विश्व आबादी में होती बेतहाशा वृद्धि चिन्ताजनक

विश्व की निरन्तर बढ़ती आबादी ने पूरी दुनिया को एक बार फिर चिंतातुर किया है। अमरीका के जनगणना ब्यूरो की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार नव-वर्ष 2024 में दुनिया की आबादी आठ अरब से अधिक हो जाने की उम्मीद है। चालू वर्ष 2023 के जनवरी मास में नव-वर्ष के दिन विश्व की कुल जनसंख्या 7 अरब 94 करोड़ से अधिक थी। इस वर्ष 31 दिसम्बर तक इन रिपोर्ट के अनुसार विश्व में कुल 7 करोड़ 50 लाख से अधिक लोगों की इस आंकड़े में वृद्धि होने का अनुमान है। नि:संदेह इस प्रकार विश्व जनसंख्या का यह आंकड़ा आठ अरब के शिखर को छू लेगा। नि:संदेह पूरे विश्व में आबादी की यह बढ़ती रफ्तार बेहद चिन्ताजनक है। कुछ वर्ष पूर्व सन 2017 में यह आंकड़ा 7.50 अरब पर था। इसका अभिप्राय यह हुआ कि जिस गति से विगत कुछ समय से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, उसके अनुपात से दुनिया में हर वर्ष आठ करोड़ से अधिक लोग बढ़ जाते हैं। इस आबादी का एक बड़ा हिस्सा अर्थात 18.5 प्रतिशत चीन में बसता था जबकि दूसरे स्थान पर भारत आता है जहां विश्व आबादी का 17.9 प्रतिशत भाग रहता है, किन्तु इसी वर्ष भारत ने जनसंख्या और इस में होने वाली वृद्धि के अनुपात से चीन को पछाड़ दिया है। पिछले दिनों विश्व जनसंख्या दिवस पर जारी आंकड़ों के अनुसार अब भारत में जहां विश्व के कुल 17.7 प्रतिशत लोग निवास करते हैं, वहीं चीन में यह प्रतिशत आंकड़ा 18.5 प्रतिशत से कम होकर 17.6 प्रतिशत रह गया है जबकि भारत 17.7 प्रतिशत से चीन को पछाड़ कर पहले स्थान पर आ गया है।
आबादी के लिहाज़ से चीन को पछाड़ देने वाला आंकड़ा नि:संदेह भारत के लिए कोई शुभ संकेत नहीं। पूरी दुनिया के लिए भी आबादी का इस प्रकार अनियंत्रित तरीके से बढ़ते जाना गम्भीर चिन्ता का विषय है। पहले ही विश्व धरा पर पूरी आबादी के भरण-पोषण एवं जीवन-यापन हेतु उपलब्ध स्रोत पर्याप्त नहीं हैं। यहां तक कि प्राकृतिक रूप से स्वत: उपजने वाले स्रोतों में भी निरन्तर कमी होती जा रही है। विकास कार्यों के दृष्टिगत धरती पर से वन और वृक्ष बड़ी तेज़ी से कम हो रहे हैं। पहाड़ों के खनन से पर्यावरण प्रभावित होता जा रहा है। नदियों में वैध-अवैध ढंग से रेत की खुदाई से एक ओर जहां नदियों के मार्गों में परिवर्तन हुआ है, वहीं समुद्रों के पानी का स्तर बढ़ा है। ऊंचे पहाड़ों पर परिवर्तित होते वातावरण के कारण हिम-ग्लेशियरों के पिघलने की गति में भी वृद्धि हुई है। पर्वत अंचलों में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने और पर्यावरणीय गर्मी से इनके पिघलने की गति बढ़ी है। कृषि-योग्य भूमि में निरन्तर कमी होते जाने से कृषि उत्पादन बढ़ाने हेतु किये जाते रासायनिक खादों के अधिकाधिक उपयोग से, कृषि उत्पादन में तो बेशक वृद्धि हुई है, किन्तु इससे मानव-रोगों में भारी विस्तार हुआ है। 
हम समझते हैं इस सबके लिए विश्व की यह अनियंत्रित रूप से बढ़ती आबादी ही उत्तरदायी है। इस कारण एक ओर जहां वृद्ध जनसंख्या में इज़ाफा हुआ है, वहीं बेरोज़गारी और ़गरीबी की दर भी बहुत तेज़ी से बढ़ी है। भारत के इस मामले में अधिक प्रभावित होने की आशंका है। इसकी आबादी बेशक चीन से बढ़ कर एक अरब 42 करोड़ से भीअधिक हो गई है, लेकिन इसका क्षेत्रफल विश्व धरा का केवल 2 प्रतिशत है जबकि चीन का इससे 4.3 गुणा और रूस का छह गुणा अधिक है। अमरीका, कनाडा और आस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल भी भारत से कई गुणा है। वित्तीय धरातल पर भी चीन भारत से कहीं आगे है। नि:संदेह भारत आज विश्व की तेज़ी से बढ़ती हुई अग्रणी व्यवस्था है, किन्तु यदि हमें शेष विश्व के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ना है, तो बेशक हमें बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाना होगा। इसके लिए नि:संदेह एक संतुलित नीति अपनाना बहुत ज़रूरी है। हम समझते हैं कि सम्पूर्ण विश्व देश को यदि अपनी इस धरती को आशंकित किसी प्रलय अथवा विनाश से बचाना है, तो आबादी में वृद्धि की रफ्तार पर अंकुश लगाना होगा। अमरीका और जर्मनी ने बेशक एक संतुलित दृष्टिकोण पेश किया है। विकसित और विकासशील देशों पर जहां अपनी आबादी पर नियंत्रण का दायित्व है, वहीं गरीब और पिछड़े देशों में भी इस बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाने की ज़िम्मेदारी उन पर ही आयद होती है। विश्व के सभी देश इस गम्भीर समस्या का जितना शीघ्र निदान ढूंढेंगे, उतना ही पूरे विश्व और पूरी मानवता के हित में होगा।