मां बोली के सम्मान के लिए माएं आगे आएं

घर-घर तक पंजाबी बोली का संदेश पहुंचाइये
मां बोली पंजाबी साडी, इस तों सदके जाइये।
विगत दिनों हमने अंतर्राष्ट्रीय मां बोली दिवस मनाया है और जहां पंजाबी बोली को प्यार और सम्मान करने वालों की कोई कमी नहीं है परन्तु दु:ख होता है देखकर कि कई लोग इसका सम्मान करने से मुनकर हो जाते हैं।
बात करें पंजाब की, पंजाब के शहरों की, शहरों में रहते लोगों की, इन लोगों की बोली की, बोली के बदलते रुझानों की अभिप्राय समाज के काफी लोगों में मां बोली के प्रति घटते प्यार, इज़्ज़त और लगाव की। यदि कहीं बसों, रेलगाड़ियों या जहाज़ों में सफर करें तो कई बार कानों को यकीन ही नहीं होता कि हम पंजाब में हैं या पंजाब से बाहर किसी अन्य राज्य में हैं क्योंकि कोई कम ही पंजाबी बोलने वाला सुनता है और यदि कोई लोग पंजाबी में बातचीत कर भी रहे हों तो आवाज़ बहुत धीरे रखी जाती है और यदि वही वार्ता अंग्रेजी भाषा या राष्ट्र भाषा में हो रही हो तो आवाज़ ऊंची हो जाती है क्योंकि कई लोग अपने बच्चों, अपने परिवार के साथ मां-बोली पंजाबी में बात करना अपनी कथित हैसियत के लिए नहीं समझते। आजकल यह रुझान पंजाब के काफी लोगों में है, खास तौर पर शहरों की तरफ। विदेशों में मां-बाप अपने बच्चों के साथ अधिक पंजाबी मां-बोली में ही बात करते हैं। वे अपने बच्चों को अवश्य पंजाबी सभ्याचार के साथ जोड़कर रखते हैं क्योंकि वास्तविक कद्र-ओ-कीमत अपनी बोली की तब पता चलती है जब इससे दूर जाना पड़े।
दक्षिणी भारत के लोग अपनी मातृ-भाषा को पहल देते हैं। उनके लिए मां बोली ही महत्वपूर्ण होती है चाहे अन्य कोई भाषा उनके बच्चे सीखें या न सीखें। क्या उनके बच्चे ज़िंदगी में अंग्रेजी नहीं बोल पाते? क्या वे उच्च पदों पर नौकरी नहीं लगते? क्या वे ज़िंदगी में आत्म-विश्वासी नहीं बनते? इन सब सवालों का एक ही जवाब है, ऐसे बच्चे प्रत्येक क्षेत्र में अपनी जड़ों के साथ जुड़े होने के कारण बल्कि ज्यादा बढ़िया कारगुज़ारी दिखाते हैं। जो अपनी मां-बोली को अच्छी तरह पहचानते हैं, वे अकादमिक ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करते हैं, उन लोगों से जिनका मां-बोली के साथ बहुत ज्यादा नाता नहीं होता।
मां-बोली हमें अपने परिवार, रिश्तेदारों, दोस्तों के साथ अच्छी तरह और बढ़िया संचार करने का मौका देती है। अपने आस-पास की पहचान हमें मां-बोली के ज़रिये ही मिलती है। हमारा अस्तित्व, हमारी पहचान मां बोली प्रदान करती है। अपने अमीर सभ्याचार के गुणों के बारे, विरसे के बारे हमारी मां-बोली हमें जागरुक  करती है।
ज़रा सोचिए कि यदि एक बच्चा बिना अपनी संस्कृति और मां-बोली के बारे जानने से बड़ा होता है तो उसकी ज़िंदगी में हमेशा एक खालीपन रहेगा और जो बच्चा अपनी बोली और सभ्याचार के गुणों में बड़ा होता है, उसकी शख्सियत योग्यता के पक्ष से अधिक समृद्ध और प्रभावशाली होती है।
आज के इस तेज़ी के साथ बदलते समय में मां बोली के अवसान के लिए बड़ी हद तक जिम्मेदारी हम माएं ही हैं क्योंकि आजकल बहुत से मां-बाप मां बोली में बच्चों के साथ बात नहीं करते, घर के बड़ों का प्रभाव बच्चों पर बचपन से ही पड़ना शुरु हो जाता है, मां-बाप जो सभ्याचार, बोली, जो रीति-रिवाज़ अपनाते हैं, यह सब देखकर बच्चे बड़े होते हैं।
मां-बाप को, बच्चों को घर में मां बोली बोलने के लिए ज़ोर देना और प्रेरित करना बहुत ज़रूरी है। अपनी मां-बोली में साहित्य, किताबें बच्चों के साथ पड़ें, मां बोली के लोक गीत सुनाएं, फिल्में बच्चों को दिखाएं। मां बोली के समृद्ध सभ्याचार के बारे में गाथाएं सुना कर, हमारे गुरुओं की कुर्बानियों के बारे में जागरूक करें ताकि अगली पीढ़ियों को अपनी मां बोली और संस्कृति पर गर्व  हो। बच्चों में यह जज़्बा और जुनून पैदा करने से पहले हम बड़ों को अपने अंदर झांकना पड़ेगा कि हम अपने बच्चों का भविष्य उनको मां बोली की समृद्ध विरासत से दूर रख कर धुंधला नहीं कर सकते। यदि हम बच्चों के साथ मां बोली में बात करना पसंद नहीं करते तो ऐसा करके हम क्यों अपने पुर्वजों के गुनहगार बन रहे हैं?
सो, पहले अपनी मां बोली को याद रखें, उसमें पढ़ना और लिखना सीखें और उसके बाद अन्य भाषाएं सीखें। सो, हमेशा बच्चों को याद कराइये : 
पंजाबी एह बोली गुरुआं पीरां दी
पंजाबी बोल चाल दी रानी है, 
पंजाबी दसदी अमीर विरसे दी कहानी है।

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