झीलों का नगर है भोपाल

 

भारत के हृदय स्थल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल कई मायनों में सबसे अलग पहचान रखती है। ताल तलैयों और झीलों के इस खूबसूरत शहर की हरियाली मानों प्रकृति ने उपहार के रूप में प्रदान की हो। 11वीं शताब्दी में राजा भोज द्वारा बनाई गई इस नगरी ने कई ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक उतार चढ़ाव लगातार देखे हैं।
पुराने भोपाल की गलियों की भीड़भाड़ और आपाधापी जहां भोपाल के एक परंपरागत शहर होने का आभास कराती है वहीं नए भोपाल की व्यवस्थित नगर योजना देख  महानगरीय अनुभव होता है। सड़कों पर कारों की भरमार, बाईक्स के रेले, मार्किट के आसपास दिल्ली जैसी अव्यवस्थित पार्किंग, वाहन चलाती लड़कियां देखकर कहना कठिन था कि यह देश की राजधानी दिल्ली से किस प्रकार भिन्न हैं।  
कभी जर्दा, पर्दा और गर्दा के लिए मशहूर रहे भोपाल के ठाट अभी भी नवाबी ही हैं। शोले फिल्म में एक किरदार सूरमा भोपाली ने देश भर में भोपाली शब्द को लोगों की जुबान पर ला दिया था। 40 लाख से अधिक की आबादी वाले भोपाल और उसके आसपास  ऐतिहासिक महत्त्व के पर्यटन स्थलों की भरमार है। आवागमन के साधन राजधानी होने की वजह से यहां सहज सुलभ हैं। 
मेरी उत्सुकता सबसे पहले उस स्थल के दर्शनों की थी जहां कभी गुरु नानक देव जी पधारे थे। ईदगाह हिल्स पर बना ‘नानक टेकरी’ गुरुद्वारा इतिहास का मूक गवाह है। कहा जाता है कि कुष्ठ रोग से पीड़ित को गुरु नानक देव जी ने कष्टों से मुक्ति प्रदान की थी। यहां एक शिला पर नानक जी के पद चिन्ह आज भी अंकित हैं। गुरुद्वारे में स्थित संग्रहालय में ऐतिहासिक महत्त्व की अनेक वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। लगभग एक घंटा वहां बिताकर हमने गुरु का प्रसाद ग्रहण किया और अपने अगले पड़ाव की ओर प्रस्थान किया।
उसके पश्चात हम हमीदिया रोड पर स्थित विशाल गुरूद्वारा नानकसर पहुंचे। रविवार होने के कारण यहां काफी चहल-पहल थी। गुरुद्वारा साहिब के प्रधान ज्ञानी दलीप सिंह ने अपने कार्यालय में हमारा स्वागत किया। उन्होंने बताया कि प्रत्येक रविवार को गुरुमुखी सिखाने के लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन होता है। इसी बीच तेज़ बारिश शुरू हो गई इसलिए हमें वहीं रूकना पड़ा। दोपहर को हमें गुरु का लंगर नानकसर गुरुद्वारा में ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
सायं 3 बजे गोविन्द नगर औद्योगिक क्षेत्रों के श्री विश्वकर्मा मंदिर में एक बैठक रखी गई जहां हमारा फूलमालाओं से स्वागत किया गया। इस मंदिर के प्रधान  सरदार अजीत सिंह हिन्दू-सिख एकता की मिसाल हैं। बैठक में गुरुद्वारा नानकसर के प्रधान सहित बड़ी संख्या में केशधारी बंधु भी उपस्थित थे। हमें यह भी बताया गया कि इस मंदिर के निर्माण में भी केशधारी बंधुओं का भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ था। मित्रों के आग्रह पर हमने कुछ कविताएं सुनाई लेकिन शेष भोपाल के अवलोकन और अगले कार्यक्रम में पहुंचने की जल्दी के कारण हमें वहां से निकलना पड़ा। 
भोपाल का मरीन ड्राइव कहे जाने वाले शान-ए-भोपाल में शाम से ही पर्यटकों का जमावड़ा शुरू हो जाता है। बड़ी और छोटी झील को अलग करते ओवर ब्रिज पर पैदल घूमने का अपना अलग आनंद है। झील में नौका विहार का मजा भी लिया जा सकता है। पर्यटन विकास निगम द्वारा इस जगह को काफी विकसित किया जा चुका है जहां संगीत के आनंद के अलावा सभी तरह की नावें उपलब्ध हैं। यह स्थल भोपाल भ्रमण को यादगार बनाने के लिए काफी हैं। मछली के आकार का बना मछलीघर छोटी झील के पास स्थित है। इसमें प्राय: सभी प्रजातियों की रंगबिरंगी मछलियां हैं। यहां की बड़ी झील जहां समुद्र का नजारा देती है वहीं झील के पीछे स्थित 444 हेक्टेयर में फैले वनविहार में हर तरह के पशु पक्षी विचरते हैं। इस सफारी पार्क में पशुपक्षियों का स्वच्छंद विचरण देखते ही बनता है। एशिया की सबसे बड़ी ‘ताज जल मस्जिद’ का निर्माण शाहजहां बेगम (1868-1901) ने शुरू करवाया था। इस बेगम की मौत के बाद अधूरी बनी इस मस्जिद का निर्माण कार्य 1911 में फिर शुरू हुआ था। मस्जिद का मुख्य कक्ष तो भव्य है ही मगर मेहराबदार छत और चमचमाता संगमरमर का फर्श भी कम आकर्षक नहीं। हर साल यहां इज्तिमा का मेला लगता है जब दुनिया भर के मुस्लिम धर्मावलंबी नमाज पढ़ने आते हैं। भोपाल की मोती मस्जिद और जामा मस्जिद का शिल्प दिल्ली की जामा मस्जिद के नमूने पर आधारित है। इसे 1860 में बेगम सिकंदरजहां ने बनवाया था।
कला और रंगमंच के लिए भोपाल का भारत भवन दुनिया भर में मशहूर हो चुका है। इसे कला और साहित्य का जीता-जागता दस्तावेज कहा जा सकता है। भारत भवन के कविता पुस्तकालय में कविताओं की लगभग हजारों पुस्तकें संग्रहित हैं जो प्राय: सभी भाषाओं में हैं। शहर के बाहर खूबसूरत पहाड़ी रास्ते से विशाल भूभाग में फैले अपनी तरह के  अनूठे  राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में पहुंचा जा सकता है जिसमें 32 पारंपरिक एवं प्रागैतिहासिक शैलाश्रय हैं। ताम्र कालीन और पाषाणयुग के संधिकाल के औजार व उपकरणों से सजे इस राजकीय संग्रहालय में पीतल, हाथीदांत व चीनी मिट्टी से निर्मित वस्तुओं का संग्रह है। सिक्कों की गैलरी भी दर्शनीय व ज्ञानवर्धक है। गांधी भवन में गांधीजी के जीवन पर आधारित चित्र संग्रहालय के अलावा उनके साहित्य के विशाल भंडार के रूप में पुस्तकालय भी है।
 शहर के मध्य भाग में स्थित शौकत महल मुगल शैली की नायाब इमारत है। गौर से देखें तो इस भवन में कई वास्तु शैलियों का मिश्रण नज़र आता है। मूलत: यह एक फ्रेंच कलाकार का आकलन है। शौकत महल के नजदीक ही सरद मंजिल है जहां शासक आम जनता से मिला करते थे। पुराने भोपाल के बीचोबीच बसे चौक बाज़ार से दस्तकारी की नायाब चीजें खरीदी जा सकती हैं। इस क्षेत्र में ऐतिहासिक महत्त्व की कई इमारतें हैं जो अब जर्जर हालत में हैं। भोपाल से 28 किलोमीटर की दूरी पर बना भोजपुर का मंदिर पूरब का सोमनाथ कहा जाता है जिसे राजा भोज ने 10वीं शताब्दी में बनवाया था। शानदार वास्तुकला के उदाहरण इस शिवमंदिर का बाहरी प्रांगण 66 फुट तक फैला है। मूलत: वर्गाकार बना यह मंदिर नीचे से अष्टभुजाकार है। कारीगरी के उत्कृष्ट कार्य इस मंदिर में दिखते हैं। करीने से तराशा गया यह मंदिर ऐतिहासिक महत्त्व का है जो कभी पूरा नहीं बन पाया। प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है जिसमें भाग लेने दूर-दूर से लोग आते हैं। 
भोपाल से 40 किलोमीटर दूर स्थित भीमबैठका को अब विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। यहां के प्रदर्शित 700 शैलाश्रय नव पाषाण युग के हैं जो प्रतीक चित्रों के माध्यम से तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था को उकेरते नज़र आते हैं। प्रागैतिहासिक गुफाओं के भित्तिचित्र मानव की सामान्य अभिव्यक्ति व जानकारियों की गवाही ही देते हैं। चित्रंकन के लिए यहां सफेद व लाल रंग का प्रयोग ज्यादा किया गया है। इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए स्थल महत्त्वपूर्ण है।
चारों तरफ हरियाली, सड़क के बीचाें बीच खूबसूरत रंग-बिरंगे फूलों से सजी विभाजक पटरी, हर चौराहे पर किसी न किसी महापुरूष की विशाल मूर्ति, महापुरूषों और क्रांतिकारियों के नाम पर नगर, यह सब भोपाल को देश के सभी नगरों-महानगरों से अलग पहचान प्रदान करता है। अपनी स्मृतियों में भोपाल की तमाम खूबियों और वहां के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य को संजोये रात्रि में हबीबगंज भोपाल से दिल्ली के लिए रवाना होने वाली गाड़ी पर सवार होकर अगली सुबह गाड़ी दिल्ली पहुँचे। धुंध के कारण गाड़ी लेट थी लेकिन बाहर मुनीष हमारा इंतजार कर रहा था। घर पहुंचकर भी भोजपाल उर्फ भोपाल  की यादों का हसीन सफर स्मृतियों में लगातार जारी है। (उर्वशी)