चुनावी रेवड़ियां खाइए, नेताजी के गुण गाइए

रामखेलावन सावन-भादों की झमाझम बारिश में भी पसीने से नहाए हैं। अबकी दऊ राजा धोखा दे गए। ठीक वैसे ही धोखा जैसे नेताजी देते हैं। चुनावों में खूब सपने बेचते हैं, लेकिन उसे पूरा नहीं करते हैं। खेत में धान सुख रहा है तो बेचारे रामखेलावन का कलेजा सुख रहा है। बचपन से लेकर बुढ़ौती टपक पड़ी लेकिन 24 घंटे बिजली का वादा-वादा ही रह गया। ठीक उस हिंदी फिल्म की तरह। कसमें वादे प्यार वफा सब, बातें हैं बातों का क्या।
गाजोधर चाचा से रामखेलावन की हालत देखी नहीं जा रहीं थीं। अस्सी चुटकी नब्बे ताल तब देखो सूरती का कमाल। रामखेलावन! तुम काहे परेशान हो। निरा बुडबक हो। अरे भईया बारिश नहीं हुई तो नहीं हुई। करम जले अबकी साल तो चुनाव है। रेवड़ियों का मौसम है। फिर काहे की चिंता है। हमारी एंकरानियों के नखरे देखो। डिबेट में हल्दी, धनिया और नून तेल गायब है और बहस मसालेदार गालियों पर हो रहीं।
देखो! एक दूसरे पर कैसा तीर चल रहा है। बस, हमें भी अपने विकल्प की तलाश शुरू कर देनी चाहिए। अब तुम उस टमाटर के पीछे मत पड़ो। अरे! अब वह दौर नहीं रहा जब प्याज और टमाटर मिलकर सरकार गिरा देंगे। पब्लिक है भाई पब्लिक वह सब कुछ झेल लेगी। टमाटर, अदरक, लहसुन और धनिया भूल जाएगी। क्योंकि राजनेताओं की तरह वह सब कुछ याद नहीं रखती। तुम भी बारिश को भूल जाओ। प्यारे रामखेलावन जी चिंता अब छोड़िए। अब मुफ्त की खाने की आदत डाल लीजिए। बोलिए हमें वन नेशनल वन इलेक्शन नहीं चाहिए। वरना हमें मुफ्त की रेवड़ियां कहां मिलेंगी। हम तो चाहते हैं मुलुक में बारहमासा चुनाव हो। कम से कम मुफ्त राशन मिलेगा। बिजली फ्री मिलेगी। रसोई गैस सस्ती होगी। चुनाव की आहट में टमाटर भी शेयर बाज़ार की तरह लुढ़क जाएगा। चुनाव आते ही ऐसा गिरा की ससुरे की औकात मालुम हो गयीं। उसे कहां पता था कि जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना। 
इस लिए रामखेलावन जी चिंता छोड़िए। चुनाव का चिंतन कीजिए। आप धान भले न काट पाएं, लेकिन चुनावी वायदों से आपका घर भर जाएगा। बाद में चटनी न मिले यह अलग बात है। 
(सुमन सागर)