अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनें उपभोक्ता

विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस हमें यह याद दिलाता है कि उपभोक्ताओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता होनी चाहिए। संवाद का महत्व इस दिन पर विशेष रूप से बढ़ जाता है क्योंकि यह एक मंच प्रदान करता है जहां उपभोक्ताओं की समस्याओं को सुना जा सकता है और समाधान निकाला जा सकता है। विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस का इतिहास राष्ट्रपति जॉन एफ . कैनेडी से शुरू होता है। 15 मार्च, 1962 को उन्होंने उपभोक्ता अधिकारों के मुद्दे को संबोधित करने के लिए अमरीकी कांग्रेस को एक विशेष संदेश भेजा। ऐसा करने वाले वे पहले नेता थे। उपभोक्ता आंदोलन इस प्रकार 1983 में शुरू हुआ और प्रति वर्ष इस दिन संगठन उपभोक्ता अधिकारों के संबंध में महत्वपूर्ण मुद्दों और अभियानों पर कार्रवाई करने का प्रयास करता है।
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस हमें उपभोक्ताओं के हक के महत्व को समझाने और ठीक से उत्पादों और सेवाओं का उपयोग करने के लिए जागरूक करता है। यह दिवस उन उपभोक्ताओं के योगदान को मान्यता देता है जो निर्माताओं के खिलाफ खड़े होते हैं। यह एक अवसर है कि हम सभी सोचें कि हमारे पास क्या-क्या अधिकार हैं और कैसे हम उन्हें सुनिश्चित कर सकते हैं। उपभोक्ता अधिकारों की गणना कई विषयों पर होती है—जैसे कि उत्पाद की गुणवत्ता, मूल्य, और सेवाओं की उपलब्धता। सुरक्षित और ठीक से उत्पादों और सेवाओं का अधिकार हमें स्वास्थ्य, सुरक्षा और आत्मविश्वास प्रदान करता है। इस दिवस सरकारों और निर्माताओं की ज़िम्मेदारी भी बढ़ाता है। इस दिवस के माध्यम से हम उपभोक्ता अधिकारों के बारे में जागरूकता फैला सकते हैं और समाज में उनका समर्थन कर सकते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे पास अधिकार हैं और हमें इनका उपयोग करना चाहिए। इस दिन का महत्व व्यापकता में नहीं है सिर्फ एक व्यक्ति की जरूरतों के आधार पर बल्कि समाज के हर व्यक्ति के अधिकारों और स्वतंत्रताओं को महसूस करने के साथ ही उनकी सुरक्षा की भी ज़रूरत है।
 उपभोक्ता संरक्षण की बात करते हुए इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है। सरकारों और संगठनों को उपभोक्ताओं के हित में नीतियों और कानूनों को स्थापित करने की ज़रूरत है ताकि उपभोक्ताओं की सुरक्षा और हित का पूरा ध्यान रखा जा सके। इस विशेष दिन हमें यह समझना चाहिए कि उपभोक्ता संरक्षण केवल एक समाचार मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार उपभोक्ताओं के लिए भारत में छह मौलिक अधिकारों की रूपरेखा तय की गई है। सुरक्षा का अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ता को यह अधिकार होता है कि वह वस्तुओं या सेवाओं से सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। खरीदे गए सामान व सेवाओं से न केवल तात्कालिक जरूरतें पूरी होनी चाहिये बल्कि इससे दीर्घ अवधि के लाभ भी पूरे होने चाहिये। चुनने का अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ताओं को उत्पादों और सेवाओं के चयन करने की स्वतंत्रता प्रदान करना है। कम कीमत पर वस्तुओं की किस्मों और सेवाओं पर, जहां तक संभव हो, पहुंच पाने का अधिकार सुनिश्चित होता है। सूचना पाने का अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ताओं को उत्पादों और सेवाओं के बारे में सही और सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने का अधिकार होता है। वस्तुओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और मूल्य के बारे में भी जानकारी प्राप्त करना उसका अधिकार है।
सुनवाई का अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ताओं को अपनी शंकाओं और अपने विचार व्यक्त करने के लिए अधिकार प्राप्त है। निवारण पाने के अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ताओं की शिकायतों के लिए और मुआवज़ा या समाधान देने के लिए यह अधिकार सक्षम बनाता है। उत्पाद या सेवा पर संतुष्टि न होने या कम्पनी में सुनवाई न होने पर उपभोक्ताओं को अपनी शिकायत अवश्य दर्ज करवानी चाहिए। मार्किट में होने वाली जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावटी चीजों का वितरण, तय मूल्य से ज्यादा दाम वसूलना, बिना मानक चीज़ों की बिक्री, ठगी, नाप-तौप में अनियमितताएं, गारंटी के बाद भी सर्विस प्रदान नहीं करने के अतिरिक्त उपभोक्ताओं के प्रति होने वाले अपराधों को देखते हुए इस दिन का विशेष महत्ता है। (अदिति)