हमारे महानगर दिनों-दिन आग की भट्टी बनते जा रहे !

मुम्बई, काहिरा, जोहानेसबर्ग, नानजिंग। आखिर इन सभी नामों में क्या समानता है? ये सभी अलग-अलग देशों के बड़े महानगर हैं। मुंबई भारत की वित्तीय राजधानी है, काहिरा मिस्र की राजनीतिक राजधानी है, जोहानेसबर्ग दक्षिण अफ्रीका एक बड़ा और आधुनिक शहर है, जबकि नानजिंग चीन का वह बड़ा शहर है, जिसे एशिया का प्रोडक्शन हब कहते हैं। लेकिन यहां इन चारों शहरों और साथ में मैक्सिको सिटी को भी इसलिए याद नहीं किया जा रहा कि इनकी खूबियां जाननी हैं। जी हां, यहां इन सभी शहरों को हम एक साथ इसलिए याद कर रहे हैं, क्योंकि ये दुनिया के उन शहरों में शामिल हैं, जो ‘अर्बन हीट आईलैंड’ या आग दहकती भट्ठियों में तब्दील हो चुके हैं। 
सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है; लेकिन जिस तरह से मुंबई इस साल मार्च और अप्रैल के महीने में ही बेचौन कर देने वाली गर्मी से दो चार हुई, वह मुंबई वासियों के लिए किसी अचंभे से कम नहीं था। अप्रैल के महीने में मुंबई का तापमान 39-40 डिग्री तक पहुंच जाए और थोड़े दिनों के लिए ही सही अप्रैल महीने में लू चलने जैसी स्थिति बन जाए तो यह डराने वाला मंजर है। लेकिन यह आम लोगों को भले अप्रत्याशित लगता हो, वैज्ञानिकों की निगाह में तो कई सालों पहले से ही सब होने लगा था। कई साल पहले से ही मौसम और जलवायु वैज्ञानिकों ने दुनिया के कुछ बड़े शहरों को ‘अर्बन हीट आईलैंड’ में तब्दील होने की भाविष्यवाणी कर दी थी, इस साल यह इसी भविष्यवाणी का आंशिक रूप से ही सच हो जाना था। भौगोलिक ताप और इससे जुड़े विषयों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही कुछ उपाय न किया गया तो जिन शहरों का ऊपर जिक्र हुआ है, अगले कुछ ही सालों में वह दहकती भट्टियों में तब्दील हो जाएंगे और तब यहां लोगों का रहना मुश्किल हो जायेगा बल्कि बड़े पैमाने पर यह गर्मी लोगों की मौत और अप्रत्याशित पलायन का कारण भी बनेगी।
वैज्ञानिक पिछले कई सालों से लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि शहरों का तापमान ग्रामीण इलाकों के मुकाबले तेज़ी से बढ़ रहा है और देश तथा दुनिया के कुछ गिने चुने शहरों या जिन्हें हम प्रोडक्शन हब की संज्ञा देते हैं। ऐसे शहरों का तो और भी बुरा हाल है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आने वाले चंद सालों में ही आसमान छूती इमारतों वाले इन शहरों में रहना दूभर हो जायेगा। अर्बन हीट आईलैंड का असर इसलिए भी दिन पर दिन खौफनाक होता जा रहा है, क्योंकि आसमान छूती इमारतें और सड़कों पर रेलमपेल मचाते धुंआ उगलते वाहन ये कुछ ऐसे कारण हैं, जिनके चलते विकासशील दुनिया के बड़े महानगरों के अस्तित्व पर ही प्रलय के बादल मंडराने लगे हैं। दरअसल इन शहरों में अचानक गर्मी उतनी नहीं बढ़ी, जितनी की डिग्री सेंटीग्रेड के पैमाने से उसे व्यक्त कर सकते हैं। बड़े स्तर पर हुए पेड़ों की कटाई, लगातार ऐशो आरामात की बढ़ती चीजें और चेतावनी पर चेतावनी के बावजूद सीएफसी गैसों का दुष्प्रभाव दुनिया के कुछ खास शहरों को नर्क बनाने की दिशा में हैं।
हाल के सालों में ही नहीं बल्कि पिछले कई दशकों से इन शहरों में सड़कों और विकास की दूसरी प्राथमिकताओं के कारण बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई हुई है और सजगता के नाम पर कटे हुए पेड़ों की जगह तेजी से बढ़ने वाले जो कॉमर्शियल पेड़ लगाये हैं वो दिखने में भले हरियाली पैदा करते दिखते हों, मगर वास्तविकता यही है कि एक तो उनमें हरियाली बहुत कम है, दूसरी बात उनकी हरियाली गुणवत्तापूर्ण नहीं है। कुल मिलाकर जिस पैमाने पर विकासशील देशों के महानगरों में पिछले कुछ दशकों में पेड़ों की कटाई हुई, उस पैमाने पर नये पेड़ नहीं लगाये गये और लगाये भी गए हैं, तो उनसे उस स्तर की छाया हासिल नहीं हुई, जिस स्तर की छाया काटे हुए पेड़ों से हासिल हो रही थी। इसके अलावा पिछले कुछ दशकों में विकासशील देशों के इन महानगरों में गगनचुंबी इमारतें बनाने की होड़ सी लगी हुई है। इन गगनचुंबी इमारतों में सौर विकिरण इमारतों के कंकरीट में फंसा रह जाता है, इसलिए ये महानगर मौजूदा दौर में उसी क्षेत्र के गांवों और छोटे शहरों के मुकाबले कहीं ज्यादा गर्मी के टापू बनकर उभरे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार मुंबई में ही हाल के दिनों में जो गर्मी थी, वह तो थी ही। रातें सैकड़ों सालों के अनुभव के विपरीत अचानक बेहद गर्म होने लगी हैं। बीच में तो इस मौसम के सामान्य तापमान के मुकाबले मुंबई के कुछ इलाकों की रातों में साढ़े पांच डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई। यह एक ऐसी भयावह समस्या है कि अगर जल्द ही इसका हल न ढूंढ़ा गया तो जो शहर अभी तक सपनों और संभावनाओं के द्वीप कहलाते रहे हैं, वही शहर मौत, पलायन और अंगार बरसाती डरावनी जिंदगी के प्रतीक बन जाएंगे। मौसम और जलवायु वैज्ञानिक कहते हैं हां, उपाय पर धैर्य व ईमानदारी से लागू करना होगा। इन महानगरों में बड़े पैमाने पर ऐसे पेड़ लगाने होंगे जो गुणवत्तापूर्ण हरियाली प्रदान करें और उत्सर्जित होने वाली खतरनाक गैसों को ज्यादा से ज्यादा अवशोषण करे। इन महानगरों को अगर दहकती हुई भट्ठियां बनने से बचाना है, तो महानगरों की रेलमपेल मचाती सड़कों में वाहनों की संख्या को तुरंत कम से कम आधे तक पहुंचाना होगा। धरती के बढ़ते तापमान में सबसे बड़ी भूमिका वास्तव में जीवाश्म ईंधनों का अंधाधुंध इस्तेमाल है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर