पॉल लिंच को मिला बुकर अवार्ड

उपन्यास ‘प्रोफेट सोंग’ किसी हद तक समयरहित का वायदा करता है और वास्तव में ऐसे समय आया है, जब जिस डर को वह संबोधित करता है, वह हमारी रोजमर्रा की खबरों में है- सामाजिक सौहार्द टूटने की कगार पर है, जिसे हम सामान्य जीवन समझते हैं, वह अस्तित्व के निरंतर संघर्ष में बदलने वाला है, जो प्राकृतिक स्थिति में नहीं होगा बल्कि इससे भी बदतर हालात में होगा यानी परस्पर विरोधी विचारधाराओं की फाल्ट लाइन पर। इस उपन्यास के लिए आयरिश लेखक पॉल लिंच को 2023 के बुकर प्राइज से सम्मानित किया गया है।
कहानी समकालीन डबलिन के प्रारूप में सेट की गई है। संक्षेप में कोरोना महामारी का भी संदर्भ दिया गया है। नायक की किशोर लड़की मौली कोरोना वायरस को रोकने के लिए ‘दरवाज़ों के हैंडल, टैप्स व टॉयलेट फ्लशर्स’ को साफ कर रही है। लेकिन इसके बाद महामारी का कोई ज़िक्र नहीं होता है। इस संदर्भ का उद्देश्य (प्रलय के लिए) मूड सेट करना है और एक ऐसा मंच जहां से पिछले कुछ वर्षों का ट्रॉमा आसानी से कम परिचित आपदा की ओर मुड़ जाये। एलिश, मौली की मां, दरवाज़े पर हुई दस्तक सुनती है। बाहर दो पुलिसकर्मी हैं, जो उसके पति लैरी से बात करना चाहते हैं। ‘चिंता की कोई बात नहीं,’ उनमें से एक कहता है। लेकिन एलिश को चिंता होने लगती है और वह अपने पति के घर लौटने पर इस सिलसिले में सवाल भी करती है। एक छोटा सा बादल उनके क्षितिज पर प्रकट हो गया है। 
एलिश बायोलॉजिस्ट है, जो एक बायोटेक कम्पनी के लिए काम करती है। लैरी टीचर्स यूनियन का डिप्टी जनरल सेकोरेटरी है। उनके चार बच्चे हैं और वे मध्यवर्ग की आरामदायक ज़िंदगी बसर कर रहे हैं, जिसमें जानी पहचानी सभी एंग्जायटी मौजूद हैं- किशोरों से संघर्ष, बूढ़े होते पैरेंट्स से झगड़े। लेकिन उपन्यास में आरंभ से ही दबी हुई तीव्रता है। ‘नेशनल अलायंस पार्टी ने हाल ही में सत्ता पर कब्ज़ा किया है और इमरजेंसी पावर्स एक्ट पारित किया है। प्रमुख ट्रेड यूनियनिस्ट होने के नाते लैरी सरकार की नज़रों में है। एक बड़े विरोध प्रदर्शन की योजना बनायी गई है। एलिश नहीं चाहती कि वह इसमें शामिल हो, लेकिन अनुमति दे ही देती है। आखिरकार वह एक मुक्त समाज में रहते हैं, जिसमें संविधान है और कानून का शासन भी। इसलिए वह प्रदर्शन में शामिल हो जाता है। इसके बाद हंगामा शुरू हो जाता है।
यहां तक हम लाने के लिए लिंच ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। ‘इमरजेंसी’ की कभी व्याख्या नहीं की गई। शायद यह पूर्णत: नेशनल अलायंस पार्टी का अविष्कार है। इसका अर्थ है कि राजनीतिक संकट एक प्रकार का ब्लेंक है, उसका कोई इतिहास नहीं है। परस्पर विरोधी गुट हैं- राष्ट्रवादी बनाम हर कोई (जिन्हें आख़िरकार विद्रोही कहा जाता है)। लेकिन हमें यह कभी मालूम नहीं होता है कि उनमें बहस किस बात को लेकर है, सिवाय कानून के शासन के। यह कहानी आयरलैंड में सेट की गई है, जिसमें वर्गीय संघर्ष का लम्बा इतिहास है, जो इस अनुपस्थिति को भी गहराई प्रदान करता है। कभी कभार हमें चर्च की घंटियां सुनायी देती हैं, लेकिन धार्मिक टकराव का कोई असल ज़िक्र नहीं है या यूनियनवादियों व यूनियन-विरोधियों का भी। लेकिन उत्तर में एक सीमा है जो इमीग्रेशन का एक संभावित आउटलेट बन जाती है। 
लिंच जानबूझकर अस्पष्ट रहते हैं ताकि कहानी आम प्रतीक के रूप में पेश की जा सके, लेकिन प्रतीक की भी कीमत होती है। बिना इमरजेंसी के, बिना किसी प्रकार के मौजूदा इतिहास के, यह समझना मुश्किल हो जाता है कि राष्ट्रवादी किस चीज़ के लिए लड़ रहे हैं और इसलिए वह वैचारिक विरोधी की बजाय पागल विध्वंसक बल बन जाते हैं। जब एलिश के एक सहकर्मी, जो नेशनल अलायंस पार्टी का समर्थक है, को राजनीतिक कारणों से पदोन्नति दे दी जाती है, तो वह उसकी आंखों में देखती है ‘और उसे चेहरे में खालीपन दिखायी देता है’। दूसरे शब्दों में ऐसे लोगों से हमदर्दी करना कठिन है। लिंच हमसे कह भी नहीं रहे हैं कि हम ऐसे लोगों से हमदर्दी करें। लेकिन बिना कुछ नैतिक स्पष्टता के यह डर है कि इस प्रकार का उपन्यास उपदेश बन सकता है। हम जानते हैं कि बुरे कौन हैं और वह हम नहीं हैं। इस समाज में जो कुछ गलत हुआ है, वह हमारी वजह से नहीं हुआ है। बुरा डर यह है कि हम कुछ ऐसी ही चीज़ के शिकार हो सकते हैं- ‘अपनी पूरी ज़िंदगी तुम सोते रहे, हम सब सो रहे हैं और अब महान जागृति आरंभ हुई है।’
लिंच का अन्य बड़ा निर्णय शैली से संबंधित है। उपन्यास में सेक्शन व अध्याय हैं, लेकिन पैराग्राफ नहीं। डायलाग पर कोटेशन मार्क्स नहीं हैं, अक्सर उनमें व्याख्या को ठूंस दिया जाता है और अचानक वह कहीं और कूद जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि वार्ता को समझने के लिए जासूस की मुद्रा में आना पड़ता है। लेकिन यह संकेत भी है कि कही गई बात व सोची गई बात में कोई विशेष अंतर नहीं है- सोचना कहने जितना खराब है और कहना सोचने जितना बेकार। बहरहाल, अनेक पंक्तियां व पैसेज बहुत सुंदर व प्रभावी हैं- ‘उसके शरीर का वज़न उसके सिर में समा गया है इसलिए वह दीवार से टिक गई है।’
‘प्रोफेट सोंग’ लिंच का पांचवां उपन्यास है। इस पर उन्हें बुकर प्राइज देने का निर्णय सर्वसम्मति से नहीं था। लगभग छह घंटों तक कई चक्र की वोटिंग के बाद फैसला हुआ। लगातार दूसरा वर्ष है, जब राजनीतिक टकराव से संबंधित उपन्यास को यह पुरस्कार दिया गया है। 2022 में शेहान करुणातिलक को ‘सेविन मूंस ऑफ माली अल्मीडा’ के लिए बुकर दिया गया था, जिसे श्रीलंका के गृहयुद्ध में सेट किया गया है। लिंच का आयरलैंड युद्ध-पीड़ित देशों की वास्तविकता को प्रतिविम्बित करता है, जहां शरणार्थियों को समुद्र में शरण लेनी पड़ती है भूमि पर दमन से बचने के लिए। ‘प्रोफेट सोंग’ में आपको फिलिस्तीन, यूक्रेन व सीरिया की हिंसा का शोर सुनायी देगा और उन सबके अनुभव भी मिलेंगे जिन्हें युद्ध-पीड़ित देशों से अपनी जान बचाकर भागना पड़ा है। यह एक डरावनी, लेकिन दु:ख भरी सच्ची कहानी है, जो हम सबके साथ पहले भी हुई थी, अब भी हो रही है और आगे भी होती रहेगी।
लिंच 1977 में लिमरिक में पैदा हुए, काउंटी डोनेगल में परवरिश पायी और अब डबलिन में रहते हैं। उनके अन्य उपन्यास हैं ‘बियांड द सी’, ‘ग्रेस’, ‘द ब्लैक स्नो’ और ‘रेड स्काई इन मोर्निंग’। यह पुरस्कार जीतने वाले वह पांचवें आयरिश लेखक हैं। उनसे पहले आईरिस मरडॉक, जॉन बनविले, रूडी डोयल और एना बर्न्स (2018) यह पुरस्कार जीत चुके हैं। 
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