कहीं आग से तो नहीं खेल रहा है जी-7 ?

पहले विश्व युद्ध के बाद सन् 1919 में मित्र देशों ने जर्मनी को नीचा दिखाने के लिए उस पर वर्साय की संधि थोपी थी। इसके चलते न सिर्फ जर्मनी के एक बड़े हिस्से पर इन देशों ने कब्ज़ा कर लिया था बल्कि इस कब्ज़ाई गई ज़मीन पर कई तरह की चैरिटी शुरु करने की योजना बनायी थी। इस अपमानजनक संधि का क्या नतीजा हुआ, पूरी दुनिया जानती है? जी हां, एडोल्फ  हिटलर इसी अपमानजनक संधि से पैदा हुआ रक्त बीज था। एक सदी बाद जी-7 वैसी ही गलती फिर दोहरा रहा है। बस फर्क इतना है कि पहले जहां जर्मनी था, अब उसकी जगह रूस है। गत 14 जून, को इटली के पुलिया में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान हुई एक प्रैस कान्फ्रैंस में अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि यूक्रेन को 50 बिलियन डॉलर का कज़र् दिया जायेगा और इस कज़र् के वार्षिक ब्याज का भुगतान, रूस की यूरोपीय संघ के साथ जी-7 देशों ने जो 325 अरब डॉलर मूल्य की सम्पत्ति फ्रीज़ कर रखी है, उससे मिलने वाले करीब 3 अरब डॉलर सालाना ब्याज से किया जायेगा। यूक्रेन अमरीका की इस दादागिरी से गदगद है, लेकिन रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने दांत पीसकर पूरे गुस्से से कहा है, इस हरकत का बहुत बुरा अंजाम होगा।
दुनिया को यह अनुमान लगाने की ज़रूरत नहीं है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कितने दुस्साहसी हैं। वह सिर्फ बातों से ही दुनिया का डराने का मादा नहीं रखते बल्कि अपने पर आ जाएं तो दुस्साहस की सारी पराकाष्ठाएं लांघ सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पश्चिमी देशों के करीब डेढ़ दशकों के अप्रत्यक्ष प्रतिबंधों और जब से पुतिन ने क्रीमिया पर कब्ज़ा किया है, तब से लगातार बढ़ता प्रत्यक्ष प्रतिबंध और 2022 के बाद से तो जितने भी किस्म के पश्चिमी देश प्रतिबंध लगा सकते थे, वे सबके सब रूस पर लगे हुए हैं, लेकिन इसके बाद भी रूस की अर्थव्यवस्था न तो डूबी है और न ही रूस कहीं से कमज़ोर होता दिखा है। ऐसे में अगर अमरीका यह सोचता है कि उसकी 325 अरब डॉलर की सम्पत्ति को फ्रीज़ करके और उससे मिलने वाले ब्याज से व्लोदोमीर जेलेंस्की में आत्मघात का जोश भरकर वे रूस को कमज़ोर कर लेंगे, पुतिन को झुकने के लिए मजबूर कर देंगे, तो यह अमरीका की दिखायी गई अतिशय चालाकी की नासमझी है।
इससे रूस को कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है, क्योंकि लगभग दो सालों से उसकी यह सम्पत्ति एक किस्म से उसके लिए परायी ही है। पिछले दो सालों से फ्रीज़ रूस अपनी इस सम्पत्ति का न तो प्रत्यक्ष रूप से और न ही इस सम्पत्ति की बदौलत अप्रत्यक्ष रूप से कोई सहूलियत हासिल कर पा रहा है। लेकिन अमरीका के नेतृत्व में जी-7 के उसके साथी देशों द्वारा उठाये गये इस कदम के चलते रूस को कई तरह की मनमानियां करने का मौका मिल जायेगा। पुतिन के अतीत को सब जानते हैं कि वह एक झटके में निर्णय लेने वाले खुफिया अधिकारी रहे हैं।
लेकिन अगर ऐसा न भी हो, तो भी पश्चिमी देशों की इस हरकत के बाद रूस और चीन की जो गलबहियां अभी तक एक हिचक के साथ देखने को मिल रही थीं, अब इन गलबहियों के लिए दोनों के बीच की यह झिझक टूट सकती है। वैसे भी भले चीन, पश्चिमी देशों के विरूद्ध सीधे-सीधे युद्ध न लड़ रहा हो, लेकिन कम से कम अमरीका के साथ तो उसकी भी वैसी ही ठनी है, जैसे रूस और अमरीका की आपस में ठनी है।
 कहने का मतलब है कि जी-7 देश रूस को भले झुका पाए या न झुका पाए, लेकिन इसके चलते हाल के सालों में भू-मंडलीकरण को लेकर जो आशंकाएं तैर रही हैं, एक झटके में वो आशंकाएं काफी ठोस और सही मान ली जाएंगी। जिस तरह से अमरीका की अगुवाई में अमीर देश रूस को घेरकर उसका शिकार करना चाहते हैं, उससे भू-मंडलीकरण के भरोसे का बुलबुला फूट जायेगा। 
एक बार जब दुनिया के सबसे ताकतवर देश मिलकर किसी एक देश के विरूद्ध क्रूरतापूर्व गोलबंद होकर उसकी आर्थिक कमर तोड़ने की कोशिश कर सकते हैं, तो भला कौन देश होगा जो भू-मंडलीकरण पर भविष्य में आंख-मूंदकर भरोसा करेगा। क्या इस घटना के बाद दुनिया के बहुत से देशों के कान नहीं खड़े हो जाएंगे कि अगर पश्चिमी देश उसके विरुद्ध भी किसी बात को लेकर घेराबंदी कर लें तो क्या होगा? दरअसल अमरीका काफी दिनों से इस फिराक में था कि रूस को कोई ऐसी चोट पहुंचाए, जिससे ख्याल से ही वह बिलबिला जाए। 
इसके लिए उसने पहले यूरोपीय सेंट्रल बैंक को पटाने की कोशिश की, फिर उस पर दबाव डाला कि वह रूस की सम्पत्ति ज़ब्त कर ले, लेकिन यूरोप के सेंट्रल बैंक ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद बाइडन ने वही पुराना चक्रव्यूह रच डाला जो दशकों से रचा जा रहा है। अपने साथ जी-7 के देशों की बदौलत अमरीका यूक्रेन का सबसे बड़ा शुभचिंतक बनना चाहता है। 
भारत को किसी भी खुशफहमी या मुगालते में आकर पश्चिमी गोलबंदी का हिस्सा नहीं बनना। भारत लिए भले अब रूस एकमात्र रणनीतिक भागीदार न रह गया हो, लेकिन चीन के साथ अपने गहरे रिश्ते बनाकर और पाकिस्तान को इस त्रिकोण में शामिल करके रूस हमारे लिए जो जियो-पॉलिटिकल दुश्वारियां खड़ी कर सकता है, हमें हमेशा उस बात को ध्यान में रखना होगा। 
भारत की सबसे सुविचारित और सुरक्षित वैश्विक नीति गुटनिरपेक्ष आंदोलन की रही है। भले मौजूदा वैश्विक उथल-पुथल में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन कहीं खो गया हो, लेकिन हमें इस तरह की तीखी घेरेबंदी के बीच अपनी उस मजबूत वैश्विक पोज़ीशन को फिर से मज़बूत करना होगा और जी-7 रूस के बहाने जिस तरह आग से खेलने की तरफ बढ़ रहा है, भारत को उससे खुद को बचाना होगा। ये लपटें हमारे दशकों के संचित कौशल को शून्य कर सकती हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर