अब पारदर्शी चुनावी फंडिंग पर काम होना चाहिए

भारतीय चुनाव एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें लाखों मतदाता और अनेक राजनीतिक दल शामिल होते हैं। राजनीतिक पार्टियां अपने अभियानों के वित्तपोषण के लिए व्यक्थियों और कम्पनियों के योगदान पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं, क्योंकि फंडिंग महत्वपूर्ण है। चुनाव के दौरान बहुत सारा काला धन भी घूमता है।
2014 में जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने राजनीति में अवैध धन का उपयोग रोकने का वायदा किया था। तीन साल बाद 2017 में उन्होंने चुनावी बॉन्ड योजना पेश की, जिसके बारे में उनका दावा था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी। हालांकि, कुछ लोगों ने फंडिंग की गोपनीयता और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को अदालत में चुनौती दी। पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने गुमनाम राजनीतिक चंदे को अवैध घोषित कर दिया। इस फैसले को भाजपा के लिए पचाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि 2018 से प्रभावी इस योजना से सत्तारूढ़ दल को सबसे अधिक फायदा हुआ है। शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि ‘चुनावी बॉन्ड’ नागरिकों के सरकारी जानकारी तक पहुंचने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन करते हैं। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने खुले शासन के महत्व पर ज़ोर दिया और कहा, ‘मतदान के विकल्प का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है।’ सरकारी स्वामित्व वाले भारतीय स्टेट बैंक को इन बॉन्ड्स को जारी करने से रोकने और भारत के चुनाव आयोग को विवरण प्रदान करने का आदेश दिया गया है। यह फैसला पांच जजों के समूह ने दिया। न्यायाधीशों ने जांच की कि क्या चुनावी बॉन्ड योजना ने संवैधानिक नियमों को तोड़ा है, मतदाताओं को महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने से रोका है, दानदाताओं की गोपनीयता की रक्षा करते हुए गुप्त दान की अनुमति दी है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खतरे में डाला है। पहले राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से अधिक का योगदान देने वाले दानदाताओं की पहचान का खुलासा करना आवश्यक था। हालांकि, चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों को दानदाताओं की पहचान उजागर किये बिना प्राप्त धन की रिपोर्ट करने की अनुमति देते हैं। बॉन्ड की रेंज 1,000 से 10 करोड़ रुपये तक होती है।
लोगों को जानना चाहिए कि राजनीतिक फंडिंग पारदर्शी है या नहीं। मुख्य आलोचनाओं में से एक यह है कि इन बॉन्ड्स को खरीदते समय यह पता लगाना कठिन है कि पैसा कहां से आता है, जिससे धन के स्रोत की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। 2017 से 2022 तक के एडीआर आंकड़ों के अनुसार इस अवधि के दौरान निगमों द्वारा दान की गयी कुल राशि 3,299.85 करोड़ रुपये थी। इस राशि का सबसे बड़ा हिस्सा भाजपा को मिला। चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कांग्रेस पार्टी को 406.45 करोड़ रुपये, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को 109.5 करोड़ रुपये और अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) को 49.7 करोड़ रुपये मिले। एडीआर की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राजनीतिक योगदान के बारे में जानकारी छिपाना अनुचित है। करदाताओं को पता होना चाहिए कि राजनीतिक दलों को धन कहां से मिलता है। पारदर्शिता की कमी जवाबदेही पर सवाल उठाती है। करदाताओं का पैसा बॉन्ड छापने में खर्च होता है और भारतीय स्टेट बैंक को उनकी बिक्री से मुनाफा होता है। चुनाव आयोग ने 2,858 राजनीतिक दलों को पंजीकृत किया है, लेकिन केवल एक छोटा प्रतिशत केवल 2.17 प्रतिशत वर्तमान में मान्यता प्राप्त हैं। कुछ पार्टियां कभी भी चुनाव में भाग नहीं ले सकती हैं जबकि अन्य धनशोधन गतिविधियों में शामिल हो सकती हैं। 2019 के चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों को रिकॉर्ड तोड़ राशि मिली। चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 2,760.20 करोड़ का गुमनाम चंदा आया। यह 2017-18 और 2018-19 में मिली सबसे ज्यादा रकम थी। 2017-18 से 2020-21 तक 19 राजनीतिक दलों ने लगभग 6.5 हज़ार करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड भुनाये। पिछले छह लोकसभा चुनावों में खर्च लगभग छह गुना बढ़ गया है जो 9,000 रुपये से बढ़कारम 2019 में 55,000 करोड़ रुपये हो गया था। 2018 से मार्च 2022 तक भाजपा को 57 प्रतिशत चंदा मिला जबकि कांग्रेस को सिर्फ  10 प्रतिशत ही प्राप्त हुआ। उम्मीद है कि सरकार पहले के अवसरों के विपरीत सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान करेगी। कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है और अब इसे अमल में लाना होगा। भाजपा को दानकर्ता की गोपनीयता और पूर्वव्यापी खुलासे पर आपत्ति है। उनका दावा है कि अदालत का आदेश आगामी अप्रैल-मई चुनावों में भाजपा की संभावनाओं को प्रभावित नहीं करेगा क्योंकि उनका लक्ष्य प्रधानमंत्री मोदी के लिए तीसरा कार्यकाल सुरक्षित करना है। भविष्य में चुनावों में धन के प्रभाव को रोकने के लिए नये नियमों की आवश्यकता है। चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता पर जोर देकर चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए बदलाव बहुत ज़रूरी है। (संवाद)