और, घर मुस्कुरा पड़ा

मंगत बाबू, मोती बाबू के पुराने मुलाज़िमों में से एक थे। मोती बाबू का देहांत इधर हाल ही में हो गया था। मोती बाबू ने अपने इसी छोटे से गल्ले की दुकान से अपने दोनों बच्चों को पढ़ाया-लिखाया था। जहां मंगत बाबू काम करते थे और आज मोती बाबू के दोनों बच्चे अंकित और अजय ऊंची जगह पर किसी बड़ी कंपनी में काम कर रहे थे। 
मोती बाबू के जाने के बाद मंगत बाबू अब इस घर में अकेले बुजुर्ग बचे थे। बचपन से लेकर जवानी और यहां तक की लगभग पूरा बूढ़ापा भी उन्होंने इसी परिवार की सेवा में काट दिया था। अंकित और अजय को वो बचपन से ही बड़े होते देख रहे थे। घर में अब अंकित, अजय और उनकी पत्नियां दर्शी और प्रीति रहते थे। मोती बाबू की पत्नी सरला देवी अक्सर बीमार रहतीं थी। चूंकि मोती बाबू की दुकान अब बंद हो गई थी। इसलिए मंगत बाबू की ज़रूरत अब उस दुकान पर नहीं रह गई  थी। लेकिन, मंगत बाबू ने शादी नहीं की थी और उनका कोई बच्चा भी नहीं था। 
मंगत बाबू ने इधर सालों से अपने रिश्तदारों से भी कोई संपर्क नहीं साधा था। वो बड़ी दुविधा में थे कि उनका तो कोई घर भी नहीं है और भला अब इस बुढ़ापे में वो आखिर कहां जायेंगें और इस उम्र में आखिर  एक बूढ़े नौकर को भला कौन रखेगा? किसी तरह दस दिनों तक वे रूके रहे। जब मोती बाबू के सारे मेहमान विदा हो गये तो एक दिन वो भी चलने को हुए। दो-जोड़ी कपड़े और कुछ ज़रूरत के सामान ट्रंक में रखकर वो घर से बाहर निकलने को हुए लेकिन सरला देवी और अजय, अंकित को बताना भी तो ज़रूरी था कि वो जा रहे हैं लेकिन उन्हें ये बातें कहते हुए झिझक भी हो रही थी। लगभग चालीस साल का संबंध ऐसे ही खत्म थोड़े होता है। उन्होंने छड़ी, धोती और ट्रंक संभाला और बैठक में आ गये। 
और अंकित से बोले-‘अच्छा अंकित, बाबू अब आज्ञा दीजिए। परमात्म की कृपा से मैंने जीवण में मोती बाबू और आप लोगों की बहुत सेवा की। अब मोती बाबू नहीं रहे और दुकान भी बंद रहती है। अब मेरी ज़रूरत इस दुकान में नहीं है। इसलिये मुझे अब आज्ञा दीजिये अंकित बाबू। गांव जाकर वहीं कोई खेती बाड़ी या कोई दूसरा छोटा-मोटा काम करूंगा।’
अंकित दफ्तर के लिये निकलने वाला था। मंगत बाबू की बात सुनी तो वहीं रूक गया और आश्चर्य से मंगत बाबू का सामान हाथ से लेकर जमीन पर रखते हुए बोला- ‘आप इस उम्र में भला कहां जायेंगे, मंगत चाचा? आप कहां जाकर रहेंगें? चालीस साल तक आपने हमारी सेवा की और अब अचानक ही ऐसे-कैसे चले जायेंगें? आपका तो गांव पर कोई घर भी नहीं है। आखिर, आप कहां जाकर रहेंगे?  किसी ने घर में आपसे कुछ कहा है क्या?’
अंकित ने वहीं से अपनी पत्नी और मां को आवाज दी। दर्शी और सरला देवी अंकित की आवाज़ सुनकर बैठक में आ गईं। तब अंकित ने मां और दर्शी को मंगत चाचा के घर से जाने की बात बताई। 
अंकित की बात सुनकर सभी लोग सकते में आ गये। प्रीति भी काम छोड़कर अंकित की बात सुनने के लिये बैठक में आ गई। 
अजय मार्किट गया हुआ था। कोई सामान लाने। उसने भी ये बात सुनी तो सकते में आ गया।
‘आपको कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है, मंगत चाचा। जैसे आप हमारे घर में पहले से रहते आ रहें थे। वैसे ही अब आप आगे भी रहेंगे। बाबूजी हमारे साथ रहते थे, तो हमें बहुत हिम्मत थी। उनके आशीर्वाद से इस घर में अब कोई कमी नहीं है। लेकिन एक पिता की कमी इस घर में है लेकिन आज से आप इस घर में हमारे चाचा नहीं पिता की हैसियत से रह सकते हैं। आप उनकी जगह लेकर इस घर की और हम बच्चों की देखभाल पहले की तरह करते रहें। ये आपसे हमारी एक विनती है।’ 
‘हां, अजय ठीक कह रहा है, मंगत जी आप यहीं रहें और बच्चों की देखभाल करें। बिना बुजुर्गों के घर सूना-सूना सा लगता है।’ सरला देवी आंखों के कोर पोंछती हुई बोलीं। 
मंगत चाचा की आंखें अब भींगने लगीं थीं। कहां तो वे ये सोच रहें थे कि वो कहां और किसके पास जाकर और रहेंगे? और कहां तो उन्हें इतना प्यार मिल रहा था और भला इतना प्यार पाकर कोई कहां जा सकता था। 
दर्शी और प्रीति ने मंगत चाचा का ट्रंक और छाता हाथ से ले लिया और उनके कमरे में रख आईं।
ऐसा होते देख घर भी मुस्कुरा पड़ा!

-मेघदूत मार्किट फुसरो, 
बोकारो झारखंड, पिन.829144