सूरज की रोशनी से रंग बदलता लाल पट्टे वाला मेंढक

अफ्रीका में मेंढकों का एक छोटा सा परिवार पाया जाता है, जिसे फ्राइनोमेटीडाइ कहते हैं। इस परिवार में मेंढकों का केवल एक ही वंश है फ्राइनोमिरस। इस वंश का एक मेंढक लाल पट्टे वाला मेंढक कहलाता है। इसका वैज्ञानिक नाम है फाइनोमिरस बाई फेसिएटस। लालपट्टे वाला मेंढक एक विचित्र मेंढक है। यह नम जमीन के अन्दर मांद बनाता है और दिन भर उसी में छिपा रहता है। इस मेंढक की त्वचा प्रकाश के प्रति बड़ी संवेदनशील होती है। इसके शरीर के किसी भी भाग पर यदि सूर्य का प्रकाश पड़े तो उस भाग की त्वचा का रंग बदल जाता है, जबकि शेष भाग का रंग पहले जैसा बना रहता है। यदि इस मेंढक दिन में सूर्य के प्रकाश में रख दिया जाए तो इसकी लाल रंग की धारियों का रंग हल्का पड़ने लगता है। ये धारियां पहले नारंगी हो जाती हैं और फिर इनका रंग गुलाबी हो जाता है। 
इसे यदि तेज धूप में रख दिया जाए तो इसके पूरे शरीर का रंग फीका पड़ जाता है और हलके ग्रे रंग का दिखाई देने लगता है। लाल पटट्े वाले मेंढक की दूसरी प्रमुख विशेषता यह है कि यह अन्य मेंढकों के समान न तो उछलता-कूदता है और न ही लंबी-लंबी छलांगें लगाता है, बल्कि यह धीरे-धीरे चलता है या कभी-कभी तेज दौड़ लगाता है। इसकी शारीरिक संरचना सामान्य मेंढकों की तरह होती है। यह एक छोटा मेंढक है। इसकी लंबाई लगभग 5 सेंटीमीटर तथा शरीर का रंग काला होता है। लाल पट्टे वाले मेंढक के शरीर की दोनों बगलो पर लाल रंग का एक पट्टा होता है, इसीलिए इसे लाल पट्टे वाला मेंढक कहते हैं। इसकी पीठ पर भी लाल रंग का एक पैबंद होता है, जो दूर से साफ दिखाई पड़ता है। इसके शरीर के रंग इसे पूरा कॉमाफ्लास प्रदान करते हैं, किन्तु लाल रंग के पट्टों के कारण यह सरलता से दिखाई पड़ जाता है।
लाल पट्टे वाले मेंढक के चारों पैरों की उंगलियों के सिरे पर वृक्ष मेंढक के समान डिस्क होती है, किन्तु यह वृक्ष मेंढक नहीं है और न ही कभी वृक्ष पर चढ़ता है। कभी-कभी भोजन की तलाश में इसे लकड़ी के लट्ठों अथवा छोटी-छोटी झाड़ियों पर चढ़ते हुए अवश्य देखा गया है। इसका भोजन बड़ा विचित्र होता है। यह सामान्य मेंढकों की तरह कीड़े-मकोड़े न खाकर चीटियां और दीमक आदि खाता है। चीटियां और दीमक इसका प्रमुख भोजन हैं। कभी-कभी दीमक की बांबियां खोदने पर उनके भीतर लाल पट्टे वाला मेंढक मिल जाता है। जीव वैज्ञानिक पहले इस तथ्य को समझ नहीं पाए थे, किन्तु बाद में इसकी भोजन संबंधी आदतों का अध्ययन करने के बाद यह मालूम हुआ कि यह दीमक खाने के लिए उसकी बांबियों में घुसता है।
यह समागम और प्रजनन सामान्य मेंढक की तरह होता है। इनका समागम काल वर्षा ऋतु के आते ही आरंभ हो जाता है और लगभग एक माह तक चलता है। समागम काल में नर और मादा दोनों ही उथले जलकुंडों में एकत्रित हो जाते हैं। नर मेंढक मादा को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपनी ध्वनि थैलियों से आवाज निकालता है। इसकी आवाज बहुत तेज़ होती है तथा आठ सौ मीटर तक की दूरी से सुनी जा सकती है। नर की आवाज से आकर्षित होकर समागम की इच्छुक मादा उसके निकट आ जाती है। सामान्य मेंढकों की तरह लाल पट्टेदार मेंढक में भी बाह्य समागम और बाह्य निषेचन होता है। मादा को देखते ही नर उसकी पीठ पर सवार हो जाता है और उसे अपने आगे के पैरों से कसकर पकड़ लेता है। इसी समय मादा अंडे देती है और नर उन्हें अपने शुक्राणुओं से निषेचित करता है।
लाल पट्टेदार मेंढक की मादा एक बार में लगभग दो सौ अंडे देती है। इसके अंडे केवल चार दिन में ही फूट जाते हैं और उनसे टेडपोल निकल आते हैं। लाल-पट्टेदार मेंढक के टेडपोल की शारीरिक संरचना सामान्य मेंढकों से भिन्न होती है। इसके चोंच जैसा मुंह तथा दांतों की रेखाएं नहीं होती हैं बल्कि सिर के सिरे पर एक बहुत छोटा सा मुंह होता है, जो देखने में एक छोटे से छेद जैसा दिखाई देता है। इसी मुंह से यह पानी में पाए जाने वाले खाद्य कण खींचकर भोजन प्राप्त करता है और अपना विकास करता है। एक माह में टेडपोल का पूरा विकास हो जाता है। अब यह अपना कायान्तरण करता है और एक छोटे सा बच्चा मेंढक में बदल जाता है। बच्चा मेंढक दीमक तथा चीटियां खाना आरंभ कर देता है और कुछ समय बाद वयस्क मेंढक बन जाता है।

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