मणिपुर : केन्द्र प्रभावी कदम उठाये

विगत पांच मास से उत्तर-पूर्वी प्रदेश मणिपुर में हिंसा का दौर जारी है। अधिक चिन्ताजनक बात यह है कि यहां गृह युद्ध वाली स्थिति बन चुकी है। मैदानी क्षेत्रों में मैतेई जाति के लोग रहते हैं, जो प्रदेश में बहुमत में हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में कूकी, नागा तथा कुछ अन्य कबीले बसे हुये हैं। समस्या की जड़ आरक्षण है। इन पहाड़ी कबीलों के लोगों को यह आरक्षण मिला हुआ है तथा ज़मीन व जंगल पर भी ज्यादातर अधिकार उनके हैं। मैतेई जाति के लोग लम्बी अवधि से इसी तरह के आरक्षण की मांग करते रहे थे। प्रदेश के उच्च न्यायालय द्वारा उनके पक्ष में फैसला होने तथा उन्हें अनुसूचित कबीले का दर्जा दिये जाने के बाद इस ़फैसले के विरोध में पहाड़ी कबीलों के लोगों द्वारा प्रदर्शन किये गये, जिससे आपसी हिंसा भड़क उठी तथा उसने भयावह रूप धारण कर लिया। जुलाई मास में कुछ महिलाओं की आपत्तिजनक स्थिति में तस्वीरें सामने आईं, जिसने आग में घी डालने का काम किया। यहां तक कि भीड़ द्वारा पुलिस थानों से हथियार लूट लिए गये, व्यापक स्तर पर आगज़नी हुई, हज़ारों लोगों में आपसी झड़पें हुईं तथा सुरक्षा बलों के साथ टकराव में भी हज़ारों लोग घायल हो गए। अब तक लगभग पौने दो सौ व्यक्ति इस हिंसा की भेंट चढ़ चुके हैं तथा दर्जनों लापता हैं। पुलिस ने सैकड़ों  प्राथमिक रिपोर्टों के आधार पर मामले दर्ज किए हैं परन्तु स्थिति में सुधार होते दिखाई नहीं दे रहा। केन्द्र तथा प्रदेश सरकार की इस मामले में प्रभावहीनता वाली स्थिति एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। 
विगत दिवस संसद में भी विरोधी पार्टियों द्वारा इस हिंसक घटनाक्रम के संबंध में आवाज़ उठाई गई थी। इन नेताओं द्वारा केन्द्र तथा प्रदेश सरकार को भी कड़ी आलोचना का निशाना बनाया गया परन्तु इसके बावजूद यह आश्चर्यजनक बात ज़रूर है कि प्रधानमंत्री ने इस समय में एक बार भी इस प्रदेश का दौरा नहीं किया तथा न ही वह इस संबंधी कोई गतिविधि करते दिखाई दे रहे हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री संसद में इस संबंध में अपने स्पष्टीकरण अवश्य देते रहे हैं, परन्तु  अभी तक अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को कुर्सी से न हटाने की केन्द्र की ज़िद को हल्के में नहीं लिया जा सकता। ज़िम्मेदार कुर्सी पर बैठा जो व्यक्ति पिछले पांच मास से ऐसे हिंसक घटनाक्रम को देख रहा हो, जिसमें व्यापक स्तर पर सम्पत्ति तथा मानव जीवन लगातार दम तोड़ रहा हो, उसे किसी भी तरह कुर्सी पर बने रहने का हक नहीं होना चाहिए। हम इस मामले पर केन्द्र तथा प्रदेश सरकार की बड़ी विफलता समझते हैं। चाहे अब व्यापक स्तर पर अधिकारियों के स्थानांतरण करके बाहर से लाये गये अधिकारियों को तैनात किया जा रहा है परन्तु इससे हालात में कोई ज्यादा अन्तर पड़ते दिखाई नहीं दे रहा। इस घटित होते हिंसक घटनाक्रम के दौरान जुलाई मास में दो विद्यार्थी लापता हो गए थे। विगत दिवस उनके शवों की तस्वीरें सामने आने से एक बार फिर वहां के लोगों में व्यापक स्तर पर बेचैनी पैदा हुई दिखाई देने लगी है। वहां की जातियों के लोग एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि यूनाइटेड नैशनल लिबरेशन फ्रंट के कार्यकर्ता भी इस टकराव में शामिल हो गए हैं जिस कारण स्थिति लगातार और भी खराब होती जा रही है। ऐसे हालात में एक बार फिर सेना को अधिक अधिकार देने वाला कानून अफस्पा लागू करने की घोषणा कर दी गई है। एन. बीरेन सिंह की सरकार का यह प्रभाव बना रहा है कि स्थिति उसके नियन्त्रण में नहीं आ रही, जिससे सरकार में भी घबराहट वाली स्थिति पैदा हो चुकी है। इसी क्रम में ही उसने विगत दिवस देश के कुछ बड़े सम्पादकों द्वारा वहां का दौरा करने के बाद दी गई रिपोर्ट के आधार पर उन पर ही मामला दर्ज कर लिया गया था, जिस कारण देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट को भी हस्तक्षेप करना पड़ा। 
ऐसी स्थिति में हम केन्द्र सरकार को एक बार फिर यह सुझाव देना चाहते हैं कि  वह इस बेहद संजीदा हो चुके मामले में पूरा हस्तक्षेप कर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को बदलने का हौसला दिखाए। उठाया गया ऐसा कदम जहां प्रदेश के लोगों के हित में होगा, वहीं देश के लोगों में भी एक अच्छा सन्देश जाएगा। इससे आगामी समय में बिगड़े हुए माहौल को ठीक करने में भी सहायता मिल सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द