इज़रायल-हमास युद्ध इतिहास किसे ठहरायेगा 5,400 बच्चों का हत्यारा..!

करीब आधा दर्जन से ज्यादा प्रतिबंधों के साथ गाजापट्टी में चार दिनों का युद्धविराम लागू हो गया है, जो युद्धविराम कम, अपनी शर्तों से फिलिस्तीन की संप्रभुता को हिकारत का जामा पहनाना लगता है। सवाल है 7 अक्तूबर से लेकर 22 नवम्बर 2023 तक इज़रायल और गाजापट्टी में जो करीब 5,400 बच्चाें की हत्या की गई है, आखिर इतिहास इन बच्चों का हत्यारा किसे ठहरायेगा? 7 अक्तूबर को जब हमास ने इज़रायल पर छापामारशैली में धावा बोला और 1200 से ज्यादा लोगों की हत्या करने के साथ ही 240 लोगों को बंधक बना लिया, तो न सिर्फ इन बंधकों में 30 से ज्यादा ऐसे मासूम बच्चे थे, जो सही मायनों में जंग का मतलब भी नहीं जानते थे बल्कि जिन इज़रायलियों की हमास ने बेरहमी से हत्या की, उनमें भी 160 के करीब बच्चे और चलने फिरने को मोहताज बूढ़े थे। 
इज़रायल ने इस सबका बदला लेने के लिए जब गाजापट्टी पर बमों और गोला बारूद की धुआंधार बारिश की और फिर टैंकों के साथ घुसकर मध्ययुग के बर्बर आक्रांताओं की याद ताज़ा की, तब इस सबमें संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक जो 13,000 से ज्यादा लोग मारे गये, उसमें 5,200 से ज्यादा मासूम बच्चे रहे। इस जंग में क्रूरता का शिकार करीब 900 तो ऐसे दुग्धमुंहे बच्चे हैं, जिन्होंने अभी भरपूर नज़रों से इस दुनिया को भी नहीं देखा था। सवाल है जब इतिहास में आने वाली पीढ़ियां, इस जंग के बारे में पढ़ेंगी, तो 21वीं शताब्दी की इस सभ्य और विकसित मानी जाने वाली दुनिया में आखिर 5,400 से ज्यादा बच्चों की क्रूर हत्या के लिए किसे दोषी ठहराएंगी? आखिर इन बच्चों के हत्यारों के रूप में भविष्य की पीढ़ियां किसे चिन्हित करेंगी? बच्चे किसी देश का ही नहीं समूची धरती का सामूहिक भविष्य होते हैं। इतिहास में अनगिनत क्रूर लड़ाईयाें में भी कोशिश की जाती रही है कि बच्चों को निशाना न बनाया जाए। मध्ययुग में बर्बर आक्रांता भी जंग में बच्चों को बख्शने की कोशिश किया करते थे।
लेकिन इस धुर 21वीं शताब्दी में जब वैज्ञानिक रोबोटिक मशीनों में इंसानी संवेदना डालने की जद्दोजहद से गुजर रहे हैं, यूरोप से लेकर अमरीका तक घरों में पाले जाने वाले पालतुओं और घर के बाहर रहने वाले आवारा पशुओं के लिए भी सिर्फ संवेदनशीलता ही नहीं दर्शायी जा रही है बल्कि इसे कानूनी बनाने के लिए अदालतों में पिटीशन तक दायर की जा रही हैं, ऐसे दौर में यह दुनिया आखिर गाजापट्टी और इज़रायल में मासूमों के साथ जो बर्बरता बरती गई, उनका जो कत्लेआम हुआ, उसे कैसे स्वीकारेगी? सवाल स्वीकारने का ही नहीं है बल्कि सवाल यह भी है कि आखिर इसके लिए किसको जिम्मेदार ठहरायेगी? सिर्फ यह कह देना अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना है कि इज़रायल को अपनी सुरक्षा का हक है और इस हक के तहत अपने को सुरक्षित रखने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है, या कि दशकों से सताये जाने के कारण हमास का गुस्सा अपने से ताकतवर दुश्मन के खिलाफ उबल पड़ा और वह इस गुस्से की स्थिति में किसी भी हद से गुजर गया। 
जी, नहीं! बात सिर्फ इतनी नहीं है। बात यह है कि 7 अक्तूबर से 22 नवम्बर 2023 तक दुनिया के तमाम बड़े राजनेताओं के वक्तव्यों को उठाकर देख लीजिए, किसी ने स्पष्ट तौर पर और पूरी दृढ़ता से यह कहने की जुर्रुत नहीं की कि इस जंग में एक भी मासूम की हत्या नहीं होनी चाहिए। महज फर्ज अदायगी के लिए राष्ट्र संघ के महासचिव से लेकर अमरीका के राष्ट्रपति तक और दुनिया के दूसरे नेता भी यह ज़रूर कहते रहे कि युद्ध बंद होना चाहिए, आम जनता को इसका खामियाजा भुगतने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए या कि बच्चों, मासूमों और महिलाओं को सॉफ्ट टारगेट नहीं करना चाहिए, वगैरह वगैरह। लेकिन इन रस्मी टिप्पणियों के अलावा दुनिया के किसी भी देश ने आगे बढ़कर साफ शब्दों में ये नहीं कहा कि बहुत हो गया, इस तरह बच्चों को क्रूरता का निशाना नहीं बनाया जा सकता? आखिर जब इतिहास लिखा जायेगा तो इस दौर में जीने वाले दुनिया के तमाम लोग कैसे उस पीढ़ी का सामना करेंगे, जो पीढ़ी भविष्य में पढ़ेगी और जानेगी कि 21वीं शताब्दी के इस सबसे विकसित दौर में कैसे पूरी दुनिया अबोले, दुग्धमुंहे बच्चों की चिंदी चिंदी हत्याएं देखती रही। देखकर कभी मुंह घुमा लिया, कभी रस्मी शब्दों से चिंता जता दी।
जाहिर है इस छोटे से लेख में यह तय करने की कोशिश नहीं की जा सकती कि आखिर इज़रायल फिलिस्तीन संकट में कौन ज्यादा दोषी है और कौन कम। क्या इस पूरे संकट के लिए दुनिया के वो देश जिम्मेदार नहीं हैं, जो आज जंग की सरहद पर खड़े होकर खूनखराबे का तमाशा देख रहे हैं? यह कैसी प्राथमिकता और संवेदना है कि दुनिया इतिहास के इस सबसे विकसित दौर में महज इसलिए अपने से बहुत कमजोर देश पर बमों, गोलों की धुआंधार बारिश को आंख घुमाकर देखे जा रही है या गर्दन फेरकर तमाशाई बनी हुई है कि इससे उसके हित प्रभावित नहीं हो रहे हैं। आज दुनिया के कई देशों के पास इतनी ताकत है कि वो चाहें तो पूरे धरती का अस्तित्व मिटा दें। क्या ये देश इज़रायल को इस वीभत्सता के लिए रोक नहीं सकते थे? क्या निजी स्वार्थ ही सबकुछ होते हैं? क्या मध्य पूर्व के मुस्लिम देश सामूहिक रूप से हमास पर इस बात का दबाव नहीं डाल सकते कि वह अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए फिलिस्तीन जैसे एक देश को हाईजैक न करे? 
आज हर देश और दुनिया का हर बड़ा नेता गर्व से सीना तानकर अपने देश की ज़रूरतों की आड़ लेकर बड़ी बेशर्मी से अन्याय और सिद्धांतहीनता की सरेआम वकालत कर रहा है। कोई भी बात होगी, दुनिया का छोटा से छोटा और बड़ा से बड़ा देश कह देता है, उसे तर्कों, सिद्धांतों और आदर्शों से कुछ नहीं लेना देना, उसके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण उसके अपने हित हैं। चूंकि हर किसी के लिए इस असहज करने वाली सिद्धांतहीनता के फायदे हैं, तो हर देश और हर नेता इसे सही ठहराने पर तुला हुआ है। जिस तरह से इज़रायल और हमास की जंग के बीच 5,400 से भी ज्यादा मासूम बच्चों की अब तक हत्या हो चुकी है, उसे अगर गहराई पर जाकर देखें तो पूरी दुनिया एक तरफ और मासूम बच्चे दूसरी तरफ वाली स्थिति बन गई है। दुनिया का हर देश पूरे डेढ़ महीने से तमाशा देख रहा है। राजनेता ही नहीं दूसरे क्षेत्रों के बड़े लोगों ने कोई ऐसा सामूहिक प्रयास या विरोध प्रदर्शन नहीं किया, जिससे यह ध्वनित होता कि वयस्क पीढ़ी को अपने ही दौर के मासूमों के कत्लेआम ने परेशान किया है। 
लेखकों, पत्रकारों, वैज्ञानिकों, समाज वैज्ञानिकों या कलाकारों में से किसी भी समुदाय ने वैश्विक स्तर पर मासूमों की हत्या के विरूद्ध कोई प्रभावशाली विरोध नहीं किया है। पूरी दुनिया के वयस्कों की इस क्रूरता और संवेदनहीनता ने बच्चों की हत्या की है। इसलिए दशकों बाद जब इस क्रूर जंग में मासूमों की हत्याओं का जिक्र आयेगा, तो उसकी जिम्मेदारी सिर्फ हमास और इज़रायल पर ही नहीं होगी, पूरी दुनिया कटघरे में होगी, पूरी दुनिया को इसके लिए शर्मसार होना पड़ेगा।          
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर