उलझनभरी मन:स्थिति का शिकार मतदाता

इतना मौन तो मतदाता कभी न था। दरअसल वह एक उलझनभरी मन:स्थिति का शिकार है। एक तरह की किंकर्तव्यविमूढ़ता! क्या करे? कहां जाय? एक ओर मोदी मैजिक है दूसरी ओर खड़े किये गये प्रत्याशियों की नकारापन। एक तीसरा पहलू है विकल्पहीनता की स्थिति। विपक्ष धराशायी सा है। ऐसे हालात में मतदाता त्रिशंकु की बेबसी लिये अगले चरण के मतदान की तारीख को पास आता देख रहा है। वह उलझन में है।
प्रत्याशियों के नकारेपन के अनवरत फीडबैक के कारण एक हालिया इन्टरव्यू में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को स्पष्ट करना पड़ा कि उनका प्रत्याशी और कोई नहीं केवल कमल है। यह एक मज़बूत संदेश है किंतु कितना कारगर होगा, यह नतीजे बतायेंगे।
यह सही है कि भाजपा में प्राण फूंकने का काम मोदी ने ही किया। पिछले दोनों लोकसभा के चुनाव केवल मोदी के चेहरे पर भाजपा जीत गई और इस बार भी वही चेहरा है मगर मोदी के पुण्य प्रताप पर कई प्रत्याशियों का नकारापन इस बार हावी होता दिख रहा है। ऐसे प्रत्याशी जो जीते तो सही परन्तु कभी जनता के बीच नहीं गये। ऐसे भी हेलीकॉप्टर प्रत्याशी हैं जो न जाने कहां से क्षेत्र विशेष में आ टपके। इन्हें जनता विस्मय और संतप्त भाव से देख रही है। भाई ये कौन हैं, कहां से आ गये? 
दूसरी ओर विपक्षी खेमा चुनाव के बढ़ते चरणों में उत्तरोत्तर उत्तर प्रदेश में हावी होता दिख रहा है। संविधान बदलने का खतरा बात रहा है। कमल ही प्रत्याशी है, यह वाक्य कितना कारगर सिद्ध होगा? यह मंत्र कितने मतदाताओं तक पहुंचा है और यह ज़िम्मेदारी किसकी है कि मोदी का यह संदेश घर घर तक जा पहुंचे? अब तो शायद चार सौ पार और उत्तर प्रदेश में अस्सी में अस्सी का खुशफहमी वाला लक्ष्य हासिल न हो सके, मगर एक सम्माननीय आंकड़ा अपने पक्ष में कर लेने का समय अभी भी है। भीषण गर्मी पड़ है। आरामतलब मतदाताओं को घर से बाहर निकालने के लिए घर-घर सम्पर्क की ज़रूरत है। (अदिति)

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