दुनिया भर में देखे जा रहे बदलाव

एक वक्त में वैश्वीकरण के माध्यम से भारी बदलाव दुनिया भर में देखे गये। बदलाव इतने बड़े थे कि जो गिर गया, वह गिरता चला गया और जो उठ गया, वह उठता चला गया। दया या करुणा किसी के प्रति नहीं। स्वार्थ सधते गये, काम चलता गया। यह वैश्वीकरण भी अब भारी तनाव में नज़र आ रहा है। इसका क्या विकल्प होगा। कौन-सी नई व्यवस्था जन्म लेने वाली है, कुछ कहा नहीं जा सकता। अब कई देश संरक्षणवादी बाधाएं ज़रूर खड़ी करने लगे हैं और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) जैसे तैसे साथ चलने की कोशिश कर रहा है। एक बात और नोट करने लायक है कि पश्चिम और चीन के बीच व्यापार और तकनीक से जुड़ी हुई बाधाएं बढ़ती ही जा रही हैं। एक वित्तीय प्रसिद्ध अखबार का कहना है कि चीन के पास हालात से निपटने की अपनी योजनाएं हैं, क्योंकि उसकी कोशिशें ग्लोबल साऊथ पर केन्द्रित हैं और अमरीका तथा पश्चिम वहां अपना ज्यादा प्रभाव नहीं रखते। इसे चीन के द्वारा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बी.आर.आई.) में किये गये भारी निवेश का परिणाम बताया जा रहा है। इसमें अफ्रीका और लैटिन अमरीका के 140 से भी ज्यादा देश सहभागी बताये जा रहे हैं। चीन ने इन देशों के साथ द्विपक्षीय करारनामे और क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौते कर रखे हैं जोकि कम टैरिफ पर व्यापार और निवेश के प्रवाह को बढ़ावा देता है। बीजिंग सावधानीपूर्वक एक ऐसा फ्रेमवर्क तैयार कर पाया है जो उसके हित संरक्षित कर सकता है। उसने अपने निर्यात को ध्यान में रखते हुए अमरीका और यूरोपियन यूनियन से छोटे देशों में से जाने पर निरंतर कार्य किया है और कर रहा है। वर्तमान में 28 ऐसे देश बताये गये हैं जो चीन के चालीस प्रतिशत निर्यात के निशाने पर हैं। फिर अगर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू टी ओ) कम प्रभावी हो जाये या उतना प्रभावित न करे जितना वह पहले के दशकों में कर रहा था। चीन ऐसे किसी भी संकट के लिए तैयार नज़र आएगा क्योंकि उसके पास एक बैकअप तैयार  खड़ा रहेगा जो किसी भी एफ.टी.ए. में अमरीका या यूरोपियन में शामिल नहीं होगा। चीन के एफ.टी.ए. नेटवर्क का पिछले साल के 3.43 ट्रिलियन डॉलर निर्यात में 1.3 ट्रिलियन डॉलर का योगदान था। वर्तमान में चीन का 14 देशों और हांगकांग के साथ एफ.टी.ए. है। वह 10 से अधिक और देशों के साथ बातचीत कर रहा है। कुछ इस तरह प्रतीत होता है कि एक सोची-समझी नीति के तहत वह अपने व्यापार को पश्चिम से ग्लोबल साऊथ की ओर ले जाने में कामयाब हो रहा है। बी.आर.आई. प्रतिभागियों के साथ चीन का व्यापार पहले से ही अमरीका, यूरोपियन यूनियन और जापान से अधिक बताया जा रहा है। वह गल्फ  काआप्रेशन काउंसिल (जी.जी.सी.) को भी अपना निर्यात बढ़ा रहा है, जो वर्तमान में 112 अरब डॉलर से भी अधिक है। चीन वर्ष 2018 में अफ्रीकी महाद्वीप मुक्त व्यापार समझौते (एफ.एफ. टी ए.एफ.टी.ए) के बाद से अफ्रीका का विश्लेषण करता है और नज़रें जमाये हुए है। यह बीजिंग के लिए बड़े अवसर प्रदान करने वाला है। जबकि चीन खुद इस संगठन का सदस्य भी नहीं है।
हमने देखा ही है कि पाकिस्तान और श्रीलंका में उसने किस तरह से कज़र् का अपना जाल फैला लिया है। वे देश चाहकर भी आने वाले कई वर्षों तक इसके कज़र् जाल से मुक्त नहीं हो सकते। चीन ने एफ.टी.ए. के तहत 2008 में चीन सिंगापुर एफ.टी.ए. की बातचीत की थी।