गणतंत्र का अमृत काल, देश और हम!

 

आज़ादी के अमृत काल के बाद अब हम गणतंत्र के भी अमृत काल में प्रवेश कर रहे हैं। 2024 का गणतंत्र दिवस आजाद भारत का 75वां गणतंत्र दिवस है, यानी अब हम कह सकते हैं कि स्वतंत्रता के साथ-साथ अब हम गणतांत्रिक शासन प्रणाली में भी अमृत घट भरने जा रहे हैं। 
सब का साथ, सब का विश्वास
इसमें दो राय नहीं कि बीते कुछ वर्षों में भारत की प्रतिष्ठा अंतर्राष्ट्रीय जगत में बहुत तेज़ी के साथ न केवल बढ़ी है अपितु आज वह हर दृष्टि से विश्व के पहले पांच ताकतवर देशों में शुमार है। अब राजनीतिक लक्ष्य साधने की दृष्टि से विपक्ष भले ही कुछ भी कहे लेकिन इसमें शक नहीं है कि आज भारत की आवाज़ को विश्व के हर मंच पर महत्व एवं सम्मान मिल रहा है। यद्यपि यदि कोई यह कहता है कि यह सम्मान केवल किसी एक या दो सरकारों अथवा दलों या नेताओं की वजह से हुआ है तो यह भी कहना सही नहीं होगा क्योंकि इस पायदान पर पहुंचने के पीछे देश के आम व्यक्ति से लेकर खास व्यक्तियों तक के लहू पसीने का संघर्ष एवं श्रम तथा समर्पण काम कर रहा है।
2024 है बहुत खास : सन् 2024 देश के लिए एक बहुत खास वर्ष सिद्ध होने जा रहा है। इस वर्ष जहां देश एक बार फिर से लोकसभा चुनाव में होगा, वहीं गणतंत्र दिवस भी अपना अमृत वर्ष देख रहा होगा। यदि चुनाव एवं गणतंत्र को आपस में जोड़कर देखा जाए तो दोनों ही एक-दूसरे के पूरक एवं पर्याय भी कहे जा सकते हैं। ज़रा याद कीजिए, जिस संक्रांति काल में भारत को स्वतंत्रता मिली थी, लगभग उसी समय पाकिस्तान एवं बर्मा तथा दूसरे कई देश भी आज़ाद हुए थे लेकिन आज इन देशों के मुकाबले भारत की हैसियत एवं उसका महत्व अलग ही नज़र आता है तो इसके पीछे शायद खुद को सिद्ध करने का एक जुनून भी था। 
हम सच्चे गणतांत्रिक : देशवासियों को याद होगा कि जब भारत को आजाद किए जाने की बातें हो रही थीं, तब ब्रिटेन ने कहा था कि भारतीय एक आजाद देश होने के काबिल नहीं हैं। यदि उन्हें स्वाधीन कर दिया गया तो बहुत जल्द ही वे आपस में सिरफुटौवल करके नष्ट हो जाएंगे। 1946 तथा 1948 के दंगों को देखकर लगा भी था कि शायद वे लोग गलत नहीं थे लेकिन इन दंगों के बाद कभी एक मुल्क रहे पाकिस्तान और भारत, दोनों ने अलग-अलग राहें पकड़ीं एक मज़हबी जुनून के साथ इस्लामिक स्टेट बनने के रास्ते पर चला तो दूसरे ने सच्चे मन से, सच्चा लोकतंत्र एवं सच्ची गणतांत्रिक पद्धति को अपनाया। बस, यहीं से फर्क आना शुरू हो गया और यदि यह फर्क आया तो इसका श्रेय तत्कालीन सरकारों एवं उनके प्रमुखों को देने में कोई बुराई नहीं है। 
आगे की सोच, प्रगति का पथ : राजनीति अपने तरीके से देखती और सोचती है और कदम बढ़ाती है लेकिन समय की मांग और जीवन की सच्चाई यह कहती है कि बार-बार पीछे पलट कर देखने वाले जीवन की रेस में पिछड़ जाते हैं। व्यक्ति हों या राष्ट्र, दोनों पर ही इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसीलिए हमने भूतकाल में क्या किया, कितना गर्व एवं गौरव हासिल किया या फिर हमसे क्या गलतियां हुईं, क्या पाप हुए, कितनी कमियां रहीं उन पर बहुत ज्यादा वक्त बर्बाद करने से बेहतर है, आगे के लिए सोचा जाए। जो आगे की सोच कर चलता है, वह निश्चित रूप से आगे जाता है। गणतंत्र के अमृतकाल वर्ष में भी देश को इसी नजरिए के साथ आगे बढ़ाना है। 
ज़रूरी है आत्म मूल्यांकन : यदि पिछले वर्ष पर एक नज़र डाली जाए तो बहुत सारी अच्छी एवं खराब बातें याद आ सकती हैं। अच्छी बातों में चंद्रयान मिशन, आदित्य मिशन, अर्थव्यवस्था की दृष्टि से पांचवें स्थान पर पहुंचना, कृषि में बंपर उत्पादन के साथ-साथ खेलों में वैश्विक प्रतियोगिताओं में लगातार निखरता हुआ प्रदर्शन हमें स्वर्णिम गणतंत्र का एहसास दिला सकते हैं लेकिन साथ ही साथ जिस प्रकार से अपराध बढ़ रहे हैं, खासतौर पर महिलाओं एवं बच्चों के प्रति जो अमानवीय दृष्टिकोण पिछले वर्ष देखने को मिला, वह हमारी सारी भौतिक प्रगति पर एक बड़ा प्रश्न-चिन्ह लगाने के लिए काफी है। आई क्यू यानी बौद्धिक उपलब्धि के प्रयोग से भौतिक उपलब्धियां तो अधिक प्राप्त की जा सकती हैं लेकिन यदि इसके साथ-साथ ई क्यू यानी इमोशनल कोशिएंट अर्थात भावात्मक संवेग को भी जोड़ लिया जाए तो फिर हम भौतिक के साथ-साथ आत्मिक एवं नैतिक स्तर पर भी बहुत आगे जा सकते हैं। देश को इन अमानुषिक कांडों से बहुत कुछ सीखना होगा और यदि गणतंत्र के अमृत वर्ष को सचमुच प्रगति का अमृत चाहिए तो हमें बुद्धि लब्धि के साथ-साथ भावात्मक संवेग को भी बचा कर रखना होगा। 
गणतंत्र के आदर्शों का पालन करें : चूंकि आने वाले संभवत: मार्च-अप्रैल के महीने लोकसभा चुनाव होंगे और चुनाव में वह सब होगा जो अब तक होता आया है। शायद उससे भी कहीं अधिक हो जाए। पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपना अपना वर्चस्व सिद्ध करने के लिए हर हथकंडा अपनाएंगे। हो सकता है, सही गलत, धर्म अधर्म, निरपेक्षता व पक्षपात सब सिद्धांत व मानक उठाकर एक तरफ रख दिए जाएं और ‘एवरी थिंग इज़ फेयर इन लव एंड वॉर’ के सिद्धांत के चलते येन केन प्रकारेण विजयश्री प्राप्त करने के प्रयास किए जाएं। हो सकता है, सरकार तीसरी बार वापस लौटे। संभव यह भी है कि किसी को भी बहुमत न मिले या फिर  प्रतिपक्ष ही सत्ता में आ जाए मगर यही गणतंत्र की परीक्षा का सबसे बड़ा परीक्षणकाल होता है। चुनाव में अपनाई गई नीति और रीति केवल चुनाव तक सीमित नहीं रहती अपितु आगे तक इसका प्रभाव जाता है। इसलिए गणतंत्र के इस अमृतकाल में बेहतर हो कि सभी मिल कर राजनीति में एक आदर्श स्थापित करें।