म्यांमार सीमा पर बाड़बंदी से उत्पन्न होते कुछ सवाल 

सीमा को अभेद्य बनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हाइब्रिड सर्विलांस सिस्टम वाली बाड़ लगाना एक उचित कदम है, जो केंद्र सरकार तमाम सरकार विरोधों के बावजूद जारी रखे हुए है। इससे पूर्वोत्तर राज्यों में प्रवासन, स्थानीय संसाधनों पर अवैध नियंत्रण, विभिन्न भारतीय विद्रोही समूहों द्वारा शिविर बनाने, उनके द्वारा हिंसा, जबरन वसूली रुकेगी और नाजुक हो गई सुरक्षा की स्थिति संभल सकेगी, लेकिन इस बाड़ से जुड़े कुछ वाजिब सवालों के जवाब आज भी मिलने बाकी हैं। सीमा सड़क संगठन ने सरकार के उस फैसले जिसके तहत पूर्वोत्तर के चार राज्यों से सटी म्यांमार की 1,643 किलोमीटर की सीमा पर बाड़ लगाना है, पर क्रियान्वयन करते हुये कंटीले तारों की बाड़ लगाना शुरू करके अब तक 12 किलोमीटर से ज्यादा का लक्ष्य पा भी लिया है और मणिपुर में अगले 80 किलोमीटर के लक्ष्य की ओर बढ़ चली है। इस राज्य से लगते म्यामांर की सीमा पर 250 किलोमीटर की बाड़ लगेगी, परन्तु इस लक्ष्य के पूरा होने से पहले समूची बाड़बंदी पर कुछ अहम सवाल उठ खड़े हुये हैं। इन सवालों के साथ कुछ विरोध भी शुरु हो गये हैं। गौरतलब है कि बाड़ लगाने की अव्यवहारिकता, अतार्किकता, आवश्यकता, तकनीक, तरीके, सैन्य, कूटनीतिक, राजनीतिक, राजनयिक नफ-नुकसान, खर्चे और रखरखाव के साथ दूसरे कुछ ज़रूरी सवाल तब भी उठे थे, जब गृहमंत्री अमित शाह ने यह फैसला लिया था। हालांकि कुछ प्रश्नों के उत्तर सरकार ने तत्काल दे दिये थे, लेकिन कई सवाल तब भी अनुत्तरित हैं और आज जब इस पर काम जारी है तथा सरकार ने अपनी इस परियोजना के पूरा करने के प्रति प्रतिबद्धता दर्शायी है, तब भी हैं। 
अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर आवश्यक हैं, क्योंकि ये महज पूर्वोत्तर के स्थानीय नेताओं, संगठनों के द्वारा ही नहीं पूर्व सैन्य अधिकारियों, पूर्व राजनयिकों, सुरक्षा विशेषज्ञों, आर्थिकी के जानकारों और विदेश नीति के समीक्षकों द्वारा भी उठाए गये हैं। अपनी रक्षा, सुरक्षा के लिये सीमाओं की बाड़बंदी का ख्याल और उस पर क्रियान्वयन नि:संदेह उचित है, लेकिन इससे जुड़े संदर्भित सवालों का साफ और तार्किक उत्तर भी ज़रूरी है। यह सरकार यदि फिर सत्ता में आती है, तब भी इस लंबी परियोजना से जुड़े ये प्रश्न उसके सामने रहेंगे, बेहतर हो वह इस प्रश्नों का उत्तर चुनावों से पहले ही दे। इससे उसे उत्तरपूर्व में राजनीतिक लाभ मिलेगा और बेशक देश की रक्षा व सुरक्षा के सुदृढ़ीकरण के नाम पर दूसरे क्षेत्रों में भी। सरकार बाड़बंदी से जुड़े सवालों को टालती है तो पूर्वोत्तर में होने वाले इसके विरोध से उसे कुछ राज्यों में किंचित नुकसान उठाना पड़ सकता है।
भाजपा सरकार के रहते ही साल 2018 में म्यांमार के साथ ‘फ्री मूवमेंट रिजीम’ पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसके तहत भारत-म्यांमार सीमा के आसपास के लोग सीमा के 16 किलोमीटर भीतर तक बिना किसी जांच के आ जा सकते थे, परन्तु छह साल में ही इस व्यवस्था को खारिज कर सीमा पर तारबंदी करने के लिये मजबूर होना पड़ा ताकि म्यामांर की अशांति और उससे भागे घुसपैठिए यहां न पसरें। अवैध ड्रग्स कारोबार और चीनी हथियारों की तस्करी रुके, क्योंकि म्यांमार को चीनी हथियारों की भारी आपूर्ति होती है, परन्तु सरकार की ओर से सिर्फ इतना कहा गया है कि हमें सीमाओं को अभेद्य बनाना है, म्यांमार के प्रति हमारा कोई दुराव नहीं। हालांकि पड़ोसी देश के प्रति यह संदेश तो चला ही गया कि वह हमारे लिये भरोसेमंद नहीं बल्कि ऐसी अनचाही गतिविधियों का स्रोत है, जिनकी वजह से यह कदम उठाना पड़ा है। सवाल यह कि हमारी उस एक्ट ईस्ट पॉलिसी का क्या होगा, जिसके तहत हम म्यांमार में रहने वाले 20 लाख से अधिक भारतीय मूल के लोगों के साथ आर्थिक और करीबी संबंध बनाना चाहते हैं। मिज़ोरम के मिज़ो और म्यांमार के चिन जातीय चचेरे भाई-बहन हैं। उनके सीमा पार पारिवारिक संबंध हैं। ईसाई बहुल चिन राज्य की सीमा मिज़ोरम से सटी होने के साथ सीमा के दोनों ओर बहुतायत से नगा रहते हैं जो अकसर आरपार आया-जाया करते हैं। 
ऐसे में बाड़ सीमांत इलाके के लोगों में दशकों पुराना संतुलन  बिगाड़कर पड़ोसियों में तनाव बढ़ाएगी। एक डर यह है कि इनमें देश के प्रति दुराव पैदा होगा और कालांतर में स्थानीय लोग इसमें से रास्ता ढूंढ़कर बाड़ को अव्यवहारिक कर देंगे। भारत सीमा सुरक्षा और सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास हेतु अगर जुंट्रा का समर्थन चाहता है, तो बाड़ से पहले बातचीत को प्राथमिकता देनी होगी, बिना इसके बाड़ लगाने से उकसाव को बल मिलेगा, जिससे बात बिगड़ सकती है। देखा जाए तो प्रत्येक पड़ोसी से सुरक्षा के मामले में हमारे लिये अलग तरह की चुनौतियां हैं। श्रीलंका, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान और मालदीव जैसे देशों की चुनौतियों को एक जैसा नहीं आंक सकते। पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमाओं पर बाड़ लगाना ठीक है, लेकिन बेहद कम और बिखरी हुई आबादी तथा कई निर्जन दुर्गम, कठिन पहाड़ी इलाकों वाली म्यांमार की सीमा पर बाड़ लगाने पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए। 
एक तो इसे लगाने में कई साल लगेंगे और पहाड़ी इलाके में बाड़ लगाना असंभव-सा है। यह ठीक है कि पूर्वोत्तर भारत के कई विद्रोही गुटों ने म्यांमार के सीमावर्ती गांवों और कस्बों में अपने शिविर बना लिए हैं और वे इधर-उधर आते-जाते रहते हैं तथा म्यांमार से अवैध आप्रवासन भी होता है और  बड़े पैमाने पर होता है। यह नैरेटिव इसलिये ज्यादा फैलाया जाता है ताकि इस बात को साबित किया जा सके कि कुकी मणिपुर के नहीं बल्कि ‘विदेशी’ और अवैध प्रवासी हैं जिनके विरोध-प्रदर्शनों को म्यांमार से समर्थन मिलता है। सच यह है कि सदियों से मणिपुर में बसे कुकी के साथ मैतेई लोगों ने भी सीमा पर मुक्त आवाजाही की व्यवस्था से व्यावसायिक लाभ उठाया है। दोनों को बाड़बंदी से नुकसान होगा। फिलहाल सरकार को इन प्रश्नों का दमदार जवाब देने की ज़रूरत है कि मुफ्त आवाजाही समझौता निरस्त करना ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टि से अतार्किक है और इस तरह की बाड़ ऐसे समस्याओं का समग्रतापूर्ण हल नहीं है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर