नीट पेपर लीक  का मामला - निष्पक्ष जांच होनी चाहिए

अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित होने वाली मैडीकल की योग्यता परीक्षा अर्थात नीट के सत्र-2024 में पेपर लीक होने व परिणाम तैयार करने में हुईं अन्य अनियमितताओं के आरोपों को लेकर नि:संदेह देश भर में एक बड़ा हंगामा बरपा हुआ है, किन्तु इस मामले ने नि:संदेह तब एक नया मोड़ ले लिया जब केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने एक ब्यान के ज़रिये न केवल इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया, अपितु उन्होंने राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी को पूर्णतया एक प्रामाणिक एवं प्रतिष्ठाजनक एजेंसी करार देते हुए कहा कि पेपर लीक को लेकर अभी तक कोई पुष्ट प्रमाण सामने नहीं आया है। इसके विपरीत सर्वोच्च न्यायालय ने इस विवाद की सुनवाई करते हुये अनियमितताएं होने की बात स्वीकार की है तथा सरकार की ओर से स्वयं इस मामले की जांच के लिए बनाई गई समिति की रिपोर्ट के आधार पर 1563 ऐसे परीक्षार्थियों के परिणाम रद्द करने को उचित करार दिया है, जिन्हें कुछ सैंटरों में उनका समय व्यर्थ होने को आधार बना कर ग्रेस अंक दिये गये थे। ऐसे परीक्षार्थियो को पुन: टैस्ट देना पड़ेगा या ग्रेस अंकों के बिना बने परिणाम को स्वीकार करना पड़ेगा। इस टैस्ट में 67 परीक्षार्थियों के 100 प्रतिशत अंक आने से भी आशंका बढ़ी थी। देश भर में इस परीक्षा में 23 लाख से अधिक युवाओं ने भाग लिया था।
इस मुद्दे को लेकर संदेहों और संशयों की आहट तो बहुत पहले से मिलने लगी थी। पहला विवाद तो तभी उपज गया था जब पंजीकरण की तिथि एकाएक सात दिन के लिए बढ़ा कर एक ही दिन में नये पंजीकरण कर लिये गये। झारखंड राज्य के एक ही परीक्षा केन्द्र में से आठ छात्रों के शत-प्रतिशत अंक आना और अनेक अन्यों के 720 में से 716 से 719 अंक आ जाना केवल कोई करिश्माई संयोग भी तो नहीं हो सकता। तिस पर सितम की बात यह भी है कि राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी द्वारा 1563 परीक्षार्थियों को ग्रेस मार्क यानि कृपा अंकों से भी नवाज़ा गया। इनमें 67 वे परीक्षार्थी भी शुमार हैं जिन्होंने शत-प्रतिशत अंक अर्जित किये हैं। नि:संदेह  प्रत्यक्ष प्रभाव शेष उन लाखों परीक्षार्थियों पर पड़ता है जो अपनी योग्यता एवं परिश्रम के भरपूर प्रदर्शन के बावजूद इस राष्ट्रीय प्रतियोगी परीक्षा में पिछड़ गये। विवाद बढ़ने पर दिये गये कृपा अंकों को बेशक वापिस ले लिया गया है, किन्तु बिहार और गुजरात सहित कुछ अन्य राज्यों में सक्रिय पेपर लीक माफिया की इस कारगुज़ारी का दण्ड निश्चित रूप से मानसिक तनाव, दैहिक उत्पीड़न और आर्थिक शोषण के रूप में पूरे देश के गरीब एवं मध्यम वर्गीय परिवारों के लाखों युवाओं को भोगना पड़ रहा है।
बेशक सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई के पहले हफ्ते में करने को कहा है किन्तु इससे पूर्व ही केन्द्रीय शिक्षा मंत्री द्वारा पेपर लीक  की सम्भावनाओं को सिरे से खारिज करना किसी भी सूरत में उचित प्रतीत नहीं होता। जांच एजेंसियों और याचिका-दाताओं द्वारा प्रस्तुत प्रमाण एवं दस्तावेज़ मामले में गड़बड़ होने की गवाही देते हैं। इसके बावजूद केन्द्रीय मंत्री का ऐसा ब्यान दाल में अवश्यमेव कुछ काला होने का ही संकेत देता है। देश भर में इस मामले को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। लाखों युवाओं का भविष्य दांव पर लगा है। एक छात्रा ने तो इस परिणाम के बाद आत्महत्या भी कर ली है किन्तु केन्द्र सरकार के एक ज़िम्मेदार मंत्री की ओर से इस प्रकार का ़गैर-ज़िम्मेदाराना ब्यान उच्च विशेषज्ञता वाली शिक्षा हासिल करने वाले लाखों विद्यार्थियों के घावों पर नमक छिड़कने जैसा ही हो सकता है। हम समझते हैं कि अब तक सामने आए सभी प्रमाण किसी माफिया की गहरी साज़िश की ओर संकेत करते हैं। होना तो यह चाहिए कि केन्द्र सरकार इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी होने दे। इसके अतिरिक्त यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन होने के कारण भी इसे लेकर कोई टिप्पणी करना कदापि न्याय-संगत नहीं प्रतीत होता। इस देश के युवा समाज के भावी प्रकाश स्तम्भ हैं। उनके भविष्य और उनके जीवन से खिलवाड़ करने वाले माफिया पर कड़ा अंकुश लगाया जाना चाहिए। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी का इस पेपर लीक से इन्कार और केन्द्रीय मंत्री द्वारा इस एजेंसी का अन्ध-समर्थन नि:संदेह गम्भीर चिन्ताएं पैदा करने वाला है।  हम समझते हैं कि यह मामला समूचे देश की प्रतिष्ठा और राष्ट्रीय अखण्डता से भी जुड़ता है। राष्ट्र की प्रतिष्ठा और युवा वर्ग की उत्तेजित एवं आहत भावनाओं पर मरहम लगाये जाने हेतु इस मामले की व्यापक, निष्पक्ष और न्यायिक जांच अवश्य कराई जानी चाहिए।