जिद्दी होते बच्चे

माता-पिता के अनावश्यक लाड़-प्यार के कारण आज बहुत से बच्चे असहिष्णु होते जा रहे हैं। आजकल बच्चों में जिद करना, कहना न मानना, तोड़फोड़ आदि की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और वे दिन-प्रतिदिन ईष्यालु व अहंकारी बनते जा रहे है। यह वास्तव में चिन्ता का विषय है।
आज इस 21वीं शताब्दी में शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ा है। इसलिए घर में पति-पत्नी दोनों ही उच्च शिक्षा ग्रहण करके नौकरी अथवा अपना व्यवसाय कर रहे हैं। सवेरे से शाम तक अपने कार्यों में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें अपने बारे में भी सोचने का समय नहीं होता। इससे उनका अपना सामाजिक जीवन भी प्रभावित होता जा रहा है।
किसी दूसरे बच्चे के पास जो भी नई वस्तु देखते है वही उन्हें चाहिए होती है। चाहे उसकी ज़रूरत उन्हें हो या न हों। चाहे खरीद कर उसे कोने में पटक दें। दूसरों को अपने से छोटा समझने की प्रवृत्ति उनमें बढ़ती जा रही है। उन्हें ऐसा लगता है कि उनके माता-पिता के पास बहुत-सा पैसा है और वे जो चाहें या जब चाहें कुछ भी खरीद सकते हैं। इस प्रकार के व्यवहार से वे अहंकारी बनते जा रहे हैं। यह किसी भी प्रकार से उनके सर्वांगीण विकास लिए उपयुक्त नहीं है।
हर उस बच्चे से वे ईर्ष्या करते है जो उनसे किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ रहा होता है। वे इस बात को आत्मसात नहीं कर सकते कि उन्हें कोई भी किसी भी क्षेत्र में हरा दे और उनसे आगे निकल जाए। हर समय तो भाग्य साथ नहीं देता और जब ऐसा हो जाता है तो मानो उनकी दुनिया में कुछ भी नहीं बचता। अपने को पटकनी देने वाले का समूल नाश करने के लिए षडयंत्र करने लगते हैं। ऐसे ही बच्चे बागी होकर फिर गैंगस्टर बन जाते हैं और हाथ से निकल जाते हैं।
माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को उनकी आवश्यकता के अनुसार सब कुछ खरीद कर दें। साथ ही उन्हें न सुनने की आदत भी डालें। ऐसा होने से बच्चे को यह समझ में आ जाएगा कि हर बात के लिए जिद नहीं की जाती। यदि कोई मनचाही वस्तु किसी कारण से न मिल पाए तो घर में न तो हंगामा करना होता है और न ही तोड़फोड़। इससे उनमें स्वत: सामंजस्य की समझ भी आ जाएगी। (उर्वशी)