मणिपुर का दुखांत

देश के उत्तर पूर्वी छोटे-छोटे पहाड़ी तथा वनों से भरपूर राज्यों में बसे भिन्न-भिन्न कबीलों तथा समुदायों की अपनी-अपनी गम्भीर समस्याएं हैं, जो केन्द्र सरकार के लिए अक्सर चिंता का विषय बनी रही हैं। इसके अतिरिक्त नागालैंड तथा असम में समय-समय पर होते आन्दोलनों ने भी सरकार की चिन्ता को लगातार बढ़ाये रखा है। पैदा हुई इन समस्याओं में ज्यादातर का समाधान अभी तक भी नहीं किया जा सका। इसी तरह पिछले सवा वर्ष से इस क्षेत्र के छोटे-से प्रदेश मणिपुर में हुई हिंसक घटनाओं, जिनके दौरान सैकड़ों ही लोग मारे जा चुके हैं तथा सैंकड़ों ही गम्भीर घायल भी हुए हैं, के संकट का भी अभी तक कोई हल नहीं निकाला जा सका। प्रदेश तथा केन्द्र सरकार की ओर से बड़े यत्नों के बावजूद भी मणिपुर के नस्लीय हिंसा के मामले को सुलझाया नहीं जा सका। आश्चर्यजनक बात यह है कि ये समस्याएं लगातार गम्भीर होती जा रही हैं। यहां एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व में विधानसभा चुनावों के उपरांत भाजपा की सरकार बनी थी। बीरेन सिंह को एक परिपक्व राजनीतिक शख्सियत माना जाता रहा है परन्तु वह इन हिंसक घटनाओं तथा झगड़ों को सुलझाने में बुरी तरह विफल रहे हैं।
इसके साथ-साथ इस प्रदेश में भाजपा की छवि भी दांव पर लगी रही है। मणिपुर की समस्या दो जातियों के बीच पैदा हुए नस्लीय टकराव की है। यहां मैतेई तथा कुक्की जातियों के लोग रहते हैं। मैतेई कबीले के लोग बहुसंख्या में हैं, जो इसके मैदानी क्षेत्रों में बसे हुये हैं जबकि कुक्की कबीले के लोग इस प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं तथा उन्हें संविधान के तहत अनुसूचित कबीले के रूप में विशेषाधिकार का दर्जा मिला हुआ है। मैदानी क्षेत्रों में रहते मैतेई कबीले के लोग भी पिछले लम्बे समय से अपनी जाति को अनुसूचित कबीले के रूप में दर्ज करने की मांग करते आ रहे हैं। पिछले समय में प्रदेश के उच्च न्यायालय की ओर से उनकी इस मांग के प्रति सकारात्मक समर्थन दिये जाने के बाद दोनों कबीलों में आपसी टकराव बेहद तीव्र हो गया। पिछले वर्ष 3 मार्च को जब कुक्की और कुछ अन्य पहाड़ी कबीलों ने बहुसंख्यक मैतेई कबीले के अनुसूचित कबीलों में शामिल होने की मांग के विरुद्ध जुलूस निकाला तो उस दौरान उनके बीच हुई आपसी हिंसक लड़ाई में बहुत बड़ा मानवीय तथा आर्थिक नुकसान हुआ, जिसके बाद अब तक प्रदेश एवं केन्द्र सरकार हालात को सम्भालने में विफल रही हैं। 
इन हिंसक टकरावों से अच्छी प्रकार न निपटने के कारण मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के त्याग-पत्र की मांग उठती रही है। देश भर में भी भाजपा की छवि पर उंगली उठती रही है। तब यह अनुमान भी लगाये जाते रहे थे कि केन्द्र की भाजपा सरकार की ओर से बीरेन सिंह के स्थान पर कोई नया मुख्यमंत्री लाया जाएगा परन्तु इस संबंध में केन्द्र सरकार ने हठपूर्ण रवैया धारण किये रखा। इस कारण भी हिंसक विवाद अभी तक नहीं रुक सका। यह केन्द्र सरकार के लिए भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। मणिपुर में लोकसभा की दो सीटें हैं। विगत दिवस लोकसभा के चुनावों में इन दोनों सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई थी तथा भाजपा को यहां नमोशीजनक हार का सामना करना पड़ा था। इस मामले को लेकर ही विगत दिवस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी मणिपुर विवाद का सन्तोषजनक तथा उचित हल न निकाले जाने के कारण अप्रत्यक्ष रूप से केन्द्र सरकार की कड़ी आलोचना की थी।
पिछले दिनों इस मामले को लेकर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी एक उच्च स्तरीय बैठक की थी, जिसमें प्रदेश के मुख्य अधिकारियों सहित केन्द्र के भी वरिष्ठ प्रबंधकीय अधिकारी शामिल हुये थे, परन्तु इस बैठक में मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह अनुपस्थित रहे थे। इस बैठक में मणिपुर के दोनों कबीलों अभिप्राय मैतेई तथा कुक्की के बीच पुन: साझ पैदा करने के यत्नों में तेज़ी लाने संबंधी चर्चा की गई तथा हालात को सुधारने के लिए अन्य पक्षों से भी यत्न तेज़ करने की योजनाएं बनाई गई थीं। नि:संदेह इस कबाइली प्रदेश का अब तक भारी नुक्सान हो चुका है। इसका प्रभाव पड़ोसी राज्यों पर भी देखा जा सकता है। हम समझते हैं कि इस नई शुरुआत के लिए मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को पद से हटाना भी बेहद ज़रूरी है। ऐसा करने से एक अच्छा प्रभाव बनाया जा सकता है। नि:संदेह इस प्रदेश के हालात चिन्ताजनक भी हैं तथा केन्द्र सरकार  के लिए एक बड़ी चुनौती भी हैं, जिन्हें सुधारने के लिए शीघीय्र  तथा बड़े पग उठाये जाने की ज़रूरत है।

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द