लहालहोटो से गुलजार है सोशल मीडिया

भगवान जाने सोशल मीडिया प्लेटफार्म बनाने वालों ने क्या सोचकर सोशल मीडिया बनाया था। ज़रूर जीवन से उकताये हुए प्राणी होंगे। जिनकी दुनिया बेरंग और स्वाद में कड़वे करेले की तरह होगी। क्योंकि साधारण मनुष्यों के वश की बात नहीं है कि इतनी तिकड़म वाली चीज़ बना सके। ऐसी चीज़ बनाने वाले व्यक्ति बड़े ही जटिल बुद्धि प्राणी होते हैं। साधारण लोगों का क्या है वह बेचारे तो दाल रोटी से ऊपर कुछ सोच ही नहीं पाते हैं। ज़रूर सोशल मीडिया बनाने वाले ने अपनी दुनिया में तड़का लगाने के लिए इसे बनाया होगा। और तड़का भी ऐसा लगाया कि भर-भर कर इसमें उसने मसाले डालें।
और बनाया तो बनाया इसमें ऐसी-ऐसी सुविधा दी कि देशभर के अधिकांश ठरकदासो को अपनी तरफ चुंबक की तरह खींचकर एक जगह इकट्ठा भी कर दिया। सोशल मीडिया के महान निर्माता ने अपने जीवन का एक बड़ा ही नेक काम कर डाला ठरकदासो के हित में.. इनकी बेरंग, बेनुर दुनिया को रंगीन बना दिया। सच मान लीजिए आज यह अगर सोशल मीडिया नहीं होता तो यह दो-चार बच्चों के पिता भी अपने प्यार को तरसती आत्मा की तृप्ति के लिए कहा पर घूमते और भटकते... और इनको कहां मोक्ष प्राप्त होता। कहां अपनी दुखद गाथा व्यथा सुनाते। सोशल मीडिया के अलावा ऐसा तो कोई प्लेनेट भी नहीं है। और उनकी अतृप्त आत्माएं ऐसे ही तड़पती और भटकती रह जाती।
रियल दुनिया में तो अपनी हरकतों की वजह से यह ठरकदास दो-चार बार लात जूते खा चुके होते हैं। पर अभी तक सोशल मीडिया वालों ने अपने प्लेटफार्म पर ऐसी कोई सुविधा नहीं दी है कि ऐसे कर्मकांड करने पर उन्हें लात जूते से सम्मानित किया जाए। जबकि उन्हें देना चाहिए था। सबसे ज्यादा इस प्लेटफार्म पर ही ऐसे ऑप्शन की ज़रूरत थी। 
हकीकत में सोशल मीडिया के निर्माता को एक सर्वे करना चाहिए और उनको महिलाओं से पूछना चाहिए... कि यह लात जूते देने वाला ऑप्शन ज़रूरी है कि नहीं है? यकीन मानिए 100 में से 100 महिलाएं इसको ज़रूरी मानेंगी।
जूते तो इंसान को कहीं भी खाना चाहिए... बस उसमें जूते खाने वाले गुण होने चाहिए। तो बस यहां भी खाते। और उनके मीठे जाल में फंसने वाली मूर्ख बालाएं और महिलाएं जिनको घरों में पति और भाई तू तड़ाक से बात करने वाले, लताड़ने और डांट लगा देने वाले रहते हैं। उन बालाओं और महिलाओं को यह प्लेटफॉर्म नहीं होते तो इनको जी-जी कहकर कैसे जाल में फंसाया जाता। कहा अपने परिवार वालो की करेले जैसी डांट और कहा इनकी जलेबी के जैसे रसभरी बात ...फंसने से कौन बचा सकता है। एक तो यह ठरकदास अपने अकाउंट के वॉल पर ऐसी-ऐसी साधु महात्माओं वाली पोस्ट शेयर करते हैं कि उनको महिला वर्ग साधु महात्मा ही मान लेती हैं। उसके बाद वह अपनी महिला मित्र के पोस्ट पर तब तक लहालहोट होते रहते हैं जब तक की इनको अपना तीर्थ स्थल यानी इनबॉक्स में एंट्री नहीं मिल जाती है। इनबॉक्स में पहुंचते ही इनकी साधना और यात्रा पूरी हो जाती है और अगले यात्रा की तैयारी करने लगते हैं। जीवन तो बस चलने का नाम है यह लोग इस अवधारणा पर पूरी तरह सहमत होते हैं।
इन लहालहोटो की सबसे बड़ी खूबी होती है यह अपने आप को सबसे बड़े वाले देशभक्त भी बताते हैं। उनके अकाउंट के पोस्ट ऐसा ही कहते हैं। उनके अकाउंट को खंगाल लीजिए तो पता चलेगा देश तो बस इनसे ही सुरक्षित है। बस इनको बॉर्डर पर खड़ा कर दीजिए और उनके हाथ में बंदूक दे दीजिए। देश के दुश्मनों का तो सत्यानाश कर देंगे ऐसे जोश खरोश वाले पोस्ट यह प्रतिदिन बिना नागा किए डालते हैं। त्यौहार तो उनके लिए वरदान बनकर आते हैं। सबसे बड़ी समस्या होती है। यह इनबॉक्स तक पहली बार पहुंचे कैसे जिसके लिए त्योहारी  सीजन सबसे मुफीद होता है। शुभकामनाएं देने के बहाने आवागमन का मार्ग खुल जाता है। आगे की जमीन कैसे तैयार करनी है यह बखूबी जानते हैं और कर लेते हैं। लेकिन एक काम सोशल मीडिया बनाने वालों ने गलत कर दिया इसमें में भले ही लात जूते चलाने का ऑप्शन नहीं है। लेकिन ब्लॉक रुपी जूते मारने का ऑप्शन बड़ा मशहूर है। और खूब मारा भी जाता है।
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