तमिल लेखिका सी.एस. लक्ष्मी को मिला  टाटा लिटरेचर लाइव सम्मान

अम्बाई की कहानी संग्रह ‘ए नाईट विद ए ब्लैक स्पाइडर : स्टोरीज’ (2017) की पहली कहानी ‘ए लव स्टोरी विद व सैड एंडिंग’ में राक्षस महिषण को उस देवी से प्रेम हो जाता है, जो उसकी हत्या कर देगी। वह अपना प्रेम संदेशा अपने दूतों के ज़रिये देवी के पास इस उम्मीद से भेजता है कि उसे अपना प्यार मिल जायेगा। देवी जवाब देती है, ‘चूंकि वह बहादुर है इसलिए वह कहती है कि वह पुरुष है और चूंकि महिषण प्रेम का इज़हार कर रहा है इसलिए वह महिला है।’ इसके बाद अम्बाई वही टिप्पणी करती हैं जिसकी उनके वफादार पाठक उनसे आशा करने लगे हैं- ‘ऐसा बोलकर देवी ने स्त्रीलिंग व पुल्लिंग के मौजूद दायरे में ही बोला। अगर वह स्त्रीलिंग व पुल्लिंग गुणों की मिश्रण हैं तो फिर महिषण पुल्लिंग व स्त्रीलिंग का मिश्रण क्यों नहीं हो सकता?’
सीएस लक्ष्मी, जो अम्बाई के नाम से लिखती हैं, ने 16 वर्ष की आयु में लिखना शुरू किया था, जो अब तक जारी है जबकि इस साल वह 79 बरस की हो जायेंगी। उनका फेमिनिस्ट लेखन इतना अधिक व प्रभावी है कि तमिल में उनका कोई प्रतिद्वंदी है ही नहीं। हाल ही में उन्हें टाटा लिटरेचर लाइव! लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार भारत में लेखन व साहित्य के क्षेत्र में निरंतर व उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाता है। 7 अक्तूबर 2023 को उन्हें शक्ति भट बॉडी ऑफ वर्क प्राइज भी दिया गया। उन्हें 2021 में साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। तमिल प्रकाशन संसार का मानना है कि अम्बाई इस भाषा की पहली और स्थायी फेमिनिस्ट लेखिका हैं, जो सामाजिक लिंग मानकों को निरंतर चुनौती देती हैं और कभी-कभी उन्हें फिर से लिख भी देती हैं। कलाचुवाडु पब्लिकेशन के प्रकाशक कन्नन सुंदरम का अम्बाई व उनके कार्य से 63 वर्ष पुराना रिश्ता है। वह बताते हैं, ‘मैं जब 7 या 8 साल का था, तब से मैं अम्बाई को जानता हूं। मेरा मानना है कि वह तमिल की पहली फेमिनिस्ट लेखिका हैं। अन्य लेखक भी हैं जिनके लेखन में फेमिनिस्ट तत्व हैं, लेकिन मैं समझता हूं कि अम्बाई अपने जीवन व कार्य और एक्टिविज्म में शुरू से अंत तक फेमिनिस्ट हैं।’ अम्बाई स्वयं कहती हैं, ‘मैं बिना किसी समझौते के एक फेमिनिस्ट के तौर पर जीती हूं।’
अम्बाई का जन्म 1944 में तमिलनाडु में हुआ था। उन्होंने दिल्ली के जवाहरलाल यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की। उन्होंने 1960 में लिखना शुरू किया और 1970 व 1980 के दशकों में वह तमिल में इकलौती फेमिनिस्ट लेखिका थीं। उन्हें साहित्य जगत से जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा, जो उस समय मुख्यत: उच्च वर्ग व पुरुष प्रधान था। कन्नन सुंदरम बताते हैं, ‘उन्हें दो दशकों से अधिक भयंकर विरोध का सामना करना पड़ा। उनके बारे में अपशब्द कहे जाते थे और उनके कार्य को तुच्छ व किसी लायक नहीं समझा जाता था। इसके बावजूद वह मज़बूती से अपना काम करती रहीं, शायद 90 के दशक तक जब अन्य फेमिनिस्ट लेखक भी उनका साथ देने के लिए उभर आये थे।’ अद्वितीय लक्ष्मी होल्मस्ट्रोम ने तमिल भाषा से बाहर की दुनिया के लिए उनके कार्य का अनुवाद किया। पेरूमल मुरुगन के बाद अम्बाई केवल दूसरी तमिल लेखक हैं, जिनके सम्पूर्ण कार्य का अनुवाद अंग्रेजी में हो चुका है। अनुवाद के कारण बहुत बड़ी दुनिया उनके कार्य से परिचित हो गई है। अब उनके चरित्रों के संसार से, जिस जगह वह रहते हैं, उनकी बोली, उनके जीवन की विचित्र स्थितियां, दिनचर्या आदि से पाठकों की मुलाकात हो गई है। अम्बाई अपने दृष्टिकोण और अक्सर अपनी तीखी ज़बान से लोगों को भावविभोर व सोचने के लिए मज़बूर कर देती हैं। उनके चरित्रों की रेंज विस्तृत है, जिन्हें वह लघु कथाओं के छोटे से कैनवास पर जिंदा कर देती हैं। उन्हें शोर्ट स्टोरी लिखना अधिक पसंद है और अब तो वह इस फॉर्मेट की माहिर हो गई हैं। चाहे प्यार का मारा राक्षस महिषण हो या थंगम अथाई जो कभी महिला के रूप में ‘खिल’ न सकी। बहू मीनाक्षी जो अपनी रसोई का विस्तार चाहती है, निडर जासूस सुधा गुप्ता... ये सब एकदम जीवित चरित्र हैं, जो जाने पहचाने से लगते हैं। इन महिला चरित्रों में उमंग हो या न हो, लेकिन उनमें खामोश विद्रोह की एक चाहत है, सामाजिक संरचना की समझ है, फेमिनिस्ट विचार से मौन समझौता है और वह निरंतर लिंग व्यवस्था पर प्रश्न उठाती हैं।
अम्बाई की एक अन्य उपलब्धि ‘स्पैरो’ (साउंड एंड पिक्चर आर्काइव्ज फॉर रिसर्च ऑन वीमेन) है, जिसकी उन्होंने 1988 में स्थापना की ताकि महिला लेखिकाओं व कलाकारों के कार्य को डॉक्यूमेंट व आर्काइव किया जा सके। यह अनेक पांडुलिपियों का आला व दुर्लभ संग्रह है। जहां तक उनके लेखन की बात है तो उम्मीद की जा सकती है कि ‘ए नाईट विद ए ब्लैक स्पाइडर’ की भूमिका में जो उन्होंने वायदा किया उसे वह पूरा करेंगी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर