे-मोटे करीब दो सौ कोचिंग संस्थान चल रहे हैं। इन्हीं कोचिंग संस्थानों के कारण कोटा की पहचान अब एक शहर की नहीं बल्कि एक ऐसी विशाल ‘कोचिंग फैक्टरी’ के रूप में स्थापित हो चुकी है, जहां करीब चार हजार हॉस्टल और 40 हजार से भी ज्यादा पीजी में रहकर लाखों छात्र परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। 2021 में यहां 1.15 लाख, 2022 में 1.77 लाख और 2023 में 2 लाख छात्र देश के कोने-कोने से आए और इतनी बड़ी संख्या में यहां पढ़ने के लिए आने वाले छात्रों की बदौलत ही कोटा में अब कोचिंग संस्थानों का सालाना कारोबार 5 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हो चुका है। छात्र आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए कोटा के ज़िला कलेक्टर ने कहा था कि कोटा में किसी भी कोचिंग सेंटर में अब रविवार को छात्रों का कोई टेस्ट नहीं होगा और इसके अलावा यह भी तय किया गया था कि सप्ताह में एक दिन हर बुधवार छात्रों के लिए फन-डे की तरह सेलिब्रेट होगा, उस दिन बच्चों को केवल आधा दिन पढ़ाई करवाई जाएगी, बाकी समय बच्चे मस्ती करेंगे। कोटा के सिटी एसपी ने कोटा में बच्चों के लिए एक स्टूडेंट पुलिस स्टेशन तैयार करने का भी सुझाव दिया था, जहां बच्चे खुलकर अपनी समस्या बता सकें। डी.एम. का कहना था कि नियमों का पालन करना बेहद आवश्यक है और यदि लापरवाही होती है तो कार्रवाई की जाएगी लेकिन कटु सत्य यही है कि कोटा में कोचिंग संस्थान अपने हिसाब से कार्य करते हैं, इसलिए राजस्थान सरकार के कुछ मंत्री तक कोचिंग संस्थानों को माफिया कहने से गुरेज नहीं करते।
हालांकि छात्रों में बेरोज़गारी, पारिवारिक समस्या, मानसिक बीमारियों से लेकर भेदभाव और दुर्व्यवहार तक कई ऐसे कारक होते हैं, जो मिलकर आत्महत्या की प्रवृत्ति में योगदान करते हैं। छात्र जब अपने परिवार से दूर कोचिंग संस्थान के बिल्कुल नए माहौल में आते हैं तो बहुत कुछ उनके साथ ऐसा होता है, जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं होता। वित्तीय रूप से कमजोर वर्ग से आने वाले छात्रों पर तो जल्द से जल्द कुछ बनकर अपने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी ज्यादा होती है लेकिन साथ ही नौकरी नहीं मिलने या प्लेसमेंट नहीं होने की संभावना भी काफी रहती है और ऐसे अधिकांश छात्र ही कोचिंग संस्थानों के मोटे राजस्व के प्रमुख स्रोत होते हैं। दरअसल ये कोचिंग संस्थान अब पेशेवर दुकानदारी कर रहे हैं, जो अपने यहां हर साल कुछ ऐसे छात्रों को प्रवेश देते हैं, जो प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छे अंकों के साथ शीर्ष स्थान हासिल करने में सफल हो सकते हैं और सफलता के बाद उन छात्रों के सचित्र विज्ञापन अखबारों के पहले पन्ने पर छपवाये जाते हैं, जिससे इनका कारोबार फलता-फूलता है। ऐसे में छात्रों की आत्महत्याओं के मामलों में ये कोचिंग संस्थान भी कम जिम्मेदार नहीं होते, जो दाखिला लेते समय छात्र और उसके अभिभावकों को आश्वासन देते हैं कि अब वे बच्चे का सुनहरा भविष्य बना देंगे।
कोटा ज़िला कलेक्टर ओ.पी. बुनकर के मुताबिक बच्चों के आत्महत्या के मामलों में कई कारण सामने आते हैं, जिनमें पढ़ाई के साथ अभिभावाकों का दबाव आत्महत्या का एक प्रमुख कारण है। ऐसे में कोशिश है कि जो बच्चे पढ़ना नहीं चाहते, उनकी काउंसलिंग कर उनके माता-पिता के साथ भेज दिया जाए। शिक्षा मनोविज्ञान के मुताबिक हर बच्चे की अपनी विशिष्टताएं होती हैं और उसी के अनुसार उसके भविष्य का निर्धारण करना चाहिए अन्यथा हम स्वयं अपने बच्चों का भविष्य बनाने के बजाए खराब कर रहे होते हैं। वैसे भी हर बच्चे को इंजीनियर, डॉक्टर या अफसर नहीं बनाया जा सकता।


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