कामयाब और लोकप्रिय संगीतकार उषा खन्ना

मनोहर खन्ना शायर व गायक थे। ग्वालियर रियासत के जल विभाग में असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट के रूप में कार्य करते थे। 1946 में उन्हें किसी काम की वजह से बॉम्बे (अब मुंबई) जाना हुआ, जहां संयोग से उनकी मुलाकात जद्दनबाई से हो गई, जिन्हें अब तो उनकी बेटी नर्गिस दत्त के नाम से अधिक जाना जाता है, लेकिन उस जमाने में वह बॉलीवुड की पहली महिला संगीत निर्देशक थीं और अपनी कम्पनी के तहत फिल्मों का भी निर्माण करती थीं। जद्दनबाई ने मनोहर खन्ना की शायरी सुनी और उन्हें नर्गिस आर्ट प्रोडक्शन्स की फिल्म ‘रोमियो जूलिएट’ में तीन ़गज़लें लिखने का ऑफर दिया, जिसके लिए उन्हें 800 रूपये मेहनताना का भी प्रस्ताव था। मनोहर खन्ना का ग्वालियर रियासत में मासिक वेतन 250 रूपये था। उन्हें यह ऑफर पसंद आया और वह जावेद अनवर के नाम से फिल्मों में गाने लिखने लगे। उन्होंने अपने परिवार को भी बॉम्बे में साथ रहने के लिए बुला लिया।
इस तरह 7 अक्तूबर, 1941 को जन्मीं उनकी बेटी उषा खन्ना भी उनके साथ बॉम्बे में रहने लगीं। उषा को अपने पिता की तरह ही गाना गाने का शौक था और वह फिल्मों में गाना चाहती थीं। उषा के पड़ोस में गीतकार इंदीवर भी रहते थे। उन्होंने उषा की आवाज सुनी तो वह बहुत प्रभावित हुए और उन्हें शशिधर मुखर्जी के पास ले गये, जिनकी उस समय बॉलीवुड में तूती बोलती थी। मुखर्जी ने उषा का गाना सुना और उन्होंने मालूम किया कि इसकी धुन किसने बनायी है। गाने को स्वयं उषा ने ही कंपोज किया था। यह जानकर मुखर्जी प्रभावित हुए और उन्होंने उषा को एक साल तक रोज़ाना दो गाने कंपोज करने के लिए कहा। वह आदेश का पालन करने लगीं।
बहरहाल, कुछ माह बाद कुछ ऐसा हुआ कि किसी बात पर मुखर्जी और संगीतकार ओ.पी. नय्यर की अनबन हो गई। चूंकि उषा का संगीत लगभग नय्यर जैसा ही था, इसलिए मुखर्जी ने अपनी फिल्म ‘दिल देके देखो’ (1959) में उन्हें बतौर संगीत कंपोजर नियुक्त कर लिया। यह आशा पारिख की भी बतौर हीरोइन पहली फिल्म थी। दोनों उषा व आशा उस समय 17-17 वर्ष की थीं। इस तरह उषा जद्दनबाई व सरस्वती देवी के बाद बॉलीवुड में तीसरी महिला संगीत निर्देशक बनीं। इस फिल्म के गाने इतने हिट हुए कि आज तक विशेष आनंद प्रदान करते हैं। इस फिल्म के साथ ही उषा, मुहम्मद रफी और आशा भोंसले की जबरदस्त तिगड़ी बनी, जिसने ‘हवस’ (1974), ‘आप तो ऐसे न थे’ (1980) आदि दर्जनों फिल्मों में यादगार गाने दिए। आशा भोंसले उषा को अपनी ‘बेटी’ के रूप में संबोधित करती हैं। हालांकि उषा ने ‘मैंने रखा है मुहब्बत अपने अफसाने का नाम’ (शबनम), ‘हम तुमसे जुदा होके मर जायेंगे रो रो के’ (एक सपेरा एक लुटेरा), ‘गा दीवाने झूम के’ (फ्लैट नंबर 9), ‘छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी’ (हम हिन्दुस्तानी), ‘तेरी गलियों में न रखेंगे कदम, आज के बाद’ (हवस), ‘शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है’ (सौतन), ‘तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है’ (आप तो ऐसे न थे) जैसे सदाबहार गाने कंपोज किये हैं, लेकिन पुरुष प्रधान संगीत संसार में उन्हें कभी वह मकाम नहीं मिल सका जिसकी वह वास्तव में हकदार हैं। विरोधाभास देखिये कि उषा द्वारा कंपोज किये गये गीत ‘दिल के टुकड़े टुकड़े करके’ (दादा) के लिए केजे येसुदास को 1979 का फिल्मफेयर अवार्ड (सर्वश्रेष्ठ पुरुष गायक) तो मिला, लेकिन स्वयं उषा को उनके संगीत के लिए किसी उल्लेखनीय पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया। बतौर संगीतकार भी उषा का सफर शायद इतना लम्बा न चलता अगर सावन कुमार टाक उन्हें नियमित अपनी फिल्मों में संगीतकार न लेते। सावन कुमार उषा के लिए गीत लिखा करते थे। यही व्यवसायिक संबंध प्यार में बदल गया और दोनों ने आपस में शादी कर ली। लेकिन सावन कुमार किसी एक फूल तक सीमित रहने वाले व्यक्ति न थे। उषा को उनके इस मनचलेपन से तकलीफ होती थी, इसलिए उन्होंने सावन कुमार से तलाक ले लिया। लेकिन अलग हो जाने के बावजूद दोनों की दोस्ती व प्रोफेशनल रिश्ता सावन कुमार के निधन तक कायम रहा। बतौर निर्माता निर्देशक सावन कुमार ने 11 फिल्में बनायीं और इन सभी में उन्होंने उषा को ही संगीतकार रखा। इनमें से कुछ फिल्में तो दोनों के तलाक के बाद बनी थीं। 
कामयाब व लोकप्रिय संगीत देने के बावजूद उषा को बॉलीवुड में अपने पैर जमाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। इसलिए उनकी कोशिश रहती थी कि वह नये गायकों को भी अवसर दें। पंकज उधास, हेमलता, मुहम्मद अजीज, रूप कुमार राठौड़, शब्बीर कुमार, सोनू निगम आदि को शुरुआती अवसर उषा ने ही प्रदान किये थे और बाद में इन सभी को अपार सफलता मिली। 
उषा ने अक्सर ही अरबी संगीत से प्रेरणा ली है। उनका दावा है कि उन्होंने कभी सीधे कोई गीत लिफ्ट नहीं किया है, उससे प्रेरित होकर कुछ नया ही बनाया है। उषा ने स्वयं भी कुछ गीत गाये हैं और गैर-हिंदी फिल्मों में भी संगीत दिया है, विशेषकर मलयालम फिल्मों में। उषा ने 2003 में आखिरी बार किसी फिल्म (दिल परदेसी हो गया) में संगीत दिया था। अब वह कभी कभार किसी टीवी धारावाहिक में संगीत दे देती हैं।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर