ग्रामीण क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ रही दैनिक उपभोग उत्पादों की खपत

ग्रामीण क्षेत्र में अभी आधारभूत सुविधाओं की दरकार के बावजूद दैनिक उपभोग उत्पाद (फास्ट मूविग कंज्यूमर उत्पाद यानि एफएमसीजी) की मांग के क्षेत्र में शहरों को पीछे छोड़ दिया है। देखा जाए तो एफएमसीजी सेक्टर के लिए ग्रामीण बाज़ार नई उम्मीदों के साथ उभरा है। हालात यह है कि ग्रोथ रेट के हिसाब से भी ग्रामीण बाज़ार शहरों की तुलना में आगे निकल रहा है। एफएमसीजी सेक्टर में प्रमुखत: आईटीसी, हिन्दुस्तान लीवर, डाबर, आदि प्रमुख कम्पनियां हैं। आज ग्रामीण क्षेत्र में इनके उत्पादाें की सहज उपलब्ध्ता देखी जा सकती है। फास्ट मूविंग से सीधा अर्थ दैनिक उपभोग की उन वस्तुआें से हैं जिनकी खपत तेज़ी से होती है। पैक्ड खाद्य सामग्री, पेय पदार्थ, कॉस्मेटिक सामान या यों कहें कि व्यक्तिगत केयर की वस्तुएं और इसी तरह के अन्य दैनिक उपभोग की सामग्री को फास्ट मूविंग गुड्स कहा जाता है। एक समय था जब एफएमसीजी सेक्टर में काम कर रही कम्पनियों के केन्द्र में शहरी और उसमें भी उच्च मध्य आय वर्ग व उच्च आय वर्ग पर ही केन्द्रित रहा है। उनका व्यापारिक अभियान भी पूरी तरह से इस वर्ग पर ही केन्द्रीत रहता था परन्तु समय का बदलाव ही कहा जाएगा कि फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स बनाने वाली कम्पनियों के केन्द्र में अब ग्रामीण बाज़ार आने लगा है। आज एफएमसीजी सेक्टर में ग्रामीण बाज़ार में धमक बनती जा रही है। हालांकि आज क्या गरीब और क्या अमीर तथा क्या शहरी और क्या ग्रामीण, सभी के जीवन स्तर व रहन सहन में तेज़ी से बदलाव आया है। लोग अच्छी वस्तुओं का उपयोग करना चाहते हैं। नील्सन आई क्यू की हालिया रिपोर्ट भी इसी ओर इशारा करती है। रिपोर्ट के अनुसार एफएमसीजी सेक्टर में शहरी खपत को ग्रामीण क्षेत्र ने पीछे छोड़ दिया है। मज़े की बात यह है कि इस सेक्टर में भी खाने-पीने की वस्तुओं के स्थान पर अन्य दैनिक उपभोग की वस्तुओं सौन्दर्य प्रसाधन आदि की मांग बढ़ी है। दरअसल जिस तरह से आज लोगों तक वस्तुओं की सहज पहुंच होती जा रही है, उसी का असर साफ  तौर से बाज़ार में दिखाई देता है। 
मोटे रूप से समझने की कोशिश की जाए तो पैकिंग वाले खाद्य पदार्थ, पेय पदार्थ, महिलाओं और पुरुषों की प्रसाधन सामग्री, साफ-सफाई यानी कि टॉयलेट्री के साथ ही कम लागत की घरेलू उपभोग की वस्तुआें को एफएमसीजी सेक्टर में लिया जाता है। वैसे तो आईटीसी इसका सबसे बड़ा उत्पादक और वितरक है, परन्तु तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि फास्ट मूविंग कंज्यूमर उत्पादों की मांग को देखते हुए स्थानीय स्तर पर भी मिलते-जुलते रूप में उत्पादन का कार्य होने लगा है। सबसे खास बात यह है कि फास्ट मूविंग कंज्यूमर उपभोग सामग्रियों में ब्राण्डेड के साथ ही स्थानीय निर्माताओं के उत्पादों से बाज़ार अटा पड़ा है। दूसरी यह कि अनेक उत्पादों के तो मिलते-जुलते नाम या पैकिंग होती है जिससे उन्हें स्वत: बाज़ार मिल जाता है। आज कहीं भी किसी भी कोने में निकल जाओ, स्थानीय कंपनियों द्वारा तैयार पेय उत्पाद आसानी से मिल जाएंगे। यही स्थिति साबुन, सर्फ, साफ -सफाई के उत्पादों की है, ये भी आसानी से मिल जाएंगे। दरअसल अब ग्रामीण बाजार में ब्राण्डेड से लेकर स्थानीय उत्पादों की मांग तेज़ी से बढ़ी है और लोग अपने बजट के अनुसार उत्पाद आसानी से खरीदने लगे हैं। बड़ी स्थापित कम्पनियों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी है। बड़ी कम्पनियां पांच-दस रुपये के पैकिंग में खाद्य सामग्री के उत्पाद रखने लगी हैं। उत्पादकों ने छोटे से छोटे लक्षित वर्ग को ध्यान में रखकर उत्पादों की पैकिंग सुनिश्चित की है ताकि उसका लक्षित उपभोक्ता वंचित न रह सके। 
इस सबके साथ ही जिस तरह से घर-घर में टी.वी. चैनलों, एंड्राइड मोबाइल की पहुंच हुई है और जिस तरह से सोशल मीडिया ने सभी वर्गों तक अपनी पहुंच बनाई है, उससे बाज़ार को नई दिशा मिली है। यही कारण है कि सभी लोगों तक उत्पादों तक जानकारी पहुंच रही है। बड़ी-बड़ी कम्पनियों ने अब ग्रामीण बाज़ार पर अधिक ध्यान देना शुरु किया है। पहले बड़ी कम्पनियों की ग्रामीण बाज़ार पर लगभग नहीं के बराबर पहुंच रहती थी और ग्रामीणों को ब्राण्डेड या अच्छे उत्पाद लेने के लिए शहरों की ओर रुख करना पड़ता था।  इसे शुभ संकेत समझा जाना चाहिए।  ग्रामीण क्षेत्र में तेज़ी से रहन-सहन व खान-पान में बदलाव आ रहा है। दूसरी ओर परम्परागत खान-पान को छोड़ना और डिब्बा बंद खाद्य व पेयपदार्थों को अधिक महत्व देना आने वाले समय के लिए चिंता का विषय अवश्य हो सकता है।