लोकसभा चुनाव में महिला मतदाता निभायेंगी अहम भूमिका

क्या महिला मतदाता आगामी आम चुनाव का फैसला कर सकती हैं? उनका बढ़ता मतदान प्रतिशत और अनुकूल कानून जैसे संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण, उन्हें एक महत्वपूर्ण वर्ग बनाते हैं। राजनीतिक दल इस महत्वपूर्ण वर्ग की महिला मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा करने के लिए वे विभिन्न लाभ की पेशकश कर रहे हैं। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार महिला मतदाताओं का उच्च मतदान 2024 के चुनावों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। रिपोर्ट का अनुमान है कि 2047 तक महिलाओं का मतदान प्रतिशत 55 तक पहुंच सकता है जबकि पुरुषों का मतदान प्रतिशत घटकर 45 हो सकता है।
भारत में महिलाएं लैंगिक पूर्वाग्रह को दूर करने के लिए और अधिक उपायों की मांग कर रही हैं। पिछले सितम्बर में संसद ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए महिला आरक्षण विधेयक पारित किया था। यह विधेयक संसद और राज्य विधानसभाओं में उनके लिए 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करता है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने विधेयक के पारित होने का श्रेय लिया। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने कहा, ‘यह हमारा विधेयक है।’ 2008 में सोनिया गांधी ने इसे उच्च सदन में पारित किया था लेकिन लोकसभा में ऐसा करने में विफल रहीं। गत सितम्बर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़े गर्व के साथ इस विधेयक को पेश किया और पहली बार संसद में इस विधेयक के आने के 27 साल बाद यह लगभग सर्वसम्मति से पास हो गया। जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया में देरी के कारण यह विधेयक चार साल बाद ही लागू हो पायेगा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत में केवल एक महिला प्रधानमंत्री और 15 महिला मुख्यमंत्री हुई हैं। हालांकि 1950 के दशक के बाद से चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या सात गुना बढ़ गयी है और लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 5 प्ररिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत हो गया है।
विश्व स्तर पर स्थिति समान है। अंतर-संसदीय संघ के अनुसार दुनिया भर में लगभग 26 प्रतिशत कानून निर्माता महिलाएं हैं। दूसरी ओर रवांडा में 60 प्रतिशत से अधिक सीटों पर महिलाओं का कब्ज़ा है। 2008 में रवांडा महिला बहुमत संसद वाला पहला देश बन गया।
भारत में केवल 14 प्रतिशत संसदीय सीटें महिलाओं के पास हैं। लोकसभा और राज्यसभा में क्रमश: 78 और 24 महिला सदस्य हैं। संसद के निचले सदन में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत 193 देशों में 149वें स्थान पर है। इसके अलावा भारत के प्रत्येक राज्य में 16 प्रतिशत से कम विधायक महिलाएं हैं।
भारत में एक महत्वपूर्ण उपाय 1993 में किया गया तथा पंचायत की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी गयी थीं जिसे अब अधिकांश राज्यों में 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है। लगभग दस लाख महिलाएं जमीनी स्तर पर सरपंच के रूप में कार्य करती हैं। ये सरपंच अपने स्थूल अनुभव के बल पर उन्नति की सीढ़ियां चढ़ सकेंगी।
आगामी आम चुनाव में लगभग 96.88 करोड़ मतदाता होंगे, जिनमें 47 करोड़ से अधिक महिलाएं हैं। 2.63 करोड़ नये मतदाताओं में से 1.41 करोड़ महिलाएं हैं। केरल, तेलंगाना, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी, गोवा, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम और नागालैंड में अधिक महिलाओं ने मतदान के लिए पंजीकरण कराया है।
महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बावजूद राजनीति में महिलाओं की भागीदारी में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है जबकि राजनीतिक दलों ने विधेयक का समर्थन किया। उन्होंने हाल के विधानसभा चुनावों में महिलाओं को अपने टिकटों का केवल एक छोटा-सा प्रतिशत आवंटित किया, आमतौर पर 10.15 प्रतिशत। 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा ने आगामी लोकसभा चुनावों में 421 उम्मीदवारों में से महिलाओं को केवल 67 टिकट दिये। हालांकि ममता बनर्जी, नितीश कुमार और अरविंद केजरीवाल जैसे कुछ मुख्यमंत्रियों ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लाभों को पहचाना है।
लैंगिक भेदभाव को दूर करने के लिए पार्टियों को महिला सशक्तिकरण के लिए अधिक महिला नेताओं और उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की ज़रूरत है। हालांकि कुछ लोगों का तर्क है कि यदि महिलाएं ज्ञात राजनीतिक परिवारों से आती हैं तो वे जीत जाती हैं। कई नेता उम्मीदवारों को चुनने के लिए अपने परिवार से आगे नहीं देखते हैं। यह समझना ज़रूरी है कि सभी महिलाएं महिला उम्मीदवारों को वोट नहीं देंगी।
राजनीतिक दलों को मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रोत्साहनों पर निर्भर रहने के बजाय महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। कई पार्टियां महिला मतदाताओं को प्रोत्साहन तो देती हैं लेकिन अपनी उम्मीदवार सूची में महिलाओं को समान प्रतिनिधित्व नहीं देतीं। (संवाद)