हिन्दी पट्टी में कांग्रेस की पराजय के मायने

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था। खासकर हिंदी पट्टी के तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों पर देशभर की आंखें टिकी हुई थीं। इन तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को पछाड़ा है। वास्तव में कांग्रेस को इस बात का भरोसा था कि वो छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार बरकरार रखेगी और मध्य प्रदेश को भाजपा से छीन लेगी। राजस्थान को लेकर उसकी राय यह थी कि यहां कांटे की टक्कर होगी और अशोक गहलोत अपनी सरकार बचा पाने में सफल रहेंगे। लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों के सारे अनुमान धरे के धरे रह गए और भाजपा ने मध्य प्रदेश में ऐतिहासिक जीत दर्ज की। वहीं उसने कांग्रेस से राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे दो अहम राज्य छीन लिए। भाजपा राजस्थान और मध्य प्रदेश को लेकर आश्वस्त थी, छत्तीसगढ़ तो बोनस की तरह उसकी झोली में आ गया है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा की 519 और लोकसभा की 65 सीटें आती हैं। हिंदी पट्टी के राज्यों जम्मू कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और केंद्र शासित चंडीगढ़ एवं लेह लद्दाख में कुल 245 लोकसभा की सीटें आती हैं। वर्तमान में कांग्रेस के पास हिंदी पट्टी में मात्र 14 लोकसभा सांसद हैं। वर्तमान लोकसभा में कांग्रेस के कुल 51 सांसद हैं। हिंदी पट्टी के एकमात्र राज्य हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। हिंदी पट्टी के राज्य केंद्र में किसकी सरकार बनेगी ये तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ताजा चुनाव नतीजों से पार्टी की लोकसभा चुनाव तैयारियों को बड़ा झटका लगना तय है।
अगर हिन्दी पट्टी के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो यहां कांग्रेस की हालत किसी से छिपी नहीं है। साल 2022 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का अब तक सबसे खराब प्रदर्शन रहा था। कांग्रेस को दो सीटों पर जीत हासिल हुई। इस चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी कई प्रधानमंत्री देने वाले राज्य में अब निराशाजनक प्रदर्शन के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके लड़ा था। और उसे 7 सीटों पर जीत मिली थी।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था, ऐसे में कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिए हर पैंतरे का प्रयोग किया। बावजूद इसके पार्टी हिंदी पट्टी में बुरी तरह हार गई। खासकर मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने वर्ष 2003 से 2018 तक 15 साल शासन किया था। उसके बाद 2018 में कांग्रेस की सत्ता स्थापित हुई लेकिन प्रदेश की जनता ने पांच साल में ही उसे सत्ता से बेदखल कर दिया। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में शराबंदी का वायदा किया था। लेकिन पांच साल में उसने यह वायदा पूरा नहीं किया। उलटा बघेल सरकार पर शराब घोटाले के आरोप लगे। सीमेंट घोटाला और महादेव बैटिंग एप्प के आरोपों में भी बघेल सरकार घिरती दिखाई दी। वहीं छत्तीसगढ़ को लेकर भाजपा को भी कोई ज्यादा उम्मीद नहीं थी, लेकिन प्रदेश की जनता ने सारे समीकरणों और अनुमानों को धता बताते हुए समझदारी दिखाई और सारे विश्लेषणों को फेल करते हुए भाजपा के हक में अपना फैसला सुनाकर सबको चौंका दिया।
ताजा चुनाव नतीजों में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का एक साथ हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में हार से उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा। राहत की बात यह है कि दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बन रही है। तीन अहम राज्यों में हार से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व पर भी सवालिया निशान लग गया है। विधानसभा चुनाव में हार से देशभर में ये संदेश जाएगा कि राहुल और प्रियंका दोनों मिलकर भी पार्टी को खड़ा करने की क्षमता नहीं रखते हैं।
वहीं विधानसभा चुनाव के दौरान नये नवेले इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर जो तीखी बयानबाजी और खींचतान सामने आई थी, उससे अब इंडिया गठबंधन के भविष्य पर भी बड़ा प्रश्न चिन्ह लग गया है। इंडिया गठबंधन की कुल जमा चार बैठकों के बाद सारी गतिविधियां ठप हो गई। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आगामी 6 दिसम्बर को इंडिया गठबंधन की बैठक बुलाई है। जिस पर इंडिया गठबंधन के सहयोगियों की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। जानकारों के मुताबिक इस पराजय के बाद इंडिया गठबंधन में भी कांग्रेस की ताकत और नेतृत्व कमजोर होगा। हो सकता है इंडिया गठबंधन नये रंग रूप में नज़र आए या फिर तीसरा मोर्चा भी बन सकता है।