लोकसभा में बढ़ते द़ागी सांसद

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र में हाल ही में गठित तीसरी पारी की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के कुल 72 में से 28 मंत्रियों के विरुद्ध गम्भीर किस्म के मुकद्दमे दर्ज होने की एक रिपोर्ट जहां देश में आपराधिक चरित्र वाले सांसदों की बढ़ती संख्या को लेकर चिन्ता की स्थिति उत्पन्न करती है, वहीं विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र की धवल चादर पर छिटक पड़े स्याह द़ागों की तस्वीर को भी और नुमायां करती है। मौजूदा गठित सरकार में आपराधिक चरित्र वाले इन सदस्यों की संख्या 39 प्रतिशत है। यह रिपोर्ट एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक रिसोर्स अर्थात् ए.डी.आर. की ओर से किये गये एक तात्कालिक सर्वेक्षण के बाद जारी की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार नव-निर्वाचित और नव-गठित मंत्रिमंडल के सदस्यों के विरुद्ध दर्ज किये गये इन आपराधिक मामलों में अनेक बेहद गम्भीर प्रकृति के अर्थात हत्या के प्रयास और अपहरण जैसे मामले भी शामिल हैं। इन मामलों की गम्भीर प्रकृति को जान कर जन-साधारण में अचम्भित होने जैसी स्थिति भी उपजती है। इन आंकड़ों में केवल वे आपराधिक मामले शामिल हैं जिनका उल्लेख इन माननीयों ने स्वयं अपने घोषणा-पत्रों में किया है। नि:संदेह ये घोषणा-पत्र अपने आप में इन मंत्रियों के संदिग्ध पक्ष को ही उभारते हैं। इन 28 संदिग्ध चरित्र वाले मंत्रियों में से पांच ऐसे भी हैं, जिनके विरुद्ध महिलाओं के अपहरण की कोशिश किये जाने के मामले पुलिस थानों में पहले से ही दर्ज हैं। इनके अतिरिक्त दो ऐसे शख्स भी मंत्री बने हैं जिन्होंने स्वयं अपने विरुद्ध हत्या का षड्यन्त्र रचने जैसा आरोप दर्ज होने की घोषणा अपने हल्फनामे में की है।
यह रिपोर्ट तब और भी गम्भीर एवं चिन्ताजनक प्रतीत होने लगती है जब यह पता चलता है कि मिशन-2024 के अन्तर्गत सम्पन्न हुए देश की 18वीं लोकसभा के चुनावों के दौरान निर्वाचित हुए 543 सांसदों में से 251 भी अर्थात 46 प्रतिशत सांसद द़ागी चरित्र वाले हैं। यह एक तथ्य भी गले से नीचे उतरना कठिन प्रतीत होता है कि इन आपराधिक चरित्र वाले माननीयों में से 27 ऐसे सांसद हैं जिन्होंने बड़े दावे के साथ यह  स्वीकार किया है कि उन्हें कुछ मामलों में अदालतों द्वारा दण्डित भी किया जा चुका है। इस रिपोर्ट का एक यह पक्ष, देश के हित-चिन्तक बौद्धिक जनों को यह सोचने पर भी विवश करता है कि लोकसभा में आपराधिक चरित्र वाले द़ागी सदस्यों की संख्या प्रत्येक चुनाव के बाद निरन्तर बढ़ती जाती है, और कि इस 18वीं लोकसभा में ऐसे द़ागी सांसदों की संख्या पिछली सभी 17 लोकसभाओं के मुकाबले सबसे अधिक है। इस स्थिति को ऐसे भी समझा जा सकता है कि पहली बार चुन कर आये 280 सांसदों में से भी अनेक आपराधिक और संदिग्ध चरित्र वाले हैं। इस चिन्ताजनक होती जाती स्थिति का एक बड़ा कारण लाख यत्नों के बावजूद चुनावों में खड़े होने वाले सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के कम पढ़ा-लिखा होना भी है। हालांकि इस पक्ष से मौजूदा लोकसभा में शिक्षित लोगों की संख्या बढ़ने से आशाजनक परिणाम उपजते भी दिखाई देते हैं। इस स्थिति का एक सर्वाधिक गम्भीर पक्ष यह है कि देश के सभी राजनीतिक दलों की टेक इस प्रकार के संदिग्ध चरित्र लोगों पर किसी न किसी रूप में बनी रहती है। चुनाव आयोग के अनुसार इस बार लोकसभा चुनावों में कुल 8360 प्रत्याशी मैदान में थे। ए.डी.आर. ने इनमें से 8337 उम्मीदवारों का विश्लेषण किया जिनमें से 1643 प्रत्याशियों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज थे। देश के दो सबसे बड़े और राष्ट्रीय दलों में से भाजपा के कुल 240 सांसदों में से 94 द़ागी हैं जबकि कांग्रेस के कुल 99 माननीयों में से 49 प्रतिशत अर्थात 49 सदस्य आपराधिक चरित्र वाले हैं। इसी प्रकार आम आदमी पार्टी, बसपा और अन्य दलों में भी कमो-बेश ऐसी ही स्थिति है। यहां तक कि क्षेत्रीय दल और निर्दलीय भी इस बुराई से अछूते नहीं हैं।
नि:संदेह यह स्थिति विश्व के इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए कदापि उचित एवं हितकर नहीं है। मोदी सरकार की विगत दोनों पारियों और उसके पूर्व की मनमोहन सिंह सरकार की दूसरी पारी के बाद से, देश की राजनीति में आपराधिक चरित्र वाले लोगों, और राजनीतिक धरातल पर होने वाले अपराधों की संख्या में लगभग 25 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है। हम समझते हैं कि इस प्रकार देश की राजनीति के द़ागदार होते जाने की स्थिति पर अंकुश लगाया जाना बेहद आवश्यक है। इस हेतु सभी राजनीतिक दलों और विशेषकर देश के कर्णधारों को दृढ़ इच्छा-शक्ति के साथ सभी दलों/वर्गों के प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करना चाहिए। चुनाव लड़ने वालों के शिक्षित होते जाने से भी स्वत: इस स्थिति पर अंकुश लग सकता है। 18वीं लोकसभा में इस पक्ष से अवश्य एक आशाजनक तस्वीर उभरती है। मतदाताओं पर भी इस पक्ष से यह ज़िम्मेदारी आयद होती है कि वे मतदान करते समय पढ़े-लिखे उम्मीदवारों के प्रति तरजीही सोच रखें। हम समझते हैं कि सभी राजनीतिक दलों, समाज के सभी वर्गों एवं समूहों के संयुक्त प्रयासों से ही इस कड़वी बेल को फलने-फूलने से रोका जा सकता है।